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विशेष- अभ्रक खदानों में बच्चों की मौत छुपाने का खुलासा होने के बाद भारतीय अधिकारियों ने दिये जांच के आदेश

by नीता भल्ला और रीना चंद्रन | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 3 August 2016 16:21 GMT

Gudiya, 13, breaks away pieces of mica from rocks in an illegal open cast mine in Koderma district in the eastern state of Jharkhand, India, June 29, 2016. REUTERS/Nita Bhalla

Image Caption and Rights Information

नीता भल्ला और रीना चंद्रन

दिल्ली/मुंबई,  3 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के भारत की अवैध अभ्रक खदानों में बच्चों के मरने और उनकी मौत को छुपाने के खुलासे के बाद भारतीय अधिकारियों ने बुधवार को इसकी जांच शुरू कर दी है।

अभ्रक उत्पादक राज्‍य- बिहार, झारखंड, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में तीन महीने की गई तहकीकात में पाया गया कि सौन्‍दर्य प्रसाधन और कार पेंट में इस्‍तेमाल किये जाने वाले कीमती खनिज अभ्रक के खनन के दौरान जून से अब तक कम से कम सात बच्चों की मौत हुई है।

लेकिन इन मौतों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई, क्‍योंकि पीड़ितों के परिजन और खदान संचालक इस अवैध खनन को बंद नहीं करना चाहते हैं। भारत के कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों में आय का एकमात्र स्‍त्रोत यही है।

Blood Mica
Deaths of child workers in India's mica "ghost" mines covered up to keep industry alive
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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के बाल संरक्षण समूह- बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) का कहना है कि जर्जर और गैर कानूनी खानों में हुई इन बच्‍चों की मौत विशाल समस्‍या का अंशमात्र है। बीबीए का अनुमान है कि अभ्रक की खदानों में होने वाली मौतों में से 10 प्रतिशत से भी कम के बारे में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है।

झारखंड के श्रम मंत्री राज पालीवार ने बुधवार को कहा कि वे तुरंत जांच शुरू कर रहे हैं।

पालीवार ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मैंने जांच के आदेश दे दिये हैं। मैंने श्रम आयुक्त को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।"

"अगर कोई बच्‍चों से मजदूरी करवाता है, तो यह गैर कानूनी है और हम ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे, फिर चाहे वो कोई भी और कितने भी ताकतवर क्‍यों न हों।"

राजस्थान में खान मंत्रालय में संयुक्त सचिव इकबाल खान ने कहा कि अधिकारियों को अभ्रक खदानों में बाल श्रमिकों के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन इसकी जांच की जायेगी।

उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हम इस मामले की जांच करेंगे और आवश्यक कार्रवाई की जायेगी।"

अन्य भारतीय अधिकारियों ने भी अभ्रक के खनन में बच्चों की मौत पर चिंता जताई है। अभ्रक एक भूरा क्रिस्टलीय खनिज है, जिसका पर्यावरण अनुकूल होने के कारण हाल के वर्षों में महत्‍व काफी बढ़ गया है। प्रमुख वैश्विक ब्रांड कार और निर्माण क्षेत्रों, इलेक्ट्रॉनिक्स और सौंदर्य प्रसाधन में इसका इस्तेमाल करते हैं।

Photo: Thomson Reuters Foundation/Nita Bhalla

"खनन के स्‍थान पर स्कूली शिक्षा"

भारत दुनिया के सबसे बड़े अभ्रक उत्पादकों में से एक है, लेकिन अनुमान है कि इसका 70 प्रतिशत से अधिक उत्‍पादन उन अवैध खानों से होता है जो 1980 और 1990 के दशक में वनों की कटाई को रोकने के लिये बने सख्त कानूनों और कम लागत के अभ्रक के अन्‍य विकल्पों की खोज की वजह से बंद कर दी गई थीं।

देश के कानून के अंतर्गत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर खानों और अन्य खतरनाक उद्योगों में काम करने पर रोक है, लेकिन बेहद गरीबी में जीवन यापन करने वाले कई परिवार बच्चों की कमाई पर निर्भर होते हैं।  

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की तहकीकात में पाया गया कि उत्‍तरी झारखंड, दक्षिणी बिहार और राजस्थान की अभ्रक खदानों के भीतर और आस-पास बच्चे काम कर रहे हैं।

डच अभियान समूह-सोमो का अनुमान है कि 20,000 तक बच्चे झारखंड और बिहार में अभ्रक खनन से जुड़े हैं।

खान मंत्रालय के प्रवक्ता वाई एस कटारिया का कहना है कि अभ्रक खदानों में बाल श्रम गंभीर मुद्दा है।

उन्होंने कहा, "बच्चों को इस तरह के शोषण से बचाया जाना चाहिये।"

"सरकार अवैध खनन रोकने के लिए कदम उठा रही है। उदाहरण के लिए, हम ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित कर रहे हैं, जिसके जरिये उपग्रहों का उपयोग कर हम कानूनी खानों की निगरानी और अवैध खदानों की पहचान कर सकते हैं।"

झारखंड से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सांसद करिया मुंडा ने इस पर चिंता व्‍यक्‍त की, लेकिन अवैध खनन की समस्‍या से निपटने में कठिनाई के बारे में कहा कि यह कई परिवारों की जीवन रेखा है।

उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि अवैध खनन हो रहा है, लेकिन मैं यह भी समझता हूं कि यह कई लोगों की आजीविका का मामला है, क्‍योंकि इन क्षेत्रों में आय का कोई अन्य विकल्प उपलब्‍ध नहीं है।"

 

"केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर इस समस्या का समाधान करना चाहिए।"

अभ्रक की काला बाजारी और बाल श्रम रोकने तथा अन्य उद्योगों में प्रशिक्षण और स्कूली शिक्षा देने के लिये राज्य सरकारों पर अवैध खदानों को लाइसेंस देने के लिये खनन कंपनियों और कार्यकर्ताओं की ओर से दबाव है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली का कहना है कि इस तहकीकात से अवैध खनन से जुड़े मानवाधिकार हनन और बाल श्रमिकों के खतरे उजागर हुये हैं।

उन्‍होंने कहा, "अधिकारियों को तुरंत मानवाधिकार हनन की जांच करनी चाहिये और अवैध खनन बंद करवाना चाहिये। उन्‍हें बच्‍चों को स्‍कूल में पढ़ने की बजाय बाल मजदूरी करने से रोकने में अपनी विफलताओं का भी मूल्यांकन करना चाहिए।"

सेव द चिल्‍ड्रन इंडिया की एडवोकेसी डायरेक्‍टर बिदिशा पिल्लई ने कहा कि खबरों से पता चलता है कि अभ्रक खनन में बड़े पैमाने पर बाल मजदूर काम करते हैं, सरकार को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए।

उन्‍होंने कहा, "सरकार को इन खानों में बाल मजदूरी की जांच कर उसे रोकने की आवश्‍यकता है, क्‍योंकि गैर कानूनी तरीके से बगैर एहतियाती उपायों के बच्‍चों से काम करवाने से उनकी सुरक्षा और कल्‍याण प्रभावित होते हैं।"

(अतिरिक्‍त रिपोर्टिंग-जतीन्‍द्र दास और निगम प्रुस्‍ति, संपादन-बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

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