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भारतीय अदालतें मानव तस्करी से बचाए गए लोगों को तेजी से दिला रही हैं न्याय

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 26 July 2018 09:52 GMT

ARCHIVE PHOTO: A rescued bonded labour survivor poses for a picture at her residence on the outskirts of New Delhi November 2, 2012. REUTERS/Mansi Thapliyal

Image Caption and Rights Information

  • अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 26 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – देश में मानव तस्करी के मामलों में तेजी से दिए गए कई कानूनी आदेशों से लम्‍बे समय से अदालती लड़ाई लड़ने वाले तस्‍करी से बचाए गए हजारों लोगों के मन में आशा की किरण जगी है। लेकिन जानकारों ने आगाह किया है कि अधिकतर पीड़ित अब भी न्याय से वंचित हैं।

     पिछले कुछ महीनों में अदालतों ने तस्करों को असाधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई, अन्य आरोपी व्यक्ति को जमानत नहीं दी और मुकदमा जारी रहने के बावजूद पीड़ित को मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया।

      ऐसे देश में जहां तस्करी के मामले अगर अदालत में पंहुचते भी हैं तो वे अक्सर लम्बित पड़े रहते हैं, ऐसे में कुछ लोग इस प्रकार के कानूनी निर्णयों को न्यायाधीशों के सुधारवादी संकेतों के रूप में देखते हैं।

       तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्‍था इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के साजी फिलिप ने कहा, "न्यायपालिका बचाए गए लोगों के लिए बेहतर न्‍याय का मार्ग प्रशस्त कर रही है।"

     उन्होंने कहा, "हाल के निर्णयों में सुदृढ़ जांच करने की आवश्यकता पर बल देकर, तस्करों को आसानी से जमानत नहीं देकर और बचाए गए लोगों को मुआवजा दिलाकर नयी मिसाल कायम की गई है।"

    भारत में मानव तस्करी की जांच, मुकदमे और सजा की दर कम है।

    सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016 में पुलिस को प्राप्‍त हुई 8,000 से अधिक मानव तस्करी की शिकायतों में से 4,000 से कम मामलों में अदालती कार्रवाई की गई थी और जिन मामलों की सुनवाई हुई उनमें सजा की दर मात्र 28 प्रतिशत थी।

      कार्यकर्ताओं का कहना है कि दर्ज किए गए मामले पूरे देश में होने वाली तस्करी की घटनाओं का अंश मात्र हैं।

       सेक्स ट्रैफिकिंग एंड द लॉ के लेखक सरफराज अहमद खान ने कहा कि हाल के अदालत के फैसलों को इसी परिप्रेक्ष्य में लिया जाना चाहिए।

    उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इन फैसलों से हमारे मन में उम्‍मीद जगती है, लेकिन यह कुल मामलों का केवल 0.1 प्रतिशत है।"

  कानून व्‍यवस्‍था

    इसी माह पश्चिम बंगाल में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रवि कृष्ण कपूर और जॉयमाल्या बागची ने एक होटल की मालकिन की जमानत रद्द कर दी। उसने कहा था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसके होटल परिसर में तस्करी की गई लड़कियों और महिलाओं का यौन शोषण हो रहा था।

   अपने आदेश में न्यायाधीशों ने कहा कि "महिलाओं और नाबालिगों की तस्करी की समस्‍या खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है।" उन्‍होंने कार्रवाई करने में नाकाम रहने के लिए पुलिस को फटकार भी लगाई।

     कपूर और बागची ने अपने आदेश में लिखा, "देह व्‍यापार में महिलाओं और बच्चों के यौन शोषण जैसे गंभीर अपराध की जिस अनमने ढंग से जांच और अदालती कार्रवाई हो रही है वह चिंता का विषय है।"

   उन्होंने कहा कि पुलिस को शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर तस्‍करी रोधी इकाइयों को सतर्क करना चाहिए।

  मार्च में बिहार के गया में बच्चों के तस्करी, उनके साथ दुष्‍कर्म और यौन शोषण के आरोप में दो वेश्‍यालयों के मालिकों को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, जो ऐसे मामलों में दुर्लभ दंड है।

    इसी महीने एक अन्य मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि तस्करी से बचाइ गइ पीडि़ता को मुआवजा देने में देरी करना "अति अमानवीय" होगा। न्‍यायालय ने सुनवाई पूरी नहीं होने के बावजूद राज्य के अधिकारियों को 10 दिन के भीतर पीडि़ता को मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया।

     पश्चिम बंगाल में एक सरकारी वकील प्रोदीप्‍तो गांगुली ने कहा कि अब अदालत का आदर्श वाक्य है कि "यह अवैध व्यापार रूकना चाहिए"। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अन्‍य राज्‍यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक मानव तस्करी के मामले दर्ज किए गए हैं।

   उन्होंने हाल के "ऐतिहासिक" निर्णयों की सराहना की, लेकिन आगाह किया कि अभी भी अदालती कार्रवाई में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  गांगुली ने फोन पर बताया, "अभियुक्त को आसानी से जमानत मिल जाती है, पीड़ितों को धमकाया जाता है और उन्हें बयान बदलने को मजबूर किया जाता है, जिससे आरोपी को सजा मिलना मुश्किल हो जाता है।"

    सेक्स ट्रैफिकिंग एंड द लॉ के लेखक खान ने कहा कि हाल ही में न्याय पाने वाले पीड़ितों के समर्थन में वकालत करने वाले समूह थे।

  उन्होंने कहा, "अन्य मामलों में पीड़ितों को न्यायिक प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं होती है। वे अक्सर दोबारा पीड़ित होते हैं।

   

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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