- अनुराधा नागराज
तिरुट्टनी, 19 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दासता से बचाए गए भारतीय श्रमिक दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के ईंट भट्ठों, चावल मिलों और कारखानों में काम कर रहे अन्य बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने के लिये एकजुट हो रहे हैं।
तस्करी रोधी समूह- इंटरनेशनल जस्टिस मिशन (आईजेएम) के अनुसार तमिलनाडु के 11 उद्योगों में लगभग पांच लाख मजदूर ऋण बंधन के जाल में फंसे हुए हैं, जिन्हें नियोक्ताओं और उधारदाताओं का ऋण चुकाने के लिए काम करना पड़ता है।
आईजेएम की 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि अधिकतर मजदूर ईंट भट्ठों पर गुलामी करते हैं, लेकिन परिधान सहित अन्य उद्योगों में भी दासता का प्रचलन है।
45 वर्षीय वरलक्ष्मी गोपाल ने 2004 में गुलामी से बचाए जाने के पहले तिरुट्टनी शहर के नजदीक एक चावल मिल में सात वर्ष तक बंधुआ मजदूरी की थी।
2014 में दासता से मुक्त कराये गये बंधुआ मजदूर संघ (आरबीएलए) में शामिल होने के बाद से ही उसने भी अन्य मजदूरों को दासता से बचाने पर ध्यान केंद्रित किया।
गोपाल ने कहा, "मैं अक्सर इन स्थानों पर जाकर अभिनय करती हूं कि मुझे काम की तलाश है और कभी-कभी मैं ईंट भट्ठे की मालकिन के रूप में मेरे भट्ठे से भागे मजदूरों की ढ़ूढ़ने का नाटक करती हूं।"
"मुझे पता है कि यह खतरनाक है, लेकिन मुझे ऐसा करना पड़ता है।"
बंधुआ मजदूरी का सबूत मिलते ही वह इसके बारे में पुलिस को बताती है। उसने बताया कि वह कम से कम 10 बचाव अभियानों में शामिल हो चुकी है।
चार आरबीएलए के सदस्य अब पूरे राज्य में जबरन मजदूरी करवाए जाने वाले स्थानों विशेष रूप से ईंट भट्ठों और चावल मिलों पर गुलामों को ढ़ूंढ़ने में लगे हैं, क्योंकि बारिश से पहले अप्रैल से मई तक यहां सबसे अधिक काम होता है।
2014 में पहला आरबीएलए गठित किया गया था और उसके बाद से तमिलनाडु में तीन और आरबीएलए बन गए हैं।
गोपाल ने कहा कि पिछले साल इसके सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी इस बात का सबूत है कि ऋण बंधन समाप्त करने का आंदोलन सुदृढ़ हो रहा है।
1976 से प्रतिबंधित होने के बावजूद बंधुआ मजदूरी व्यापक रूप से प्रचलित है, जिसके कारण सरकार इस पर लगाम कसने के अपने प्रयास बढ़ा रही है। सरकार की 2030 तक एक करोड़ 80 लाख से अधिक लोगों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने की योजना है।
आरबीएलए का समर्थन करने वाले आईजेएम के कुरलआमुदन तांडवरायन ने कहा, "कानून लागू करने में काफी खामियां और चुनौतियां हैं।"
उन्होंने कहा, "लेकिन अधिकारी उन बचाये गये लोगों की आवाज़ की अवहेलना नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने वर्षों इस पीड़ा के दंश को झेला है। इन संगठनों के गठन से अपने संघर्ष के लिए उन्हें एक मंच उपलब्ध हुआ है।"
एक अन्य आरबीएलए सदस्य अरुल एगांबवन ने कहा कि उसे आठ साल की उम्र में उसके दादा दादी के घर से पत्थर की खदान में काम करने के लिए ले जाया गया था। उसे बचाये जाने से पहले उसने अपने पिता का 10,000 रुपये का कर्ज चुकाने के लिये 10 साल तक काम किया था।
एगांबवन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "जब मुझे मुक्त कराया गया उस समय मुझे बाहरी दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था।"
उसने कहा, "सरकारी अनुदान के लिए आवेदन करने से लेकर काम कहां ढूंढना है जैसी छोटी-बड़ी जानकारी लेने के लिये मैं पहले से बचाये गये लोगों के पास जाता था। मैं अब वह एहसान चुकाना चाहता हूं।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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