- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 28 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दो वेश्यालय मालिकों को मानव तस्करी, दुष्कर्म और बच्चों के यौन उत्पीड़न के लिये आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। यह ऐसे देश में बेमिसाल निर्णय है, जहां मानव तस्करी के पांच में से दो से भी कम मामलों में ही गुनाहगारों को सजा मिल पाती है।
अभियोक्ता सुनील कुमार ने कहा कि "बचायी गयी बहादुर पीडिताओं" के सबूतों के आधार पर बिहार के गया में वेश्यालय चलाने वाले पंचो सिंह और उसकी पत्नी छाया देवी को दोषी पाया गया और मौजूदा तस्करी रोधी कानूनों के तहत उन्हें अधिकतम सजा दी गई।
गया की अदालत में 2015 में पुलिस छापे के दौरान वेश्यालय से बचायी गयी नौ लड़कियों में से चार की गवाही पर सुनवाई की गई थी।
कुमार ने फोन पर दिये साक्षात्कार में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "अधिकतर मामलों में बचायी गयी लड़कियां अपने घर चली जाती हैं और फिर गवाही देने के लिए कभी वापस नहीं आती हैं।"
"लेकिन इस मामले में कुछ लड़कियों ने वापस आकर अपनी आपबीती भयावहताओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने अदालत को उनके जबरन गर्भपात, दुष्कर्म और कुछ लड़कियों द्वारा आत्महत्या करने के बारे में बताया।"
उनमें से एक किशोरी पश्चिम बंगाल के हावड़ा से थी, जिसका 11 वर्ष की उम्र में अपहरण किया गया था और उसे तीन साल तक एक दिन में कम से कम 20 लोगों के साथ जबरन यौन संबंध बनाने को मजबूर किया जाता था।
अदालत में गवाही देने वालों में यह किशोरी भी थी। एक रेलवे स्टेशन पर दो तस्करों में से एक को पहचानने के लिए 2017 में वीरता पुरस्कार पाने वाली इस किशोरी की मदद से उस तस्कर को गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने बहादुरी से गवाही देने के लिये आगे आने वाली सभी चार पीड़िताओं को साढ़े चार- साढ़े चार लाख रुपये का मुआवजा दिया और बचायी गई अन्य लड़कियों को तीन-तीन लाख रुपये दिये।
गैर-सरकारी संगठनों के अनुसार भारत में लगभग दो करोड़ व्यावसायिक यौन कर्मी हैं, उनमें से एक करोड़ 60 लाख महिलाएं और लड़कियां यौन तस्करी की शिकार हैं।
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में दर्ज 8,000 से अधिक मानव तस्करी के मामलों में से पुलिस ने आधे से भी कम मामले अदालत में दर्ज कराये थे और उन मुकदमों में से मात्र 28 प्रतिशत मामलों में सजा सुनाई गई थी।
अमरीका के विदेश विभाग की व्यक्तियों की तस्करी पर 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पीडि़त की पहचान सुरक्षित रखने और उसकी सुरक्षा के उपाय "पर्याप्त और तर्कसंगत नहीं" हैं।
कार्यकर्ताओं ने मंगलवार के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इससे अन्य पीड़ितों को भी आगे आकर गवाही देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्था- जस्टिस एंड केयर के विधि प्रमुख एड्रियन फिलिप्स ने कहा, "यह देखकर अति प्रसन्नता होती है कि तस्करी से बचाये गये अधिक से अधिक लोग न्याय पाने की अपनी लड़ाई में आगे आ रहे हैं, जिसके कारण अधिक अपराधियों को सजा मिल रही है।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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