चेन्नई, 21 नवंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा से लाखों परिवारों का काम की तलाश में शरद ऋतु के प्रवास के लिये पलायन शुरू होने के साथ ही सरकार ने भी यह सुनिश्चित करने के प्रयास बढ़ा दिये हैं कि उनकी यात्रा गुलामी करने पर समाप्त ना हो।
नवम्बर में मौसमी पलायन के रूप में ओडिशा के ग्रामीण परिवार अपने गांवों को छोड़कर बाहर जाना शुरू हो जाते हैं और यह सिलसिला बसंत के मौसम में फसल बोवाई तक जारी रहता है।
सूखे और अत्यधिक गरीबी के कारण प्रत्येक गांव के पुरुष और महिलाएं श्रमिक एजेंटों से ऋण लेने के लिए मजबूर हैं। वे ऋण चुकाने के लिये अगले छह महीने आम तौर पर ईंट भट्टों में काम करते हैं। मानवाधिकार समूहों का कहना है कि "ऋण बंधन" गुलामी का एक रूप है।
हालांकि, इस वर्ष ओडिशा सरकार ने श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कई उपाय किये हैं। इनमें प्रवासियों के आसान पंजीकरण के लिये ऑनलाइन ऐप्प से लेकर सातों दिन चौबीस घंटे चलने वाली हेल्पलाइन, सुरक्षित ऋणों के लिए क्रेडिट कार्ड और ईंट भट्ठा मालिकों के साथ काम का अनुबंध शामिल हैं।
प्रवासी मजदूरों के अधिकारों की निगरानी के लिये श्रम विभाग के अंतर-राज्यीय प्रवासन सेल के सलाहकार बी.बी. आचार्य ने कहा, "वर्षों से ओडिशा के बंधुआ मजदूरों से लगातार शिकायतें मिलती हैं और उन्हें बचाया जाता है।"
"यह अब तक की सबसे व्यापक योजना है, जिसमें सुरक्षित प्रवासन और अधिक आजीविका के विकल्प उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जा रहा है।"
अभियान चलाने वालों का अनुमान है कि हर साल ओडिशा से एक लाख से अधिक श्रमिक पलायन करते हैं। उनमें से अधिकतर ईंट भट्ठों में काम करते हैं, जहां वे ईंटों को बनाने और सेंकने का काम करते हैं तथा ऋण चुकाने के लिए उनके वेतन में से पैसा काटा जाता है।
श्रमिकों को 20,000 रुपये का कर्ज चुकाने के लिये छह से आठ महीने में लगभग सात लाख ईंटे बनानी पड़ती है।
दयनीय श्रमिकों की तलाश में सरकार के साथ भागीदारी कर रही धर्मार्थ संस्था- टाटा ट्रस्ट की मैरी सुरिन ने कहा, "काफी समय से पड़ रहे सूखे के कारण अग्रिम पैसा लेने की यह प्रणाली शुरू हुई है, जो आखिर में ऋण बंधन पर समाप्त होती है।"
ओडिशा सरकार ने 11 पलायन प्रभावित जिलों के लगभग 300 गांवों में 28,000 परिवारों को दयनीय प्रवासियों के तौर पर चिंहित किया है।
इस साल 'श्रमिक सहायता' ऐप शुरू किया गया है, जिसके जरिये ग्रामीण पलायन करने से पहले ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं। इसके अलावा प्रवासियों के लिए हेल्पडेस्क कियोस्क लगाये गये हैं और एक फोन लाइन भी शुरू की गयी है।
ओडिशा के श्रम आयुक्त सचिन रामचंद्र जाधव ने कहा, "हम उन गंतव्य राज्यों में भी पांच हेल्प डेस्क स्थापित कर रहे हैं, जहां मजदूर छह से आठ महीनों तक काम करने के लिये जा रहे हैं।"
"आशा है कि पहले से ही चल रही टोल फ्री हेल्पलाइन से हम हर कदम पर मजदूरों की मदद करे सकेंगे।"
ओडिशा सरकार ने दलालों के अस्तित्व को समाप्त करने और ऋण बंधन की परंपरा का अंत करने के लिये दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में श्रमिकों और 100 ईंट भट्ठा मालिकों के बीच सीधे अनुबंध तैयार करने में मदद की है।
जाधव ने कहा, "शोषण करने वाले दलालों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।"
"हम श्रमिकों का भुगतान सीधे मजदूरों के बचत बैंक खातों में हस्तांतरित करने के लिये बैंकों के साथ सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं और वे श्रम क्रेडिट कार्ड के जरिए अग्रिम धन भी ले सकते हैं।"
उन्होंने कहा कि आशा है कि मार्च 2018 तक यह परियोजना 25 लाख श्रमिकों तक पहुंच जायेगी, जिससे वे इस प्रणाली में शामिल होकर सुरक्षित प्रवासन कार्यक्रम का हिस्सा बन जायेंगे।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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