- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 1 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - भारतीय अभिनेत्री श्रीदेवी का दुबई में निधन होने से खाड़ी देशों में मरने वाले प्रवासी श्रमिकों के पार्थिव देह को स्वदेश लाने में होने वाली देरी उजागर हुई है, जिससे मृतक के परिजनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
भारत की पहली महिला सुपरस्टार के नाम से प्रसिद्ध 54 वर्षीय अभिनेत्री का 24 फरवरी को दुबई में उनके होटल के बाथटब में दुर्घटनावश डूबने से निधन हो गया था।
श्रीदेवी का पार्थिव शरीर 27 फरवरी को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से भारत लाया गया था और अगले दिन 28 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
प्रवासी अधिकार कार्यकर्ता भीम रेड्डी के अनुसार इसके विपरीत ओमान की राजधानी मस्कट में प्रवासी श्रमिक भोजन्ना अरेपल्ली की बीमारी के कारण लगभग एक महीने पहले मृत्यु होने के बावजूद उनका पार्थिव शरीर आज भी वहीं है।
प्राधिकारियों के साथ समन्वय कर रहे रेड्डी ने कहा कि अरेपल्ली के पार्थिव शरीर के 1 मार्च को दक्षिण भारतीय शहर हैदराबाद पहुंचने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि आमतौर पर प्रवासी मजदूरों के पार्थिव शरीर को स्वदेश लाने में कई महीने लग जाते हैं।
श्रीदेवी के पार्थिव शरीर के स्वदेश वापसी के इंतजार का व्यापक मीडिया कवरेज किया गया था। संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने कहा कि वहां की सभी आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करने में समय लग रहा है।
इस घटना से प्रवासी श्रमिकों के पार्थिव शरीर की स्वदेश वापसी में होने वाली देरी के बारे में व्यापक बहस शुरू हुई है। रेड्डी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि विदेशों में मरने वालों के परिजनों को उनके पार्थिव शरीर के लिये अब कम इंतजार करना होगा।
उन्होंने कहा, "हर साल खाड़ी देशों में हजारों लोगों का निधन होता है, लेकिन पहली बार पार्थिव शरीर के स्वदेश वापसी के लिये प्रतीक्षा पर बहस हो रही है।"
रेड्डी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "श्रीदेवी की मृत्यु दुबई में होने से प्रवासी श्रमिकों के परिजनों की परेशानी कम होने की आस बंधी है।"
सरकारी आंकड़ों के अनुसार खाड़ी देशों में लगभग 60 लाख भारतीय प्रवासी हैं और पिछले साल लगभग 8,000 भारतीय नागरिकों की विदेशों में मृत्यु हुई थी। इनमें से सबसे अधिक लोगों का निधन सऊदी अरब और उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात में हुआ था।
भारतीय अधिकारी प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु का सबसे सामान्य कारण बीमारी और उच्च तापमान में काम करने को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रताड़ना की शिकायतें भी मिलती रहती हैं और पैसा बचाने के लिए कई प्रवासी मजदूर बीमार पड़ने पर भी अपना इलाज नहीं करवाते हैं।
नई दिल्ली में संयुक्त अरब अमीरात दूतावास का कहना है कि स्वदेश वापसी की प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से मौत के कारण का मेडीकल प्रमाणपत्र लेना शामिल है।
दूतावास ने कहा कि रिश्तेदार या प्रायोजक और प्रवासी श्रमिकों के मामले में नियोक्ता की आधिकारिक पहचान के अलावा मृतक व्यक्ति का पासपोर्ट भी स्वदेश वापसी कराने वाले अधिकारियों के समक्ष जमा करवाना अनिवार्य है।
दुबई में प्रवासी श्रमिकों के साथ काम करने वाली वकील अनुराधा वोब्बीलीसेल्टी ने कहा, "कई बार पार्थिव शरीर कई दिनों तक मुर्दाघर में पड़ा रहता है, क्योंकि नियोक्ता उसे लेने ही नहीं आते हैं।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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