×

Our award-winning reporting has moved

Context provides news and analysis on three of the world’s most critical issues:

climate change, the impact of technology on society, and inclusive economies.

कार्यकर्ताओं का कहना, विश्व बैंक समर्थित चाय बागानों में भारतीय श्रमिकों की मौत हो रही है

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Friday, 27 April 2018 08:35 GMT

Tea garden workers carrying tea leaves over their heads after plucking them from a tea estate, walk at Jorhat in Assam, India, April 20, 2015. REUTERS/Ahmad Masood

Image Caption and Rights Information

-       अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 27 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)– धर्मार्थ संस्‍थाओं ने शुक्रवार को एक आधिकारिक शिकायत में कहा कि पिछले दो वर्षों में आंशिक रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित भारतीय चाय बागानों में कम से कम सात श्रमिकों की मौत हुई है।

     धर्मार्थ संस्‍थाओं का कहना है कि विश्व बैंक के अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) की जवाबदेही प्रणाली- अनुपालन सलाहकार लोकपाल (सीएओ) की 2016 की जांच में खुलासा किए जाने के बाद भी कार्यस्‍थल पर शोषण और दयनीय परिस्थितियां वैसी ही हैं।

      आईएफसी और टाटा ग्लोबल बेवरेजेज ने 2009 में अमलगमेटेड प्लांटेशंस प्राइवेट लिमिटेड (एपीपीएल) की स्थापना की थी, जिसमें आंशिक स्वामित्व श्रमिकों का है। इसका लक्ष्‍य पूर्वोत्तर राज्य असम में पहले टाटा द्वारा चलाये जा रहे चाय बागानों से श्रमिकों का उत्‍पीड़न समाप्त करना था।

     पीपुल्स एक्शन फॉर डेवलपमेंट के विल्फ्रेड टॉप्‍नो ने कहा, "नौ साल बाद भी हम चाय बागानों के श्रमिकों के काम संबंधित दुर्घटनाओं में मारे जाने, लंबे समय तक खतरनाक कीटनाशकों के संपर्क में रहने और उनके लिये पर्याप्त चिकित्सा देखभाल की कमी के बारे में सुन रहे हैं।"

     2016 की जांच के बाद आईएफसी ने कहा कि वह एपीपीएल के साथ मिलकर परिस्थितियों में सुधार के लिए कार्य कर रहा था। लेकिन सीएओ को भेजी अपनी शिकायत में सिफारिश करने वाले समूहों ने कहा कि पर्याप्त उपाय नहीं किये गये हैं।

      अकाउंटेबिलिटी काउंसल के अनिरुद्ध नागर ने कहा, "विश्व बैंक सीएओ के घातक निष्कर्षों का समाधान करने में अपने रुतबे का इस्‍तेमाल करने में पूरी तरह असफल रहा है।"

    एक ईमेल बयान में  टाटा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया।

     कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि एपीपीएल में चाय बागान के श्रमिकों की कथित मौतों के बारे में बयान गलत है।"

     उन्होंने कहा कि एपीपीएल श्रमिकों की सुरक्षा के लिये कीटनाशकों के इस्‍तेमाल को कम करने, सुरक्षा उपकरण देने और चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने सहित कई उपाय कर रहा है।

    आईएफसी ने भी सुधारों का हवाला देते हुए कहा कि 2017 की एक निष्‍पक्ष मूल्यांकन रिपोर्ट में सभी क्षेत्रों में प्रगति दर्शायी गयी है और कहा कि श्रमिकों की मौत की परिस्थितियों की जांच की जा रही है।

      प्रवक्ता आरॉन शेन रोजेनबर्ग ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को एक ईमेल बयान में बताया, "किसी की भी मौत दुखद है और हमारी सहानुभूति उन लोगों के साथ है, जिन्‍होंने अपने परिवार के प्रिय सदस्यों को खो दिया है।"

     धर्मार्थ संस्‍थाओं ने अपनी शिकायत में चाय पत्ती चुनने की मशीन में दो अंगुलियां कटने के बाद उचित चिकित्सा देखभाल नहीं होने पर मारे गये एक 32 वर्षीय मजदूर और कीटनाशक के डिब्बे ले जाते समय मारे गये अन्‍य तपेदिक पीडि़त श्रमिक का हवाला दिया था।

   लाभ-निरपेक्ष धर्मार्थ संस्‍था- नज़दीक की जयश्री सातपूते ने कहा, “चिकित्सा देखभाल पर खर्च की बात तो छोड़ें श्रमिक अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नही कर पाते हैं, जो एपीपीएल अस्पतालों में उचित देखभाल नहीं होने के कारण बहुत जरूरी है।

      विश्‍व के दूसरे सबसे बड़े चाय ब्रांड टेटली के स्‍वामित्‍व वाली टाटा ग्लोबल बेवरेजेज में एपीपीएल की 41 प्रतिशत हिस्सेदारी है और आईएफसी का 20 प्रतिशत हिस्सा है तथा शेष हिस्‍सा श्रमिकों और छोटी कंपनियों का है।

     30,000 से अधिक रोजगार पैदा करने और श्रमिकों के शेयरधारक स्वामित्व को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से आईएफसी ने 8.7 करोड़ डॉलर की परियोजना में 78 लाख डॉलर निवेश किया था।

      2009 में एपीपीएल के गठन के समय टाटा और आईएफसी ने शपथ ली थी, जिसमें  श्रमिकों की मजदूरी बढ़ाने, उनके लिये पर्याप्त आवास और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने,  स्वच्छता रखने और उनका कीटनाशकों से संपर्क कम करना शामिल था।

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

-->