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परिजनों से मिलाने की लचर व्यसवस्था। से बचाये गये बाल श्रमिक असुरक्षित- शोधार्थी

by रीना चंद्रन | @rinachandran | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 22 March 2016 10:51 GMT

In this file September 20, 2012 photo, a boy carries coal at an open cast coal field at Dhanbad district in the eastern Indian state of Jharkhand. REUTERS/Ahmad Masood

Image Caption and Rights Information

  मुंबई, 22 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)- हारवर्ड के शोधार्थियों का कहना है कि तस्‍करी पीडि़त बाल श्रमिकों को बचाने और उनके परिवार से उन्‍हें दोबारा मिलाने में खराब समन्‍वय, जवाबदेही की कमि और अपर्याप्‍त संसाधनों के कारण बच्‍चों को और नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।  

   इस सप्‍ताह जारी एक रिपोर्ट में शोधार्थियों ने कहा कि बच्‍चों को पहले जैसी ही परिस्‍थितियों में वापस भेजने के वर्तमान रुख के बजाय, इन मुद्दों के समाधान के लिये व्‍यापक और निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये, क्‍योंकि वहां से उनकी फिर तस्‍करी हो सकती है।

   हारवर्ड विश्‍वविद्यालय के एफएक्‍सबी स्‍वास्‍थ्‍य और मानवाधिकार केंद्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि, "आर्थिक कारणों से बच्‍चों की दोबारा तस्‍करी के जोखिम को कम करने के लिये उनके परिवार वालों को व्‍यवस्थित और लगातार सहायता देने की आवश्‍यकता है।"  

  अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि भारत में पांच से 17 वर्ष के 57 लाख बाल मजदूर हैं।

  इनमें से अधिकतर खेतों में काम करते हैं और कम से कम एक चौथाई बच्‍चें निर्माण क्षेत्र में, वस्‍त्रों पर कढ़ाई करने, कालीन बुनने, माचिस की तीली या बीड़ी सिगरेट बनाने का काम करते हैं।

  कई बच्‍चें ईंट भट्ठों और खदानों में उनके माता-पिता की मदद करते हैं। कई दुकानों में, रेस्‍टोरेंट और होटलों में काम करते हैं तथा कई मध्‍यम वर्गीय घरों में नौकर होते हैं।

   हारवर्ड के अध्‍ययन में कहा है गया कि बाल मजदूरों को बचाने में जानकारी के लिये और छापे मारने में धर्मार्थ संस्‍थाओं तथा कार्यकर्ताओं पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है, क्‍योंकि स्‍थानीय पुलिस और सरकारी अधिकारी योजना बनाने में कभी-कभार ही शामिल होते हैं।

  य‍ह अध्‍ययन बिहार में किया गया, जहां से कई बाल श्रमिकों को नई दिल्‍ली और राजस्‍थान भेजा जाता है।

  इसमें कहा गया है कि अपर्याप्‍त संसाधनों और संपर्क की कमि से बचाव की योजना और कार्रवाई में काफी खामियां होती है। उल्‍लंघन करने वाले मालिकों के खिलाफ भी कोई आपराधिक जांच नहीं की जाती है।

   भारत सरकार का कहना है कि वह बाल श्रम समाप्‍त करने के लिये प्रतिबद्ध है। 2011 में 14 या उससे कम आयु के बाल मजदूरों की संख्‍या घट कर 45 लाख हो गई है, जो एक दशक पहले एक करोड़ 26 लाख थी।

    नई दिल्‍ली में मुख्‍य श्रम आयुक्‍त कार्यालय से ओंकार शर्मा ने कहा, "गैर सरकारी संगठनों और स्‍थानीय पुलिस से पर्याप्‍त समन्‍वय के साथ हमारी बचाव और पुर्नवास की व्‍यापक रणनीति है, जो स्‍पष्‍ट रूप से प्रभावी और सफल है।"  

 उन्‍होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हम बच्‍चों की अधिक सुरक्षा के लिये कानून को भी कड़ा कर र‍हे हैं और हमें उम्‍मीद है कि यह जल्‍दी ही संसद में भी पारित हो जायेगा।"

  वर्तमान कानून के तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर केवल 18 खतरनाक कारोबार और खनन, कीमती नगों को तराशने और सीमेंट निर्माण जैसी 65 इकाईयों में काम करने पर प्रतिबंध है।

  अगर संसद में संशोधित कानून पारित हो जाता है, तो इसके अंतर्गत 15 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए नई श्रेणी सहित सभी क्षेत्रों में 14 वर्ष के कम आयु के बच्चों से काम करवाना गैर कानूनी होगा।

 लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी सहित बाल अधिकार के हिमायतियों ने इसस कानून के दो अपवादों पर चिंता जताई है। यह अपवाद है- पारिवारिक कारोबार में परिवार की मदद के लिए बच्चे स्कूल के अलावा और छुट्टियों में काम कर सकते हैं। इसके अलावा खेल तथा मनोरंजन उद्योग से जुड़े बच्चे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ काम कर सकते हैं।

  15 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों पर भी केवल तीन उद्योगों- खनन, ज्वलनशील पदार्थों और खतरनाक इकाईयों में काम करने पर प्रतिबंध होगा।

 धर्मार्थ संस्था- बचपन बचाओ आंदोलन के कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि मुक्ति ‘प्रतिगामी’ होती है और वे सभी प्रकार के बाल श्रम पर पूर्ण प्रतिबंध चाहते हैं। बचपन बचाओ आंदोलन ने 80 हजार से अधिक बाल श्रमिकों को बचाया है।

   हारवर्ड के शोधार्थियों ने सरकार और गैर- सरकारी एजेंसियों के बीच बेहतर समन्‍वय और बाल मजदूरों की तस्‍करी के लिये सबसे अधिक असुरक्षित क्षेत्र में गरीबी उन्‍मूलन के लिये नीतियां बनाने तथा शिक्षा तक पंहुच बढ़ाने की सलाह दी है।

(रिपोर्टिंग- रीना चंद्रन, संपादन – एलिसा तांग। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)

 

 

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