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भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थान में वैश्विक बाजार के लिए जूते तैयार करते बच्‍चे

Tuesday, 19 December 2017 12:49 GMT

  • रोली श्रीवास्तव

मुंबई, 19 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)– कार्यकर्ताओं का कहना है कि ताजमहल की नगरी आगरा में आठ साल तक के बच्‍चे भी स्कूल जाने की बजाय खतरनाक परिस्थितियों में वैश्विक बाजार के लिए जूते बनाते हैं। कार्यकर्ताओं ने जूता कंपनियों से स्थानीय सरकार के साथ सहयोग कर अपनी आपूर्ति श्रृंखला से बाल मजदूरी समाप्‍त करने का आग्रह भी किया है।

फेयर लेबर एसोसिएशन (एफएलए) के अध्‍ययन के अनुसार पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र होने के साथ ही आगरा जूते बनाने का प्रमुख केंद्र भी है, जहां एक साल में लगभग 20 करोड़ जोड़ी जूते बनाये जाते हैं और शहर की एक चौथाई आबादी इस उद्योग में कार्यरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे अनौपचारिक कारखानों और घरों में बच्‍चे हाथ और मशीन से सिलाई करने से लेकर चिपकाने और जूतों की पैकिंग जैसे विनिर्माण प्रक्रिया से जुड़े काम करते हैं।

अध्‍ययन करने तथा बाल मजदूरी रोको गठबंधन के सदस्‍य और लाभ निरपेक्ष संगठन- एमवी फाउंडेशन के वेंकट रेड्डी ने कहा, "उनके आस-पास के इलाकों में स्कूल नहीं होने से बच्‍चे काम करने के लिए आसानी से उपलब्ध रहते हैं।"

रेड्डी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हमने पाया कि बच्‍चों के काम करने का समय निर्धारित नहीं होता है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर घर पर ही काम करते हैं। वे कोई छुट्टी नहीं लेते, क्‍योंकि उनकी कमाई बनाये गये जूतों की संख्‍या पर निर्भर है।

"हम जिन बच्‍चों से मिले वे छोटे से बंद कमरों में दिन भर काम करते थे, जिससे उनके स्वास्थ्य को भी खतरा रहता है। वे कभी सामान्‍य बच्‍चों के समान खेले ही नहीं।

उत्तर प्रदेश के श्रम अधिकारियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

आगरा से जूते खरीदने वाली वैश्विक फुटवियर कंपनियों के सहयोग से कराये गये अध्ययन में पाया गया कि जूते बनाने वालों या सर्वेक्षण किये गये क्षेत्रों में रहने वाले बच्‍चों में से केवल आधे बच्‍चों ने ही स्कूलों में दाखिला लिया था।

इंडिया कमेटी ऑफ नीदरलैंड्स (आईसीएन) की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जूते और चमड़े के वस्त्रों का निर्माता है। भारत के लगभग 90 प्रतिशत फुटवियर का निर्यात यूरोपीय संघ में किया जाता है।

इस वर्ष के शुरूआत में जारी की गई आईसीएन की रिपोर्ट में कहा गया था कि चमड़ा उद्योग में लगभग 25 लाख भारतीय कामगार अत्‍यंत कम मजदूरी के लिए विषाक्त रसायनों के साथ लंबे समय तक काम करते हैं।

आगरा में एफएलए के अध्‍ययन में पाया गया कि जूते निर्यात करने वाले कारखानों ने बाल मजदूरी रोकने के उपाय किये हैं, लेकिन उप-अनुबंध पर छोटी उत्पादन इकाइयों या घरों जैसे कई कार्यस्थलों पर कराये जा रहे काम जांच के दायरे से बाहर हैं।

बाल मजदूरी रोको गठबंधन की समन्वयक सोफी ओवा ने कहा कि इस प्रचलन को समाप्त करने के लिए मजदूरी बढ़ाना, बाल मजदूरी को बढ़ावा ना देने के लिये समुदाय आधारित प्रयास करना और ऊपर से लेकर नीचे के स्‍तर तक नियमन की आवश्‍यकता है।

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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