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फीचर- परिवार से अस्वी कृत और वेश्यालयों से बचायी गई शोषित महिलाओं ने परामर्श की ओर रूख किया

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 17 November 2016 13:56 GMT

Women packaging disinfectant used to mop floors at the Gandlapenta vocational training centre run by the Rural Development Trust in Andhra Pradesh, India, November 2, 2016. Thomson Reuters Foundation/Anuradha Nagaraj

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

     कादिरी, 17 नवम्‍बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - आंध्र प्रदेश में एक गांव के परामर्श केन्द्र में गुलाबी साड़ी पहने एक महिला खुशी-खुशी बातचीत शुरू करती है। लेकिन 10 मिनट बातचीत करने पर ही वह रोने लगती है।

  देह व्‍यापार के लिये तस्करी की गई 40 साल की महिला अपनी काउंसलर शकुंतला ब्‍याल्‍ला को बताती है, "मैं 10 साल पहले वेश्यालय से भाग कर घर लौट आयी थी, लेकिन यह अभी भी कल की बात लगती है।"

  "मुझे अपने अतीत के बारे में सोचना अच्‍छा नहीं लगता है, लेकिन घर लौट कर आना भी इतना आसान नहीं था। यहां तक कि मेरे माता पिता ने ही पूछा था कि मैं वापस क्यों आ गई।"

  अपनी पहचान बताने से इनकार करने वाली यह महिला उन हजारों महिलाओं में से है, जिन्‍हें आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के कादिरी शहर और उसके आस-पास के इलाकों से तस्करी कर हर साल मुंबई, नई दिल्ली और पुणे के वेश्यालयों में भेजा जाता है।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि एजेंट और गिरोह ग्रामीण क्षेत्रों की हजारों गरीब महिलाओं और लड़कियों को देह व्यापार के लिये बेचने से पहले उन्‍हें अन्य शहरों में अच्छी आय वाली नौकरी दिलाने का वादा करते हैं।

    वेश्‍यालयों से भागी या बचायी गई कई महिलाओं के सामने घर लौट कर अपने अतीत को भुलाने और वर्तमान के साथ सामंजस्‍य बैठाना एक नयी चुनौती है।

   गांड्लपेंट गांव में काउंसलर ब्‍याल्‍ला ही उनकी मित्र और विश्वासपात्र है।

    ब्‍याल्‍ला ने कहा, "उनमें से कईयों को तो उनके माता पिता ने ही बेचा था और वे तस्करी की गई लड़की द्वारा भेजे पैसों से ही अपनी आजीविका चलाते थे।"

   "वापस घर आने पर उनके माता पिता द्वारा उन्‍हें अस्वीकार करने के सदमे से वे मायूस हो जाती हैं। उनकी जीने की इच्छा समाप्‍त हो जाती है।"

   ऑस्ट्रेलिया की वॉक फ्री फाउंडेशन के 2016 के वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार विश्‍व के लगभग चार करोड़ 58 लाख गुलामों में से 40 प्रतिशत अकेले भारत में है।

   राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक, 2014 में देश भर में जबरन वेश्यावृत्ति कराने के लगभग 5,500 मामले दर्ज किये गये थे, जिसके तस्करी रोधी कानून में मानव तस्करी और यौन कर्म के बीच कोई अंतर नहीं है।

   "आसान शिकार"

     हाल के एक सरकारी सर्वेक्षण में तटीय राज्य आंध्र प्रदेश के कादिरी शहर को मानव तस्करी के गढ़ के रूप में चिंहित किया गया है, जहां चित्तूर, कड़प्‍पा और अनंतपुर जिलें आपस में जुड़ते हैं। भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र भी इसी राज्‍य में है।

    वरिष्ठ जिला अधिकारी कोना शशिधर ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "विशेष रूप से लंबाड़ा जनजाति की अधिकतर महिलाएं तस्करों के जाल में फंस जाती हैं।"

    "यह महिलाएं न केवल अति सुंदर होती हैं, बल्कि वे बहुत गरीब भी होती हैं। जिसके कारण वे एजेंटों के लिए आसान शिकार होती हैं। इसे रोकने के लिये हमने छापे मारने शुरू किये हैं।"

    अनंतपुर जिला अधिकारियों के 2016 में कराये गये सर्वेक्षण में गरीबी, तस्करी के बारे में जागरूकता की कमी और कृषि पर निर्भर क्षेत्रों में सूखे के कारण 6,200 महिलाओं की पहचान "तस्करी के लिए आसानी से शिकार बनायी जा रही" के रूप में की गई है।

   गुलाबी साड़ी वाली महिला उनमें से थी, जो तस्करी कर मुंबई भेजने के समय अपने बच्चे को अपनी मां के पास छोड़ गई थी।

   आंसू पोंछते हुये उसने ब्‍याल्‍ला को अपने पड़ोस की उस महिला के बारे में बताया जिसने उसे नौकरानी का काम दिलाने का वादा किया था, लेकिन इसके बजाय उसे मुंबई के रेड लाइट जिले कमाठीपुरा के एक वेश्यालय में बेच दिया था।

    उसने विस्तार से वेश्यालय की मालकिन "घरवाली" के बारे में जानकारी दी और बताया कि पहली बार उसके साथ जबरदस्‍ती की गई थी। उसने यह भी बताया कि कैसे वह अपने कपड़ों के बीच में कुछ रुपये छिपा पाई।

  लेकिन जब उसने अपने परिवार के बारे में बात करना शुरू किया तो उसके आंसू बहने लगे।

     ब्‍याल्‍ला द्वारा उसके हाथ थामते ही वह बोली, "वे बहुत गरीब हैं और वे मेरे द्वारा भेजे पैसों से ही गुजर बसर करते थे। मैं अभी भी उनका ध्‍यान रखती हूं, लेकिन अब हम एक घर में नहीं रहते हैं।"

  "बिगड़ी हुई महिलाएं"

    ये काउंसलर 10 साल से ऐसी महिलाओं से बतचीत कर रही है, जिन्‍होंने "किशोरावस्‍था में घर छोड़ा था और अब वे अलग रूप में वापस आई हैं।"

   ब्‍याल्‍ला ने  कहा, "उन्‍हें अचानक आधुनिक, बिगड़ी हुई महिलाओं के रूप में देखा जाता है और उनके सिर छिपाने के लिए कहीं कोई जगह नहीं मिलती है।"

    "उनके नाखूनों पर लगी नेल पॉलिश, कटे हुये बाल, कपड़े और शहरी भाषा शैली के कारण वे यहां की अन्‍य महिलाओं से अलग लगती हैं। वे क्रोध, हताशा और अपराध बोध के साथ केन्द्र में आती हैं। सालों से मैं उनकी बात सुन रही हूं और मैंने देखा कि उनमें कुछ भी नहीं बदला है।"

    बाद में, परामर्श केन्द्र में आई 28 साल की एक महिला ने ब्‍याल्‍ला के पैर छुए और उनसे अपना खुद का घर पाने के लिये मदद मांगी। महिला ने कहा कि उसने आत्‍महत्‍या करने की सोची थी।

   ब्‍याल्‍ला ने उसे प्रेम से डांटा।

  उसने कहा, "हमें हर चीज के लिये हर किसी से लड़ाई करनी पड़ती है। यह सामान्य बात है।"

  ब्‍याल्‍ला का परामर्श केंद्र उन छह केंद्रों में से है, जिन्‍हें लाभ निरपेक्ष संस्‍था- ग्रामीण विकास ट्रस्ट इस क्षेत्र में चला रही है। अप्रैल 2015 से मार्च 2016 तक 600 से अधिक महिलाओं ने इन केन्द्रों पर मदद मांगी है, इनमें से अधिकतर तस्करी और अन्य घरेलू शोषण से पीड़ित थीं।

   ब्‍याल्‍ला 2004 में पलायन की उच्च दर वाले गांवों के रूप में चिंहित 124 गांवों में भी अपने दल भेजती हैं। वे वहां पर तस्करी पीडि़तों और पलायन करने के लिये तैयार लोगों की तलाश करते हैं।

  गांड्लापेंट केंद्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। उनका मानना है कि अगर महिलाओं को ऐसा कौशल सिखाया जाये जिसके जरिये वे अपनी आजीविका चला सकें, तो उनके तस्करों के झांसे में फंसने की संभावना कम हो जायेगी।

    शशिधर ने कहा, "पीड़ितों का पुनर्वास एक बड़ी समस्‍या है और हम इन महिलाओं के लिए गांवों में छोटे स्व-सहायता समूह बना रहे हैं।"

  "उनके बैंक खाते खोले जा रहे हैं और इसके बाद उन्‍हें कौशल प्रशिक्षण दिया जायेगा।"

   ब्‍याल्‍ला के पास आने वाली अधिकतर महिलाओं को व्यावसायिक केंद्र जाने की सलाह दी जाती है, जहां उन्‍हें सेनेटरी पैड, अगरबत्ती, नोटबुक बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और सिलाई सिखायी जाती है।

  कुछ महिलाएं प्रशिक्षण पाने के बाद भी यहीं रह कर काम करती हैं, जिसके लिये उन्‍हें मासिक वेतन मिलता है।

  ब्‍याल्‍ला ने 28 साल की महिला को कौशल सीखने और काम करने की संभावना के बारे में बताया। जिसके लिये उसने तत्‍परता से हामी भर दी।

  उसने ब्‍याल्‍ला को बताया, "मैं मजबूत बनने की कोशिश कर रही हूं, क्योंकि मुझे मेरी बेटी की परवरिश करनी है।"

  "यह बहुत मुश्किल है, लेकिन मुझे आपसे बात करना पसंद है। अपने मन की बात आपको बता कर मुझे अच्‍छा लगता है। मुझे अपने दर्द से कुछ राहत मिलती है।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- क्लेइया ओज़ेल और केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

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