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कोष की कमी के कारण मुंबई की यौन कर्मियों में आशा जगाने वाला बैंक बंद

by Roli Srivastava | @Rolionaroll | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 28 December 2017 08:20 GMT

Anasuya, who volunteered in Sangini - a now closed cooperative bank for sex workers, poses in front of its premises in Mumbai's red light district Kamathipura, on December 15, 2017. THOMSON REUTERS FOUNDATION/ROLI SRIVASTAVA

Image Caption and Rights Information

-    रोली श्रीवास्तव

मुंबई, 28 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - फातिमा मुंबई के रेड लाइट जिले कमाठीपुरा की धूल भरी गलियों में अपने वेश्यालय के एक छोटे से कमरे का किराया एक कार्यदिवस की दोपहर को पुरुषों से 20 रुपये लेती है, जहां लड़कियां अपनी यौन सेवायें देने के लिये उनसे 200 रुपये वसूलती हैं।  

पिछले महीने तक फातिमा लड़कियों से थोड़ा धन इकट्ठा कर उसे कुछ दूरी पर बने एक बैंक में जमा कराने के लिये कहती थी। उस बैंक में नकद पांच रुपये भी जमा किए जा सकते थे और इसके लिये बैंक द्वारा केवल एक फोटो को छोड़कर कभी किसी भी प्रकार की कागजी कार्रवाई या पहचान के प्रमाण नहीं मांगे गये थे।

लेकिन अधिकतर यौन कर्मी स्‍वयं सेवकों की सहायता से यौन कर्मियों के लिये 10 साल तक संगिनी महिला सहकारी सोसायटी बैंक चलाने के बाद वित्तीय संकट के कारण इसे पिछले महीने बंद कर दिया गया और यौन कर्मियों को उनकी संपूर्ण बचत राशि वापस लौटा दी गई।

इस इलाके में अपने पहले नाम से पहचानी जाने वाली फातिमा ने कहा, "अब यौन कर्मियां अपना धन छोटे से कमरे में ही कहीं छुपाती हैं या उन्‍हें अपने तकिए के लिहाफ में बंद करके रखती हैं।"  

उसने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मैं लड़कियों को उनके घर भेजने के लिए पैसे बचाने को कहती थी। वे देश के विभिन्‍न इलाकों से यहां आती हैं। उनके परिवार गरीब हैं।" उसने आशा व्यक्त की कि अगर प्रशासनिक कार्य करने के लिये निधि मिल जाये तो संगिनी फिर से शुरू हो सकता है।

संगिनी को कोलकाता के रेड लाइट जिले सोनागाछी में बने देश के सबसे पुराने उषा सहकारी बैंक की तर्ज पर बनाया गया था। धन की बचत करने में यौन कर्मियों की सहायता के लिये मुम्बई में यह पहला बैंक था। इसकी मदद से वे अन्‍य क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकती थीं।

2007 में देश के दूसरे सबसे बड़े रेड लाइट जिले में शुरू किया गया यह सहकारी बैंक यौन कर्मियों को बगैर किसी परेशानी के बैंकिंग सेवाएं प्रदान करता था। बैंक के स्‍वयं सेवक उनके घरों में जाकर नकदी जमा करते थे और बेघर लड़कियां भी इस बैंक में अपने बचत खातें खोल सकती थीं।

भारत का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य महाराष्ट्र जिसकी राजधानी मुंबई है, कई वर्षों से तस्करी पीडि़तों का प्रमुख गंतव्य स्‍थल रहा है। पीडि़तों को अच्‍छी नौकरी दिलाने का प्रलोभन दिया जाता है, लेकिन उन्‍हें यौन गुलामी या घरेलू नौकरानी का काम करने के लिये बेच दिया जाता है।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि देह व्‍यापार के लिये गुलाम बनाई गई लड़कियां अति गरीबी में अपना जीवन काटती हैं। अक्सर शुरू के कुछ वर्षों में तो उन्‍हें उनकी कमाई में से एक पैसा भी नहीं दिया जाता है, इसलिए इस बैंक का खुलना स्वागत योग्य कदम था।  

कोष की कमी

शुरू में इस परियोजना के लिये निधि प्रदान करने वाली अमेरिका की लाभ निरपेक्ष संस्‍था- पॉपुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल (पीएसआई) की पूर्व राष्ट्रीय समन्वयक शिल्पा मर्चेंट ने कहा, "बैंक शुरू करते समय हमें आशंका थी कि वेश्यालय की मालकिनें और दलाल इसे चलने देंगे या नहीं। इसलिए हमने पहले साल में 100 खाते खोलने का लक्ष्‍य रखा था।"

"लेकिन बैंक के उद्घाटन के दिन ही हमने 100 से अधिक खाते खोल दिए थे।"

जल्द ही यौन कर्मियां स्‍वेच्‍छा से बैंक की एजेंट बन गयीं और वेश्यालयों में जाकर धन इकट्ठा कर रसीद सौंपने का काम करने लगीं। बैंक बंद करते समय खातों की संख्या बढ़कर 5000 हो गई थी।

मर्चेंट ने कहा, "कुछ यौन कर्मियां अपने बच्चों की शादियां करवा पाईं, कुछ ने यह धंधा छोड़ कर दुकान खोल ली हैं। हमने इन सबके प्रमाण तैयार किये हैं। बैंक उन्हें आजीविका के वैकल्पिक साधन उपलब्‍ध करा रहा था।"

केवल अपना पहला नाम बताते हुये अनुसया ने कहा कि उसका जन्‍म देवदासी प्रथा में हुआ था, जिसके तहत धर्म के नाम पर लड़कियां अपना संपूर्ण जीवन यौन कर्म में "समर्पित" करती थीं। उसने संगिनी शुरू होते समय 1000 रुपये से खाता खोला था।

अनुसया ने कहा, "फिर मैंने नियमित रूप से बचत करना शुरू कर दिया था। मैंने बैंक के लिए स्वयं सेवक के तौर पर कार्य भी करना शुरू कर दिया था। कुछ साल पहले ही मैंने अपने लिए एक छोटा सा कमरा खरीदा था। अब मैं वहीं रहती हूं।"

संगिनी में कार्य करने वाली सविता तडके ने कहा कि यौन कर्मी उसे से रोक कर पूछते हैं कि बैंक फिर कब से खुलेगा।

उन्होंने कहा, "यहां इन महिलाओं के लिये कोई निजी स्‍थान नहीं है। उनका धन और कभी-कभी उनके कपड़े भी दलाल और ग्राहक चुरा लेते हैं।"

बैंक के न्‍यासियों ने कहा कि शुरुआत में पीएसआई द्वारा समर्थित संगिनी को उस समय झटका लगा जब 2009 में पीएसआई ने वित्‍तीय सहायता बंद कर दी थी।

न्‍यासियों ने कहा कि उसके बाद बैंक को प्रतिदिन लगभग 130 रुपये से भी कम कमाने वाले 80 करोड़ भारतीयों की सहायता करने के लिये गठित न्‍याय- इंडि़या 800 फाउंडेशन से वित्‍तीय सहायता मिली। लेकिन तीन साल बाद ही उस न्‍यास में भी कोष की कमी हो गई, जिसका प्रभाव भारत के संचालन पर भी पड़ा।

संगिनी के न्‍यासी और इंडि़या 800 फाउंडेशन के अध्‍यक्ष नारायण हेगडे ने कहा, "हमने खाताधारकों को उनकी जमा राशि पर तीन प्रतिशत ब्याज दिया और हमने पूरा धन राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा कर दिया जिससे हमें पांच प्रतिशत ब्याज प्राप्‍त हुआ।"

हेगडे ने कहा, "दो प्रतिशत के मुनाफे पर बैंक चलाना कठिन हो गया था। बैंक बंद करते समय हम पर 40 लाख रुपये की देनदारी थी। हमें कहीं से भी सहायता नहीं मिल रही थी। जैसे ही हम यौन कर्मियों की बात करते हैं, कोई भी बैंक की वित्‍तीय सहायता नहीं करना चाहता।"

"अभी भी मुझे उम्मीद है कि अगर हमें 10 लाख रुपये भी मिले तो हम बैंक चला सकते हैं।"

कमाठीपुरा मुंबई का सबसे पुराना रेड लाइट ज़िला है, जहां धूल भरी गलियों में सैकड़ों वेश्यालय हैं। लेकिन यहां पर यौन कर्मी कभी भी एकजुट नहीं थे, क्योंकि वे देश के विभिन्न हिस्सों से आए थे और उनकी भाषाएं भी अलग-अलग थी।

संगिनी बोर्ड की सदस्य और कमाठीपुरा के यौन कर्मियों की प्रतिनिधि माया लामा ने कहा, "इस बैंक ने हमें एकजुट किया था। धन जमा करवाने वाले हमारे एजेंटों का वेश्यालयों में आना-जाना था। पिछले कुछ सालों में हमने वेश्यालयों से कई युवा लड़कियों को बचाया भी था।"

"हमारे पास अब भी बैंक चलाने का सामर्थ्‍य है, लेकिन धन नहीं हैं।"

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

 

A woman shows deposit slips issued by Sangini - a now closed cooperative bank for sex workers, in Mumbai's red light district Kamathipura on December 15, 2017. THOMSON REUTERS FOUNDATION/ROLI SRIVASTAVA

FUNDING WOES

"When we started, we were afraid if brothel madams and pimps will allow it to function. So we aimed at opening 100 accounts in the first year," said Shilpa Merchant, former national coordinator of the U.S.-based non-profit Population Services International (PSI) that initially funded the project.

"But we opened more than 100 accounts on the bank's opening day itself."

Sex workers soon volunteered with the bank to become collection agents, visiting brothels to collect money and handing over receipts. The number of accounts had increased to 5,000 when the bank closed.

"Some sex workers could get their children married, some left the profession and started a shop. We documented all this. The bank was giving them alternative options of livelihood," said Merchant.

Anusaya, who would only give her first name, said she was born into the devadasi system, which "dedicates" girls to a life of sex work in the name of religion, and she was one of the first to open an account at Sangini with 1,000 rupees.

"Then I started saving regularly. I also started volunteering for the bank. I could buy a small room for myself a few years ago. I live there on my own now," said Anusaya.

Savita Tadke, who worked at Sangini, said she is regularly stopped by sex workers and asked when the bank will re-open.

"The women here don't have space. Their money, and at times their clothes, are stolen by pimps and customers," she said.

Initially supported by PSI, Sangini hit a rough patch when PSI withdrew funding in 2009, trustees of the bank said.

It then got funding support from India800 Foundation, a trust set up try to help the 800 million Indians living on less than $2 a day, which suffered a fund crunch three years later that affected its India operations as well, trustees said.

"We gave 3 percent interest to account holders on their deposits. We in turn deposited all the money into another nationalised bank that gave us 5 percent interest," said Narayan Hegde, trustee of Sangini and chairman of India800 Foundation.

"To run the bank on the 2 percent margin was becoming unsustainable. We had a liability of 4 million rupees when we closed. We had no support. The minute we said sex workers, nobody was interested (in funding the bank)," Hegde said.

"Even now I am hopeful that if we get 1 million rupees, we can run the bank."

Kamathipura is Mumbai's oldest red light district with hundreds of brothels lining its dusty streets but sex workers here were never united as they came from different parts of India and spoke different languages.

"This bank brought us together. Our collection agents had access to brothels. We were able to rescue many young girls from brothels in the last few years," said Maya Lama, a board member of Sangini and a representative of sex workers in Kamathipura.

"We have the strength to run the bank even now. We just don't have the money."

($1 = 64.1100 Indian rupees)

(Reporting by Roli Srivastava @Rolionaroll; Editing by Belinda Goldsmith; Please credit Thomson Reuters Foundation, the charitable arm of Thomson Reuters, that covers humanitarian news, women's rights, trafficking, property rights, climate change and resilience. Visit news.trust.org)

Fatima sits in front of the brothel she owns in Mumbai's red light district, Kamathipura, on Dec. 15, 2017. THOMSON REUTERS FOUNDATION/ROLI SRIVASTAVA

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