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भारत में बाल विवाह रोकने में पुजारी और सजावट करने वाले मददगार: उम्र के सबूत के बगैर विवाह नहीं

by Roli Srivastava | @Rolionaroll | Thomson Reuters Foundation
Tuesday, 21 March 2017 12:42 GMT

A bride waits for the start of a mass marriage ceremony in Mumbai, India, January 27, 2016. REUTERS/Danish Siddiqui

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-    रोली श्रीवास्तव

     हैदराबाद, 21 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारत में बाल विवाह रोकने में अधिकारियों की मदद के लिए आकर्षक शादी उद्योग से जुड़े पुजारी, कार्ड प्रिंटर, फूलों की सजावट करने और शामियाने लगाने वालों को शामिल किया गया है ।

    दक्षिणी राज्य तेलंगाना में पुजारियों से कहा गया है कि वे विवाह कराने से पहले वर और वधू के उम्र का प्रमाण मांगे, जबकि अधिकारी गांवों में जाकर जांच कर रहे हैं कि कहीं कोई बाल विवाह की योजना तो नहीं बनाई जा रही है या बाल विवाह तो नहीं किया जा रहा है।

    भारत में विवाह की कानूनी उम्र महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों की 21 साल है।

   तेलंगाना के ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह रोकने का अभियान गर्मियों के महीनों में शुरू किया गया है क्‍योंकि इन महिनों में अधिक विवाह होते हैं । 2015-16 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार तेलंगाना के ग्रामीण इलाकों में 30 प्रतिशत से अधिक बालक और बालिकाओं की शादी होती है।

    तेलंगाना की राजधानी और भारतीय प्रौद्योगिकी केंद्र हैदराबाद के पश्चिम में विकराबाद जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी प्रेम कुमार ने कहा, "हमने प्रिंटर, पुजारी, सजावट करने वालों और शादी के हॉल के मालिकों को आगाह किया है कि अगर वे बाल विवाह के लिये सामान की आपूर्ति करते या बाल विवाह करवाते हुये पकड़े जाते हैं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जायेगी।"

     "मार्च से लेकर मई तक विवाह के लिए कई शुभ मुहूर्त हैं। शादी का मौसम शुरू होने से पहले हमने इस उद्योग से जुड़े लोगों के साथ बैठक की थी।"

     शादी उद्योग से जुड़े लोगों से माता-पिता से एक घोषणा पत्र लेने को कहा गया है कि उनके बच्चे कानूनन शादी की उम्र के हैं और वर तथा वधू के पहचान प्रमाण के साथ घोषणा पत्र सरकारी कार्यालय में जमा करें।

    भारत के ग्रामीण, गरीब समुदायों में बाल विवाह आम है, जहां लड़की को वित्तीय बोझ के रूप में देखा जाता है। लड़कियों की सुरक्षा के भय से भी उनकी कम उम्र में ही शादी करा दी जाती है।

    हैदराबाद के बाहरी इलाके में अभियान शुरू करने वाले पुलिस आयुक्त महेश भागवत ने कहा, "इन इलाकों में परंपरा है कि हाई स्कूल पास करते ही माता-पिता अपने बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, की शादी करा देते हैं।"

    "और हमेशा इसका कारण निरक्षरता नहीं होता है। हमारे सामने एक मामला आया था जिसमें 13 साल की लड़की की शादी 15 वर्ष के लड़के के साथ की जा रही थी और दोनों के माता-पिता शिक्षित थे।"

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाल विवाह के बारे में जागरूकता बढ़ रही है।

     तेलंगाना में बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाने वाली लाभ निरपेक्ष संस्‍था- मामीडीपुडी वेंकटारांगैया फाउंडेशन ने कहा कि उनकी बाल हेल्पलाइन पर सबसे अधिक फोन वयस्कों के आते हैं जो अपने आस-पास हो रहे बाल विवाह के बारे में उन्हें सचेत करते हैं।

    पिछले साल से राजस्थान में शामियाने लगाने वालों ने विवाह करने वालों से वर और वधू के जन्म प्रमाणपत्र मांगना शुरू किया है।  

    जागरूकता बढ़ाने के लिये भागवत की टीम माता-पिता और पुजारियों की काउंसिलिंग करती है।

     देश के बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कम उम्र के बच्‍चों की शादी करते पाये जाने पर माता-पिता पर लगभग एक लाख रुपये का जुर्माना और दो साल की कैद की सजा हो सकती है। सरकार ने 2013 से 2015 तक लगभग 800 बाल विवाह के मामले दर्ज किये हैं।

    हालांकि लड़कों का भी कम उम्र में विवाह किया जाता है, लेकिन लड़कियां अधिक प्रभावित होती हैं।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि कम उम्र में विवाह करने से लड़कियों की स्कूल छोड़ने की संभावना बढ़ जाती है और उनका शोषण, उनके साथ यौन और घरेलू हिंसा होने तथा प्रसव के दौरान मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है।

    तेलंगाना के प्रयासों का असर नजर आने लगा है।

    विकराबाद में एक मंदिर में पुजारी मदपाट्टी श्रीकांत ने कहा, "हम फॉर्म भरवा रहे हैं और वर-वधू की तस्वीरें तथा उनकी पहचान के प्रमाण ले रहे हैं। हमारे विवाह कराने से इनकार करने पर कई शादियां रद्द भी हुई हैं।  

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- एलिसा तांग; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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