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बालिका की मौत से उजागर हुई दासता, भारतीय कपड़ा उद्योग का 'कड़वा सच'

by अनुराधा नागराज | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Friday, 12 January 2018 11:29 GMT

-    अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 12 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – भारतीय मानवाधिकार आयोग ने आदेश दिया है कि तमिलनाडु सरकार को कपड़ा मिल में बिजली का करंट लगने से मारी गई बालिका के माता-पिता को मुआवजा देना चाहिये, जहां वे बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करते थे।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि गुरुवार के इस आदेश से कपड़ा उद्योग के केंद्र- तमिलनाडु सहित पूरे देश में कर्ज चुकाने के लिए गुलामों के रूप में काम करने वाले लाखों लोगों की दुर्दशा उजागर हुई है।

     इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में ले जाने वाली धर्मार्थ संस्‍था- विझुथूगल (जड़े) के थंगावेल मारन ने कहा, "कई लोग इस क्षेत्र की कताई मिलों में ऋण बंधन में जकड़े हुए हैं।"

     उन्होंने कहा, "उनके बारे में कोई नहीं जानता है। ऐसी दुर्घटनाएं होने पर ही दासता के मामले सामने आते हैं। यह इस उद्योग का कड़वा सच है।"

    जब भी मजदूर शादी या अंत्येष्टि के लिए अपने घर जाते हैं तो नियोक्ता अक्सर उनके बच्चों को अपने पास रख लेते हैं, ताकि वे वापस काम पर आएं।

     करुणैयाम्‍मल और बालासुब्रमणि बाथरान ने कहा कि 2014 में एक दिन के लिये अपने घर जाते समय उन्‍हें उनकी छह साल की बेटी नलिनी को कारखाने में ही छोड़ने को मजबूर किया गया था।

     बालासुब्रमणि ने कहा, "हम सुबह ही कारखाने से निकल गये थे और शाम को जब हम वापस आए, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।"

     उसने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को फोन पर बताया, "उन्होंने कहा कि उसने गलती से बिजली के तार को छु लिया था। इसके अलावा कोई और स्पष्टीकरण नहीं दिया गया और ना ही किसी प्रकार की मदद की गई थी।"

     भारत में 1976 से बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित है, लेकिन यह आज भी ईंट भट्ठों, चावल मिलों और अन्य उद्योगों में व्यापक रूप से प्रचलित है।

   अधिकतर बंधुआ मजदूरों को ब्‍याज और गलत हिसाब-किताब के कारण अपने सिर पर चढ़ा भारी कर्ज चुकाने के लिये गुलाम बनाया जाता है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे अक्सर उधार ली गई राशि से दस गुना अधिक का भुगतान करते हैं।

     नियोक्ता आमतौर पर बंधुआ मजदूरों को बाहर जाने-आने नहीं देते हैं और उन्हें कार्यस्थल के परिसर के भीतर ही रहने को मजबूर किया जाता है।

   

     अपनी बेटी की मौत के समय बाथरा दम्‍पति 60,000 रुपये का ऋण चुकाने के लिए करीबन दो साल से काम कर रहे थे।

     एनएचआरसी ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया है कि यह माना जाए कि वह दम्‍पति ऋण बंधक थे और कानून के मुताबिक उन्हें मुआवजा दिया जाए।  

       दासता रोधी संगठन- इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के अनुसार तमिलनाडु में 11 उद्योगों   सहित अरबों रुपये के कपड़ा उद्योग में पांच लाख मज़दूर ऋण बंधन में फंसे हुए हैं।

 

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

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