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फीचर- तस्करी की गई भारतीय लड़कियों ने शोषण करने वालों के खिलाफ गवाही देकर अपनी आवाज बुलंद की

Wednesday, 10 January 2018 00:01 GMT

Trafficking survivor "Pinki" strums a guitar at her home in Jagannadhapuram in southern India, November 29, 2017. TRF/Anuradha Nagaraj

Image Caption and Rights Information

  • अनुराधा नागराज

    विजयवाड़ा, 10 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारत के एक रॉक बैंड की मुख्‍य गायिका पिंकी इस वर्ष गिटार बजाना सीखना चाहती है।

    19 वर्षीय पिंकी ने कहा कि वह मंच पर "एक लड़के की तरह गिटार झनकारना" और संगीत के जरिये वेश्यालय से बैंड तक की अपनी व्‍यथा को भूलना चाहती है। उसके बैंड को शादियों और पार्टियों में प्रस्‍तुति देने के लिये बुलाया जाता है।

     उसने नए साल का यह संकल्प एक भारतीय अदालत द्वारा दक्षिणी राज्य कर्नाटक में लड़कियों की खरीद-फरोख्‍त के मामले में 40 लोगों को दोषी ठहराए जाने के एक साल बाद लिया है। दोषियों में पिंकी के शोषणकर्ता भी शामिल थे।

     उसकी गवाही की वजह से उसके घर से तस्‍करी कर उसे देह व्‍यापार में ढ़केलने वाली महिला और बल्‍लारी शहर में वेश्यालय का मालिक दोषी पाए गए। बचाए जाने से आठ महीने पहले तक पिंकी उसी वेश्‍यालय में धंधा करती थी।

     आंध्र प्रदेश में अपने गांव के घर में हाथ में गिटार थामे बिस्तर पर एक टेडी बियर के पास बैठी पिंकी ने कहा, "उन्हें 10 साल की जेल की सजा की बजाय आजीवन कारावास का दंड मिलना चाहिए था।"

       "लेकिन मैं उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती। इसके बजाय मैं संगीत और अपने प्रेमी के बारे में सोचना चाहती हूं और आशा है कि इस साल मैं उससे शादी कर लूंगी।"

     एक हजार मील दूर कोलकाता में भी एक 19 साल की लड़की वर्ष 2018 को लेकर काफी उत्सुक है।

     वह अपनी हाई स्कूल की परीक्षाओं की तैयारी कर रही है और इसके बाद वह ऐसे कॉलेज में दाखिला लेना चाहती है, जहां वह दर्शनशास्‍त्र का अध्ययन कर सके।

       2013 में पुलिस ने जब उन्‍हें बल्‍लारी के वेश्‍यालय से छुड़ाया था उस समय ये लड़कियां अपनी किशोरावस्‍था में पहुंची ही थीं।   

    लेकिन वे अदालत में बयान किये गये दुष्‍कर्म और शोषण के दर्दनाक विवरणों के अतीत को चार साल तक भूल नहीं पाई जब तक उनके शोषण करने वालों को दोषी नहीं ठहराया गया।

    अब दोनों लड़कियां अपने भविष्य की योजना बना रही हैं।

    अतीत की घटनाएं

    2013 में पुलिस ने कर्नाटक में बल्लारी के कई वेश्यालयों में छापा मारकर 21 बच्चों सहित 43 महिलाओं को बचाया और नकद राशि तथा बही खातों समेत कई सबूत जब्त किये।

      दोनों किशोरियां उन बचायी गई महिलाओं में शामिल थीं, जिनमें से सात बांग्लादेश और शेष आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और ओडिशा से थीं।

      वेश्‍यालय से बचाने के बाद पिंकी को तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्‍था- प्रज्‍वला द्वारा चलाए जा रहे गृह में रखा गया था। वहां उनसे पूछा गया था कि क्या वे अपने तस्करों के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार हैं या नहीं।

      प्रज्‍वला की संस्थापक सुनीता कृष्णन ने कहा, "पुनर्वास का बड़ा हिस्सा मामले को बंद करना है और गवाही देना मामला बंद करने का हिस्सा है। हम उन्हें उनके साथ जो हुआ उसे भूलने को नहीं कहते हैं, बल्कि इसके बजाय हम उनसे उन घटनाओं से उबरने को कहते हैं।"

     प्रज्‍वला का अनुमान है कि हर साल दो लाख महिलाओं और बच्चों को धमकी और दबाव  देकर जबरन वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जाता है। [http://www.prajwalaindia.com/]

      भारत में अभियान चलाने वालों और सहायता समूह के अनुसार देश में लगभग दो करोड़ व्यावसायिक यौन कर्मी हैं, जिनमें से एक करोड़ 60 लाख महिलाएं और लड़कियां यौन तस्‍करी की शिकार हैं।

      गवाही का कटघरा

     कार्यकर्ताओं का कहना है कि तस्‍करी से बचाये गये उन लोगों के मार्ग में बाधाएं खड़ी की जाती हैं, जो अपने मामलों को अदालत में ले जाने का निर्णय लेते हैं। आमतौर पर तस्कर उन्‍हें डराते और धमकाते हैं।  

     अमेरिका के विदेश विभाग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट व्यक्तियों की तस्‍करी 2017 में कहा गया है कि भारत में पीडि़त की पहचान और उसकी सुरक्षा के उपाय "पर्याप्त और उचित नहीं" हैं।

     तस्करी के मामलों की तुलना में सजा दर कम होने के बारे में बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया, "सरकार ने कभी-कभी मानव तस्करी होने पर किये गये अपराधों के लिये गिरफ्तारी के जरिये पीड़ितों को भी दंडित किया है।"  [https://www.state.gov/j/tip/rls/tiprpt/countries/2017/271205.htm]

      भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में 8,000 से अधिक मानव तस्करी के मामले दर्ज किये गये लेकिन पुलिस द्वारा उनमें से आधे से भी कम मामले अदालत में दायर किये गये और उन मुकदमों में से भी सजा की दर मात्र 28 प्रतिशत थी। [http://ncrb.gov.in/]

     अपने अन्‍य नाम से ही पुकारे जाने वाली पिंकी ने कहा, "वेश्यालय के मालिकों के खिलाफ खड़े होकर तस्करों और वेश्यालय के मालिकों की पहचान करने का विचार बहुत ही खौफनाक था।"

    "लेकिन मैं सोचती रही कि किसी और व्‍यक्ति को इस स्थिति में नहीं होना चाहिए। इस विचार से मुझे अदालत में खड़े होने की हिम्मत मिली।"

     वह बुर्का पहनकर दो बार बल्‍लारी की अदालत में गवाही देने के लिये गयी थी। उस स्थिति को याद करते हुये उसने कहा कि एक पर्दे के उस पार उसका शोषण करने वालों के साथ एक ही कमरे में बैठने से उसे काफी डर लगता था।

      उसने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "न्‍यायाधीश पुरूष थे और मुझे याद है वेश्यालय की अपनी व्‍यथा बताते हुए मैं रो पड़ी थी।"

     "मुझे याद है मैंने उनसे पूछा था कि क्‍या उन्हें दंडित किया जाएगा और उन्‍होंने मुझसे कहा कि आप बगैर किसी चिंता के सच्चाई बताएं।"

      विपक्ष के वकीलों ने यह बताते हुए कि हम अपनी मर्जी से वेश्‍यालयों में गईं थीं सवाल किया कि वे बुर्के में क्यों छिप रही हैं और वे बल्लारी क्‍यों आई थीं।

    पिंकी ने कहा लेकिन सभी युवा महिलाएं अपनी बात पर डटी रहीं और सत्य बयान किया।

      पुलिस ने कहा कि पिंकी और बल्लारी से बचाए गए 17 अन्य लोगों की गवाही से तस्करी का पूरा नेटवर्क ही ठप हो गया, क्‍योंकि दलालों, वेश्यालय मालिकों, ग्राहकों और तस्करों को दोषी ठहराया गया था।

    भविष्‍य की आस

    कुछ समय पहले पिछले साल सजा के बाद पिंकी ने उस डायरी को फाड़ दिया, जिसमें उसने एक साल से भी अधिक समय तक बल्‍लारी वेश्यालय के अपने दुर्दिनों की व्‍यथा लिखी थी।

    यह उस दर्द से निकलने का उपाय था, लेकिन अचानक उसे महसूस हुआ कि उसे अब उस दर्द को कुरेदते रहने की कोई आवश्‍यकता नहीं है।

      बल्‍लारी मामले में पुलिस के साथ मिलकर काम करने वाली धर्मार्थ संस्‍था- जस्टिस एंड केयर की सामाजिक कार्यकर्ता निपा बासु ने कहा, "जब तक निर्णय नहीं आया, तब तक लड़कियां और उनके परिजन चिंतित थे और वे उनकी सुरक्षा को लेकर भय के साए में थे।"

     "कोलकाता वाली लड़की की मां लगातार इस मामले की प्रगति पर नजर रखती थी क्योंकि तस्‍करों के परिवार ने उन्हें धमकी दी थी। वह अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर भयभीत थी।"

      लेकिन नाम न छापने की शर्त पर कोलकाता मॉल के फूड कोर्ट में बैठी हाई स्कूल की छात्रा ने कहा कि उसे अब उतना डर नहीं लगता है।

      इसके बजाय उसने हाल ही की कुछ परीक्षाओं में कक्षा में सबसे अधिक नंबर पाने और पुलिस में भर्ती होने या सामाजिक कार्यकर्ता बनने को लेकर अपनी अनिश्चितता के बारे में बात की। 

       दूसरी ओर पिंकी अपने संगीत प्रदर्शनों को बढ़ाना चाहती है। अब उसके पास एक नयी डायरी है, जो फिल्मी गीतों से भरी है। इन गीतों को वह शादियों या अन्य शो में अपने बैंड की प्रस्‍तुति के दौरान गाती है।

    उसने कहा, "मैं इंटरनेट पर लोकप्रिय गीतों को ढूंढ़कर उन्‍हें याद करती हूं। मैं काफी मेहनत करती हूं क्योंकि संगीत मुझे मुक्त करता है।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

Pinki's song book lies open on a bed at her home in Jagannadhapuram, November 29, 2017. TRF/Anuradha Nagaraj

Prajwala estimates that 200,000 women and children are forced into prostitution through threat and coercion every year. 

Of an estimated 20 million commercial sex workers in India, 16 million women and girls are victims of sex trafficking, say campaign and support groups working in India.

WITNESS BOX

The odds, campaigners say, are pitted against trafficking survivors who decide to take their cases to court, with threats and intimidation from traffickers common.

The 2017 Trafficking in Persons report by the U.S. State Department stated that victim identification and protection in India is "inadequate and inconsistent".

"The government sometimes penalized victims through arrests for crimes committed as a result of being subjected to human trafficking," the report states, pointing to disproportionately low conviction rates relative to the scale of trafficking. 

According to Indian government data, less than half of the more than 8,000 human trafficking cases reported in 2016 were filed in court by the police and the conviction rate in cases that did go to trial was 28 percent. [http://ncrb.gov.in/ ]

"The thought of standing up to the brothel owners and identifying the traffickers and brothel owner was very, very scary," said Pinki, who goes by an alias.

"But I kept thinking that no one else should be in this situation. That gave me some courage to stand in court."

Hiding herself in a burqa, she travelled twice to the court in Ballari to testify. Sitting in the same room as her abusers, separated only by a curtain, made her fearful, she recalled.

"The judge was a man and I remember breaking down as I told them about my days in the brothel," she told the Thomson Reuters Foundation.

"I remember asking him if they would be punished and he told me not to worry and tell the truth."

Defence lawyers questioned why they were hiding in burqas, and what had brought them to Ballari, suggesting they were in the brothels of their own will.

But all of the young women stuck to their story, and told the truth, Pinki said.

The testimony of Pinki and 17 other Ballari survivors shut down an entire trafficking network, with the conviction of pimps, brothel owners, customers and traffickers, police said.

LOOKING AHEAD

Sometime last year, after the convictions, Pinki tore up a diary she had written for over a year to record her days at the Ballari brothel.

It had been a coping mechanism, but she suddenly felt she didn't need to hang on to it.

"Until the verdict came, the girls and their families were worried and scared about their safety," said Neepa Basu, a social worker with charity Justice and Care, that worked closely with the police on the Ballari case.

"The mother of the girl from Kolkata constantly tracked (progress in) the case because the traffickers' family had threatened her. She was scared for her daughter's safety."

But sitting in the food court of a Kolkata mall, the high school student, who did not want to give her name, said she was not so scared anymore.

Instead she talked about coming top of the class in some of her recent tests, and how she is undecided about whether to become a policewoman or a social worker.

Pinki, on the other hand, is determined to expand her music repertoire. She now has another diary, full of movie songs she sings when her band is performing at weddings or other shows.

"I check for popular numbers on the internet and then learn them," she said. "I practice hard because the music sets me free."

(Reporting by Anuradha Nagaraj, Editing by Ros Russell; Please credit the Thomson Reuters Foundation, the charitable arm of Thomson Reuters, that covers humanitarian news, women's rights, trafficking and climate change. Visit www.trust.org)

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

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