- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 5 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) दास श्रमिकों के एक समूह को बचाने के बाद उन्हें कानूनी और वित्तीय सहायता देने में अधिकारियों की नाकामी की जांच करेगा।
राष्ट्रीय बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अभियान समिति (एनसीसीईबीडी) के साथ स्थानीय अधिकारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने पिछले सप्ताह के अंत में उत्तरी राज्य जम्मू-कश्मीर में ईंट भट्ठों से लगभग 100 लोगों को मुक्त कराया था।
एनसीसीईबीडी के निर्मल गोराना के अनुसार मजदूरों और उनके परिवारों को छत्तीसगढ़ से तस्करी कर यहां लाया गया था और उनमें से कुछ लोग तो 30 साल से यहां काम कर रहे थे।
गोराना ने कहा, "उन्होंने एक बार भी ईंट भट्ठों से बाहर कदम नहीं निकाला था। यह बंधुआ मजदूरी करवाने के लिए तस्करी का स्पष्ट मामला था।"
भारतीय कानून के तहत बचाए गए लोगों को रिहाई प्रमाण पत्र प्रदान किया जाना चाहिए। यह एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके जरिये उन्हें नकद मुआवजा, नौकरी, भूमि और अपने बच्चों के लिए शिक्षा दिलाने के अधिकार मिलते हैं।
आयोग के रजिस्ट्रार सुरजीत दे ने कहा कि एनएचआरसी ने यह जांच करने का निर्णय लिया है कि जहां मजदूर काम कर रहे थे उन जिलों- रियासी और सांबा के अधिकारियों ने उन्हें यह कागजात क्यों नहीं दिए थे।
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "उन मजदूरों की तस्करी की गई थी। हमने रियासी और सांबा के जिला मजिस्ट्रेट से उनके प्रमाण पत्र जारी करने को कहा है।"
सांबा जिला मजिस्ट्रेट शीतल नंदा ने कहा कि मजदूरों और उनके परिवारों को उनकी इच्छा के विरूद्ध वहां रखने के कोई सबूत नहीं है।
उन्होंने टेलीफोन पर कहा, "जब तक यह सिद्ध नहीं हो जाता है कि वे बंधुआ मजदूर थे यानि उन्हें जबरदस्ती वहां रखा गया था और उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया था तब तक उन्हें रिहाई प्रमाण पत्र देने का सवाल ही नहीं उठता है।"
देश में 1976 बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित है, लेकिन लाखों लोग खेतों, ईंट भट्ठों, चावल की मिलों, वेश्यालयों और घरों में दास के रूप में काम करते हैं। उनमें से अधिकतर लोग वंचित दलित और आदिवासी समुदाय से होते हैं।
वर्ष 2016 में सरकार ने 2030 तक एक करोड़ 80 लाख से अधिक बंधुआ मजदूरों को बचाने की घोषणा की थी। इसके अलावा बचाए गए श्रमिकों के मुआवजे की राशि को पांच गुना बढ़ाने की भी योजना है।
ओडिशा में एद एत एक्शन के साथ प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिये कार्य करने वाले उमी डैनियल ने कहा, "लेकिन कई मामलों में अधिकारी उन्हें बंधुआ मजदूर नहीं मानते हैं और उन्हें केवल उनके राज्यों में वापस भेज देते हैं।"
उनका अनुमान है कि पिछले पांच साल में बचाए गए लोगों में से मात्र 10 से 15 प्रतिशत लोगों को ही रिहाई प्रमाण पत्र दिए गए थे।
पिछले सप्ताहांत में बचाए गए श्रमिकों और उनके परिवारों को दिल्ली में ले जाया गया, जहां उन्होंने प्रमाण पत्रों की मांग में विरोध प्रदर्शन किया था।
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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