- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 24 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक प्रमुख कार्यकर्ता का कहना है कि बच्चों से दुष्कर्म के लिये मौत की सजा के नये कानूनी प्रावधान से देश में देह व्यापार के लिये बच्चों को बेचने वाले लोगों की नकेल नहीं कसी जा सकती है, क्योंकि तस्करी के मामलों में कभी कभार ही यह कानून लागू होता है।
भारत के यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम में 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मृत्युदंड देने के लिये संशोधन किया गया है। पहले इसके तहत बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वालों के लिये आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान था।
प्रतिष्ठित ऑरोरा ह्यूमैनिटेरियन पुरस्कार के लिए नामित सुनीता कृष्णन का कहना है कि अधिकारी इस कानून के तहत बाल यौन तस्करी के मामले नहीं चलाते हैं।
कृष्णन ने कहा, "अगर तस्करी के मामले में भी पोक्सो लागू किया जाये तथा तेजी से अदालती कार्रवाई कर निर्णय सुनाये जाये, तभी मौत की सजा कारगर हो सकती है। लेकिन तस्करी के बहुत ही कम मामलों में पोक्सो लागू किया जाता है।"
बच्चों के साथ दुष्कर्म के कई मामलों पर देशभर में फैले आक्रोश को देखते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक आपातकालीन बैठक के बाद 21 अप्रैल को भारतीय मंत्रिमंडल ने इस संशोधन को मंजूरी दी थी।
कार्यकर्ताओं के अनुसार लगातार बच्चों और शिशुओं के बढ़ते यौन तस्करी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा आक्रोश कभी नहीं देखा गया।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016 में 8,000 से अधिक मानव तस्करी की शिकायतें दर्ज की गईं, जो 2015 की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक हैं। बचाये गये लगभग 24,000 पीड़ितों में से 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे थे।
सोशल मीडिया पर दुष्कर्म के वीडियो के प्रसार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने वाली कृष्णन ने कहा कि इंटरनेट से बाल यौन संबंधों के वीडियो की मांग रही है, जिसमे तस्करों का असली चेहरा भी सामने नहीं आ पाता है।
तस्कारी रोधी धर्मार्थ संस्था- प्रज्वला की सह-संस्थापक कृष्णन ने कहा, "अब बच्चों और शिशुओं के साथ दुष्कर्म को रिकॉर्ड कर अश्लील वेबसाइटों पर अपलोड किया जाता है या सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है।"
कृष्णन का कहना है कि अब अधिकारी इस अपराध के बारे में अधिक जागरूक हो रहे हैं, लेकिन इससे अधिक कार्रवाई नहीं की जा रही। सामूहिक दुष्कर्म पीडि़ता कृष्णन की हैदराबाद स्थित धर्मार्थ संस्था ने पिछले दो दशक में कई तस्करी पीड़ितों को बचाया और उनका पुनर्वास कराया है।
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "जिस तेजी से यह समस्या बढ़ रही है उसकी तुलना में कार्रवाई काफी कमजोर है।"
कृष्णन ने कहा कि अधिकारी वर्तमान कानूनों के तहत दलालों, वेश्यालय के प्रबंधकों और तस्करों पर मुकदमा चलाते हैं, लेकिन यौन दासता के लिये तस्करी किये गये बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वालों को शायद ही कभी गिरफ्तार किया जाता है।
देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री से सम्मानित कृष्णन ने कहा, "जब तक कार्रवाई करने के लिये हम एकजुट होंगे तब तक कई जीवन तबाह हो जायेंगे।"
ऑरोरा पुरस्कार के लिये कृष्णन के साथ म्यांमार के त्रस्त रोहिंग्या समुदाय के वकील और नेता क्यॉ हला आंग और अमेरिका जाने वाले प्रवासियों के लिए आश्रय उपलब्ध कराने वाले मैक्सिको के हेक्टर टॉमस गोंज़ालेज कैस्टिलो को भी नामित किया गया है।
आर्मेनिया की संस्था- 100 लाइव्स द्वारा संस्थापित ऑरोरा पुरस्कार मानवता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रति वर्ष प्रदान किया जाता है। यह एक वैश्विक पहल है जिसके माध्यम से 1915 के नरसंहार का स्मरण किया जाता है। 1915 में ओटोमन मुसलमानों ने अर्मेनिया के 15 लाख ईसाईयों की हत्या की थी।
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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