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फीचर - श्रीलंका की युद्ध विधवाओं की गुलामों के रूप में खाड़ी में तस्करी

by Amantha Perera | @AmanthaP | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 9 August 2017 00:01 GMT

Nathkulasinham Nesemalhar, 54, stands outside her home in Jaffna in Sri Lanka on June 3, 2017. Photo courtesy AFRIEL

Image Caption and Rights Information

जाफ़ना, श्रीलंका, 9 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - मार्च में कोलंबो से मस्कट की उड़ान
भरते समय नाथकुलसिंहम नेसेमल्‍हार को लेगा था कि उसके हाथ में दबा बोर्डिंग पास दशकों
के युद्ध में अपने पति समेत सब कुछ खोने के बाद उसके बेहतर जीवन का सुनहरा टिकट है।

श्रीलंका के पूर्व युद्ध क्षेत्र की 54 वर्षीय विधवा से खाड़ी देश-ओमान में एक समृद्ध परिवार के
घर में नौकरानी के रूप में काम करवाने का वादा किया गया था। कहा गया था कि उसे रहने के
लिये एक अच्छा कमरा मिलेगा, उससे उचित समय तक काम करवाया जायेगा और उसका वेतन
30,000 रुपये प्रतिमाह होगा, जो उसका कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त होगा।

लेकिन नेसेमल्‍हार का सपना शीघ्र ही दुःस्वप्न में बदल गया। उसने पाया कि उसे मस्कट से
कई मील दूर बगैर रोशनदान के अंधेरे कमरे में अन्य महिलाओं के साथ गुलाम बनाकर रखा
गया था। उसे रोजाना अलग-अलग घरों में सफाई करने के लिए ले जाया जाता था और रात में
फिर से बंद कर दिया जाता था।

तीन बच्‍चों की मां ने कहा, ";वहां हम 15 लोग थे। हमें कभी वेतन नहीं दिया गया। अंत में श्रीलंका
सरकार के हस्तक्षेप के बाद ही हम घर वापस आ पाए।" उसका पति 2001 से लापता है।
श्रीलंका में उत्तरी प्रांत के जाफ़ना में अपने घर में उसने कहा, "जो लोग किसी संघर्ष से नहीं गुजरे
हैं, वे समझ नहीं पाएंगे कि युवा बच्चों की देखभाल अकेले करना कितना मुश्किल है। हमने
युद्ध के दौरान परेशानी झेली और हम अब भी तकलीफ उठा रहे हैं।"

सऊदी अरब, कतर, बहरीन और ओमान जैसे मध्य पूर्वी देशों में एशियाई और अफ्रीकी मूल की
नौकरानियों के शोषण की खबरें अक्‍सर आती रहती हैं।

लेकिन नेसेमल्‍हार की गाथा से हिंद महासागर द्वीप में इस उपेक्षित प्रवृत्ति के बढ़ने का पता
चलता है। यहां हजारों युद्ध विधवाएं अवसरों की कमी के कारण तस्करों की आसान शिकार होती
हैं और उन्‍हें दास के रूप में विदेशों में बेच दिया जाता है।

श्रीलंका के विदेश रोजगार ब्यूरो के अनुसार 2015 और 2016 में उत्तरी क्षेत्र की एक हजार से अधिक
महिलाएं, जो अधिकतर घरों की मुखिया थीं, खाड़ी देशों में नौकरानियों के तौर पर काम करने के

लिये गई थीं। सेंट्रल बैंक के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2011 में केवल 300 महिलायें ही काम के
लिये खाड़ी देशों में गई थीं।

जाफ़ना की एक धर्मार्थ संस्‍था- सोशल ऑर्गनाइजेशन्‍स नेटवर्किंग फॉर डेवलपमेंट के कार्यकारी
निदेशक एस. सेंतुराजा ने कहा, "प्रतिवर्ष घरेलू नौकरानियों के तौर पर विदेश जाने वाली एक
लाख से अधिक श्रीलंकाई महिलाओं की तुलना में यह संख्‍या मायने नहीं रखती है।"

"लेकिन कुछ साल पहले तक उत्तरी क्षेत्र से कोई भी महिला घरेलू नौकरानी के रूप में विदेश नहीं
जाती थी, इसे देखते हुये यह संख्या महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि वे यहां अब
अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पाती हैं।"

90,000 युद्ध विधवायें हैं।

2009 में अलगाववादी तमिल टाइगर्स की हार के साथ समाप्त हुये 26 साल के संघर्ष के बाद
श्रीलंका में शांति का यह आठवां वर्ष है।

मुख्य रूप से द्वीप के तमिल जातीय बहुसंख्यक पूर्वी और उत्तरी प्रांतों में केंद्रित हिंसा के दौरान
एक लाख से अधिक लोग मारे गए, लगभग 65,000 लोग लापता हुये और लाखों लोगों के घर उजड़
गये थे।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार द्वारा उत्तरी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के विकास में अरबों डॉलर
लगाने के बावजूद लगभग 90,000 महिलाओं के लिए बहुत कम कार्य हुये हैं, जिन्‍होंने संघर्ष के
दौरान अपने पति, पिता और भाइयों को खो दिया था।

लैंगिक समानता के मामले में उत्तरी प्रांत देश के सबसे कम विकसित प्रांतों में से है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 35 प्रतिशत के राष्ट्रीय
औसत की तुलना में यहां 21 प्रतिशत है, जबकि मातृ मृत्यु दर राष्ट्रीय स्तर के 22 प्रतिशत के
मुकाबले 30 प्रतिशत है।

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि उत्तरी क्षेत्र के ढ़ाई लाख घरों में से पांचवें हिस्से से अधिक घर
की मुखिया नेसेमल्‍हार जैसी युद्ध विधवाएं हैं, जिन पर अपने परिवार के भरण–पोषण की
जिम्‍मेदारी है।

बगैर रोज़गार और आजीविका कमाने के अवसरों की कमी के कारण ये महिलाएं साहूकारों से पैसा

उधार लेने को मजबूर हैं। इनमें से कई महिलाओं पर चार-चार लोगों की जिम्‍मेदारी है जिसकी
वजह से ये तस्करों के जाल में आसानी से फंस जाती हैं।

नेसेमल्‍हार को बचाने के लिये अधिकारियों के साथ काम करने वाली धर्मार्थ संस्‍था-
एसोसिएशन फॉर फ्रेंडशिप एंड लव के प्रमुख रवींद्र डिसिल्वा ने कहा, "वे सबसे अधिक वंचित हैं
इसलिये उन्‍हें ये नौकरियां करने के लिये राजी करना आसान है।"

भर्ती एजेंसियां इस काम के लिये ऐसे स्थानीय ग्रामीणों को तैनात करती हैं जो समुदायों को
जानते और उनके भरोसेमंद होते हैं। वे कर्जदार और गरीब महिलाओं की तलाश में रहते हैं।
वे एक धनी राष्ट्र में अच्छी नौकरी, बढि़या वेतन और एक अच्छे जीवन की आकर्षक तस्वीर पेश
करते हैं। इसके लिये सभी महिलाओं को एक बुनियादी अनुबंध पर हस्ताक्षर करना होता है और
कुछ कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है, लेकिन उन्‍हें अक्सर किसी भी नियम और शर्तों के बारे में
कोई जानकारी नहीं होती है।

डिसिल्वा ने कहा कि यह बंधुआ श्रमिकों के अनुबंध के समान होता है और सरकारी पंजीकृत भर्ती
एजेंसियां ​पीडि़तों को बरगलाती हैं कि अनुबंध पर हस्‍ताक्षर करने से किसी भी प्रकार का
शुल्‍क देने की जरूरत नहीं होगी।

उदाहरण के लिए नेसेमल्‍हार को ओमान भेजने वाली एजेंसी ने उसे वापस घर लाने से इनकार करते
हुये कहा कि नियोक्ता ने उसके लिए तीन लाख रुपये का भुगतान किया है और उसे घर वापस
आने के लिए वह पैसा लौटाना होगा।

नेसेमल्‍हार कईयों से अधिक भाग्यशाली रही। उसके साथ गुलाम के तौर पर रहने वाली एक
अन्‍य महिला के रिश्तेदार के माध्यम से श्रीलंकाई अधिकारियों को उसकी दुर्दशा के बारे में पता
चलने पर उसे कुछ ही सप्‍ताह में बचा लिया गया था।

लेकिन कई पीड़िताओं को नहीं बचाया जा पाता है और सालों तक उनका शोषण होता है और
उन्‍हें प्रताडि़त किया जाता है, क्‍योंकि वे घर लौटने के लिए पैसे का भुगतान नहीं कर पाती हैं।
ज्यादातर मामलों में भर्ती एजेंटों या नियोक्ताओं के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं किया जाता है।
"सिर कलम करना, गर्म इस्‍त्री से जलाना"

इस तरह के कुछेक मामले ही सुर्खियों में आते हैं।

2013 में श्रीलंका की एक नौकरानी का सऊदी अरब में सर कलम कर दिया गया था क्‍योंकि
उस पर आरोप था कि देखभाल के दौरान उसकी लापरवाही के कारण एक बच्चे की मौत हुई।
2010 में डॉक्टरों ने सउदी अरब से बचायी गयी 50 वर्षीय महिला को गर्म इस्‍त्री से जलने के
निशान और त्वचा में धातु के टुकड़े पाये।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि आमतौर पर शारीरिक और मानसिक यातनाओं की खबरें आती हैं,
लेकिन शर्म और कलंक के भय से महिलाएं यौन शोषण और बलात्कार के बारे में बताने से
हिचकिचाती हैं।

अधिकारियों का कहना है कि अक्सर अत्‍यधिक गरीब और गहरे सदमे में जकड़ी पीडि़ताएं
कानूनी कार्रवाई के लिये आगे नहीं आती हैं, जिसके कारण वे भर्ती कंपनियों के पंजीकरण रद्द
और तस्‍करों या विदेशी नियोक्ता पर मुकदमा नहीं कर पाते हैं।

श्रीलंका के अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश महिलाएं पंजीकृत भर्ती एजेंसियों के माध्यम
से जाती हैं और प्रस्थान से पहले वे 40 दिन का हाउसकीपिंग कोर्स भी करती हैं।
किसी की मर्जी के विरूद्ध उसे बंद रखने की शिकायत मिलने पर ही सरकार हस्तक्षेप करती
है।

विदेश रोजगार मंत्री थलाथा अटूकोराले ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "नेसेमल्‍हार के
मामले में हमने इन महिलाओं की वापसी सुनिश्चित की थी। अगर ऐसे और मामले हैं तो हम
देखेंगे कि उनमें क्‍या किया जा सकता है।"

अटूकोराले ने कहा कि वे जानती हैं कि उत्तरी क्षेत्र में गरीबी के कारण युद्ध विधवाओं का शोषण
हो रहा है। उन्‍होंने कहा कि अधिकारियों को क्षेत्र के तस्करों के बारे में अधिक सतर्क किया जा
रहा है।

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि संघर्ष समाप्‍त होने के बाद बचे लोगों को अपना जीवन
दोबारा शुरू करने और आजीविका कमाने के लिए अधिक सहायता की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय संकट समूह के श्रीलंका के विश्लेषक एलन कीनान ने कहा, "सरकार और गैर-
सरकारी संगठन तथा व्यवसायियों द्वारा कई पहल की गई हैं।"

"लेकिन यह प्रयास उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र में निराशाजनक स्थिति का सामना कर रही कई

महिलाओं के लिये सुसंगत या प्रभावी नहीं हैं।"

नेसेमल्‍हार के लिए घर लौटने के बाद से ज़िंदगी और बदतर हो गई है तथा हालात इतने खराब
हो गये हैं कि वह दोबारा खाड़ी देश में जाने का विचार कर रही है। उसका कर्ज बढ़ रहा है और
उसे अपने समुदाय में सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ रहा है क्‍योंकि उस पर आरोप है
कि वह ओमान में यौन कर्मी थी।

नेसेमल्‍हार ने कहा, "मेरे बच्चे कहते हैं कि उन्‍हें बाहर निकलने में शर्म आती है। मैं भी बाहर
नहीं जाती हूं क्योंकि लोग मुझपर हंसते हैं या मुझे उनका उधार चुकाना है। विदेश जाकर ही मैं
इन सब से दूर रहूंगी और कुछ पैसे बचा कर कर्ज चुका सकती हूं।"

(रिपोर्टिंग- अमांता परेरा, लेखन- नीता भल्‍ला, संपादन- एम्‍मा बाथा; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की
धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार,
तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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