- नीता भल्ला और रीना चंद्रन
दिल्ली/मुंबई, 4 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की तहकीकात में अवैध अभ्रक खदानों में बच्चों की मौत के खुलासे के बाद भारत से अभ्रक खरीदने वाली प्रमुख वैश्विक कंपनियों ने गुरूवार को अपने आपूर्तिकर्ताओं की बाल श्रम की जांच सख्त करने को कहा है।
अभ्रक उत्पादक राज्य- बिहार, झारखंड, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में तीन महीने की गई तहकीकात में पाया गया कि सौन्दर्य प्रसाधन और कार पेंट में इस्तेमाल किये जाने वाले कीमती खनिज अभ्रक के खनन के दौरान जून से अब तक कम से कम सात बच्चों की मौत हुई है।
आशंका है कि इन बच्चों की मौत विशाल समस्या का अंशमात्र है। इन मौतों की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई, क्योंकि पीड़ितों के गरीब परिजन और खदान संचालक संरक्षित वनों में बंद पड़ी खानों में अवैध खनन को रोकना नहीं चाहते हैं, क्योंकि उनकी आय का यही एकमात्र स्त्रोत है।
खुलासे के बाद झारखंड और राजस्थान में अधिकारियों ने बच्चों की मौत की जांच करवाने के आदेश दिये, वहीं भारत से खनिज खरीदने वाली प्रमुख कंपनियों का कहना है कि वे आपूर्तिकर्ताओं की जांच करेंगी और बाल श्रम समाप्त करने के लिए भारत से खनिज खरीदना बंद भी कर सकती हैं।
जर्मनी की कार निर्माता कंपनी वोक्सवैगन के प्रवक्ता ने कहा, "हमने हमारे प्रत्यक्ष आपूर्तिकर्ताओं की तुरंत जांच शुरू कर दी है।" उन्होंने कहा कि इस महीने के आखिर में आपूर्तिकर्ताओं के साथ हमारी बैठक है।
"हमारी जांच के परिणाम के आधार पर हम अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं पर आधारित कार्रवाई करेंगे।"
बीएमडब्ल्यू ने कहा कि उसने कभी बाल श्रम सहन नहीं किया।
कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, "अगर आरोपों की पुष्टि होती है, तो हम इसमें शामिल आपूर्तिकर्ता को हमारी आपूर्ति श्रृंखला से बाहर करने के प्रत्येक उपाय करेंगे।"
भारत के अन्य बड़े कार निर्माताओं - मारुति सुजुकी, हुंडई, होंडा, ऑडी, मर्सिडीज बेंज, रेनॉल्ट, महिंद्रा और टाटा मोटर्स ने कोई भी टिप्पणी नहीं दि।
"बहिष्कार और विकल्प"
भारतीय कानून में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर खानों और अन्य खतरनाक उद्योगों में काम करने पर रोक है, लेकिन बेहद गरीबी में जीवन यापन करने वाले कई परिवार बच्चों की कमाई पर निर्भर होते हैं।
भारत दुनिया के सबसे बड़े अभ्रक उत्पादकों में से एक है। अभ्रक भूरे रंग का क्रिस्टलीय खनिज है, जिसका पर्यावरण अनुकूल होने के कारण हाल के वर्षों में महत्व काफी बढ़ गया है। इसका इस्तेमाल कार और निर्माण क्षेत्रों, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है।
अभ्रक की मांग बढ़ने से भारत में यह उद्योग पुनर्जीवित हो गया है। वनों की कटाई रोकने के कड़े नियमों और प्राकृतिक अभ्रक के विकल्प मिल जाने की वजह से 1980 के दशक में 700 से अधिक खानों को बंद करना पड़ा था, जिनमे 20 हजार से अधिक श्रमिक काम करते थे।
भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार 2013-14 में भारत में 19 हजार टन अभ्रक का उत्पादन हुआ, लेकिन सबसे बढ़े खरीदारों- चीन, जापान और अमेरिका को एक लाख 28 हजार टन अभ्रक निर्यात किया गया।
अनुमान है कि भारत में अभ्रक का लगभग 70 प्रतिशत उत्पादन जर्जर हो रही अवैध खानों से होता है।
कार्यकर्ताओं ने सबसे गरीब इलाकों के अभ्रक क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा और आजीविका के अन्य विकल्प उपलब्ध कराने के लिये और धनराशि देने की अपील की है।
बिजली, कोयला और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में प्रवक्ता राजेश मल्होत्रा ने कहा कि सरकार ने खनन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के कल्याण के लिये कोष रखा है, जिससे विभिन्न कार्यक्रमों के लिये प्रतिवर्ष 1 अरब डॉलर की सहायता मिलेगी।
उन्होंने पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशिक्षण, बाल कल्याण और टिकाऊ आजीविका को प्राथमिकताओं के रूप में सूचीबद्ध किया है।
कुछ कंपनियां इन समुदायिक पहलों का समर्थन कर रही हैं।
प्रमुख खरीदार, चीन के पिगमेंट निर्माता-फ़ुज़ियान कुनकाई मटेरियल टेक्नोलोजी कंपनी लिमिटेड का कहना है कि सुधार की "तत्काल जरूरत" है और उसने आपूर्ति श्रृंखला में शामिल सभी पक्षों से कार्रवाई करने का भी आग्रह किया।
कुनकाई यूरोप के महाप्रबंधक माइक तिजदिंक ने कहा कि निर्माता कंपनी इस माह में ही भारत में स्वयं कंपनी स्थापित कर रही है, ताकि सीधे वहीं से अभ्रक खरीदा जा सके। यह कंपनी सामुदायिक मदद के लिये गैर सरकारी संगठन- टेरे दे होम्स के साथ काम कर रही है और उसने कृत्रिम अभ्रक बनाना शुरू कर दिया है।
उन्होंने कहा, "अगर हम भारत में बाल श्रम मुक्त और कानूनी अभ्रक उद्योग नहीं बना पाये, तो कंपनियाँ कृत्रिम अभ्रक जैसे निर्विवादित उत्पाद की ओर रूख कर सकती है।"
जर्मनी की दवा कंपनी मर्क कगा को 2008 में जब पता चला कि कुछ खदानों में बच्चों से अभ्रक एकत्रित करवाया जाता है, तो उसने अपने कुछ आपूर्तिकर्ताओं से अभ्रक लेना बंद कर दिया। कंपनी ने बाल मजदूरी की फिर निंदा की है।
एक ओर जहां कुछ कंपनियां समुदायों में निवेश कर रही हैं, वहीं अन्य कंपनियों का कहना है कि वे गारंटी नहीं दे सकते है कि उनकी आपूर्ति बाल श्रम मुक्त है, इसलिये उन्होंने अभ्रक का उपयोग बंद कर दिया है। इस अभ्रक में से 10 प्रतिशत सौंदर्य प्रसाधनों में इस्तेमाल होता है।
हस्तनिर्मित उत्पादों और नैतिक व्यापार के लिये प्रसिद्ध ब्रिटेन की सौंदर्य प्रसाधन कंपनी लश ने भी इस क्षेत्र में बाल श्रम को देखते हुये 2014 से अपने उत्पादों में प्राकृतिक के स्थान पर कृत्रिम अभ्रक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कंपनी ने बच्चों की मौत के खुलासे को "नृशंस" करार दिया है।
लश के नैतिक खरीदारी प्रमुख साइमन कांस्टनटाइन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "किसी भी उद्योग में केवल बच्चों की ही नहीं, बल्कि किसी भी प्राणी की मौत नहीं होनी चाहिये।"
"जब तक अधिक से अधिक पारदर्शिता और नैतिक आपूर्ति का आश्वासन नहीं मिल जाता, तब तक हम प्राकृतिक अभ्रक का बहिष्कार जारी रखेंगे। हम आशा करते हैं कि अन्य कंपनियां भी यह खबर देखें और वे भी हमारी ही तरह कार्रवाई करें।"
लोरियल की एक प्रवक्ता ने कहा कि उनकी कंपनी केवल कुछ ही ऐसी "विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं से खरीदारी करती है, जो केवल कानूनी खानों से ही अभ्रक निकालती हैं और वहां काम के माहौल की बारीकी से निगरानी की जाती है तथा वहां मानवाधिकारों का हनन नहीं होता है।"
एस्टी लाउडर ने कोई टिप्पणी नहीं दि।
(संपादन-बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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