- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 2 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - हाई स्कूल के अध्यापक राजकुमार कोटल के पास कोई तरकीब नहीं बची थी।
छात्राओं के बाल विवाह और तस्करों द्वारा उन्हें लुभाने की खबरें उन तक पहुंचती तो थीं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती थी।
लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा समझदारी से पश्चिम बंगाल के रामगढ़हाट हाई स्कूल के एक कोने में लेटर बॉक्स रखते ही अचानक समस्या का समाधान हो गया।
अंग्रेजी विषय के अध्यापक कोटल ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "बॉक्स और पर्चियों पर कोई नाम ना होने के कारण छात्रों को सवाल पूछने, अधिकारियों को सचेत करने का साहस मिला और धीरे-धीरे हमने इसके जरिये बाल विवाह और मानव तस्करी रोकने का अभियान चलाया।"
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016 में देश में दर्ज किए गए मानव तस्करी के कुल मामलों में से 44 प्रतिशत पश्चिम बंगाल के थे और सबसे ज्यादा लापता बच्चों की शिकायतें भी यहीं से थीं।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि गरीब परिवारों की युवा लड़कियों को शादी कराने या नौकरी दिलाने का प्रलोभन दिया जाता है। लेकिन उनकी तस्करी कर उन्हें शहरों में भेज दिया जाता है, जहां उन्हें वेश्यालयों में या घरेलू गुलामी करने के लिये बेचा जाता है।
राज्य सरकार और मानव तस्करी रोकने के लिए कार्य कर रही धर्मार्थ संस्थाओं ने ज्ञात तस्करों का डाटाबेस तैयार करने सहित कई उपाय किये हैं।
पश्चिम बंगाल पुलिस की बड़ी पहल के रूप में यह पत्र बॉक्स योजना इतनी सफल साबित हुई है कि अब मानव तस्करी के लिये राज्य के सबसे असुरक्षित जिलों के 200 स्कूलों के 20,000 से अधिक छात्रों ने "गुप्त जानकारी साझा" कर मदद मांगी है।
पहल के प्रभाव को स्वीकारते हुये संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ ने पूरे राज्य में इस कार्यक्रम का विस्तार करने के लिए पुलिस के साथ साझेदारी की है।
मुख्य रूप से असुरक्षित जिलों में स्कूली लड़कियों को ध्यान में रखकर शुरू की गई इस पहल का नेतृत्व कर रहे पुलिस अधिकारी अजेय रानाडे ने कहा, "राज्य की लड़कियों की तस्करी की जा रही थी और फिर उन्हें दिल्ली की सड़कों पर मरने के लिये फेंक दिया जाता था।"
छात्रों से बात करने के लिए 2016 में पुलिस अधिकारी पहले सादे कपड़ों में तस्करी के केंद्रों- दक्षिण 24 और उत्तर 24 परगना जिलों के स्कूलों में गये।
रानाडे ने कहा कि कई पुलिसकर्मी बचाव अभियान पर थे और तस्करी से बचाये गये लोगों, विशेषरूप से युवा लड़कियों, की दुर्दशा देखकर "अति भावुक" हो गये थे।
स्कूलों में पहले किशोर छात्र इस योजना में शामिल नहीं होना चाहते थे।
छात्रों तक पंहुचने में पुलिस की सहायता करने वाली लाभ निरपेक्ष संस्था- banglanatak.com की सुरवी सरकार ने कहा, "हमने अपने राज़ साझा करो नाम से एक खेल खेलना शुरू किया और अचानक ढ़ेरों जानकारियां मिलने लगीं।"
कार्यक्रम के तहत पुलिस ने छात्रों को तस्करी के जाल के बारे में जानकारी देने के लिए स्कूलों में समितियां गठित की।
रानाडे ने कहा, "अब लड़कियां अधिक सतर्क नजर आती हैं और हमें जानकारियां मिलनी शुरू हो गई हैं।"
"अगर छात्र की कोई सहपाठी कुछ दिन स्कूल नहीं आती है तो वे इसकी जानकारी हमें दे रहे हैं, स्कूल के मार्ग में घुमने–फिरने वाले अजनबियों के बारे में सूचना दी जा रही है और इनमें से कुछ जानकारियों के आधार पर कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।"
10 साल से अध्यापन का कार्य कर रहे कोटल ने कहा कि पुलिस के समर्थन से उनमें अपने छात्रों की समस्याओं का मुकाबला करने का साहस आया है।
उन्होंने कहा, "पहले कुछ छात्रों ने मदद मांगी लेकिन हम उनके लिये कुछ ज्यादा नहीं कर सके। इस पहल से छात्र, कानून लागू करने वाली एजेंसियां, माता-पिता और शिक्षक एक मंच पर एकजुट हो गये हैं।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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