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भारत सरकार की मानव तस्कीरों को आजीवन कारावास देने के ‘ऐतिहासिक’ कानून की मंजूरी

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 28 February 2018 17:58 GMT

A labourer is silhouetted against the backdrop of an induction furnace inside a steel factory on the outskirts of Jammu June 24, 2014. REUTERS/Mukesh Gupta

Image Caption and Rights Information

  • अनुराधा नागराज

चेन्नई, 28 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नए ऐसे सख्‍त कानून को मंजूरी दे दी है, जिसमें मानव तस्करों को आजीवन कारावास की सजा देने का प्रावधान है। यह कानून तेजी से बढ़ते इस अपराध की लगाम कसने में मददगार होगा।

मानव तस्‍करी के इस विधेयक को मंजूरी के लिये मार्च के संसद सत्र के दौरान सदन में रखा जायेगा। इस विधेयक का उद्देश्य वेश्यालयों में छापे के दौरान बचायी गयी महिलाओं और लड़कियों जैसे पीडि़तों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना और उनको जेल भेजने से बचाना है।

पिछले वर्ष की एक महीने की यात्रा का उल्लेख करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने एक बयान में कहा, "यह उन एक करोड़ 20 लाख लोगों की जीत है, जो इस मांग के समर्थन में 11,000 किलोमीटर की लंबी भारत यात्रा में शामिल हुये थे।"

"बच्‍चों की तस्करी कर एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य भेजना संगठित अपराध बनता जा रहा है। देश में कड़े तस्करी रोधी कानून अपराधियों के लिये सशक्‍त संदेश होगा।"

तस्करी के विरूद्ध अभियान में इसे "ऐतिहासिक" उपलब्धि बताते हुए सत्यार्थी ने संसद से इस विधेयक को पारित करने का आग्रह किया है।

इस व्यापक विधेयक में तस्करी रोधी मौजूदा कानूनों को एकजुट किया गया है। इसका उद्देश्‍य  दक्षिण एशिया में इस तरह के अपराधों के खिलाफ लड़ाई में भारत को अग्रणी बनाना है। दक्षिण एशिया में जबरन मजदूरी करवाने, भीख मंगवाने और जबरन शादी करवाने जैसे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। 

ग्रामीण क्षेत्रों के कई गरीब लोगों को अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा दिया जाता है, लेकिन उनसे  खेतों या ईंट भट्ठों में जबरन मजदूरी करवाई जाती है, घरों में नौकरों के तौर पर गुलाम बनाकर रखा जाता है या उन्‍हें वेश्यालयों को बेच दिया जाता है।

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2016 में मानव तस्करी के 8,132 मामले दर्ज किये गये थे, जो 2015 की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक हैं।

अपराध की भयावहता को स्वीकार करते हुए एक सरकारी बयान में कहा गया है कि इस विधेयक में "कमजोर लोगों विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले इस व्‍यापक लेकिन अदृश्‍य अपराध से निपटने के  प्रावधान हैं।"

नए कानून के तहत तस्कर को 10 साल या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। दंड में कम से कम एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान भी शामिल है।

सरकार का कहना है कि "राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संगठित सांठगांठ समाप्‍त करने के लिए विधेयक में संपत्ति जब्त करने और अपराध के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के भी प्रावधान हैं।"

इस विधेयक में तस्करी के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिये विशेष अदालतों और एक वर्ष की समय सीमा में अदालती कार्रवाई पूरी करने तथा पीडि़त को उसके देश भेजने के भी प्रावधान हैं।

कानून के तहत पीड़ितों को सामान्‍य जीवन शुरू करने में सहायता के लिए पुनर्वास कोष बनाया जायेगा और वे अपनी पहचान उजागर किये बगैर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही दे सकेंगे।

पीडि़तों के बचाव, सुरक्षा और पुनर्वास की निगरानी के लिए जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर तस्करी रोधी समितियां गठित की जायेंगी।

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- केटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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