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भारत में नया सख्तथ तस्करी रोधी कानून लाने में देरी से कार्यकर्ता चिंतित

by अनुराधा नागराज और रोली श्रीवास्तव | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 26 April 2018 08:40 GMT

-    अनुराधा नागराज और रोली श्रीवास्तव

    चेन्नई / मुंबई, 26 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - यौन तस्‍करी से बचायी गई लिलुफा बीबी को उम्मीद थी कि भारत सरकार आधुनिक दासता के जाल में फंसे हजारों लोगों की मदद के लिये नये कानून को अमलीजामा पहनाएगी। लेकिन इस महीने समाप्त हुये संसद के अंतिम सत्र में भी इस विधेयक को सदन पटल पर प्रस्‍तुत नहीं किया जा सका।

      बीबी और अन्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे कड़े तस्करी रोधी कानून पारित करने में देरी से स्‍वयं को छला हुआ महसूस करते हैं। इसमें तेजी से न्याय दिलाने और तस्‍करी से बचाये गये लोगों के पुनर्वास के प्रावधान हैं।

     सात साल पहले एक वेश्यालय से बच निकलने वाली 24 वर्षीय बीबी ने कहा, "देरी का मतलब है कि जमानत पर जेल से छूटे तस्कर उन पीड़ितों को धमकियां देते रहेंगे, जिनका अभी भी उचित पुनर्वास नहीं हुआ है।"

    बीबी की तरह कार्यकर्ता भी चिंतित हैं। वे सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुये कहते हैं कि 2016 में मानव तस्करी के 8,132 मामले दर्ज किये गये, जो 2015 की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक हैं।

   तस्‍करी से बचाये गये पीडि़त और कार्यकर्ता इस विधेयक को जल्द ही संसद द्वारा पारित करने की मांग कर रहे हैं, क्‍योंकि उन्‍हें आशंका है कि 2019 में होने वाले आम चुनावों को लेकर राजनीतिक गहमागहमी से सांसदों का ध्यान इससे हट सकता है।

     बीबी ने कोलकाता से फोन पर थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "तस्‍करों के लिए सख्‍त  सजा और पीड़ितों के लिए त्वरित राहत के प्रावधान वाले नये कानून से तस्करी का परिदृश्य पूरी तरह से बदल सकता है।"

     इस विधेयक मसौदे का उद्देश्‍य दक्षिण एशिया में इस तरह के अपराधों के खिलाफ लड़ाई में भारत को अग्रणी बनाना है। दक्षिण एशिया में जबरन मजदूरी करवाने, भीख मंगवाने और जबरन शादी करवाने जैसे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। 

      पूर्वी राज्य ओडिशा के सांसद तथागत सतपति ने कहा, "इस विधेयक की अत्‍यधिक आवश्‍यकता है।" ओडिशा में वर्षों से अधिकारियों के समक्ष लोगों की तस्करी कर उन्‍हें ऋण बंधन के जाल में फंसाने, अक्‍सर ईंट भट्ठों पर ऋण बंधक बनाने की शिकायतें दर्ज कराई जाती रही हैं।  

   

    उन्होंने कहा, "सरकार बैंकिंग कानूनों में बदलाव कर रही है और वित्त विधेयक पेश कर रही है, लेकिन इस तरह के महत्वपूर्ण सामाजिक विधेयक ठंडे बस्‍ते में पड़े हैं।"

   

   'सख्‍त कानून'

    मानव तस्करी विशेषज्ञ और मुंबई के टाटा सामाजिक विज्ञान संस्‍थान में प्रोफेसर पी.एम. नायर के अनुसार कार्यकर्ताओं का कहना है कि महत्वपूर्ण बात यह है कि नये कानून में देह व्‍यापार के साथ जबरन मजदूरी पर भी ध्यान केंद्रित किया जायेगा।

      कानून का मसौदा तैयार करने में सहायता करने वाले नायर ने कहा, "इसमें पहली बार केवल यौन तस्‍करी को ही नहीं, बल्कि मजदूरी करवाने, भीख मंगवाने और विवाह कराने के लिए मान्‍य तस्‍करी को भी अपराध माना गया है।"

   नए कानून के तहत तस्कर को 10 साल या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। दंड में कम से कम एक लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान भी शामिल है।

     इस विधेयक में तस्करी के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिये विशेष अदालतों और पीडि़तों को कानूनी स‍हायता, सलाह तथा सीमा पार से तस्‍करी के मामलों में पीडि़त को जल्‍दी से उनके देश भेजने के लिये पुनर्वास कोष का प्रावधान है।

       महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव चेतन सांघी ने कहा कि इस विधेयक में सबूत जुटाने और उन्‍हें अदालत में प्रस्‍तुत करने के दिशानिर्देश के साथ ही गवाह की सुरक्षा के उपाय भी शामिल किये गये हैं।

      विधेयक के मसौदे के कर्णधार सांघी ने कहा, "इसमें प्रबंधकों और संचालकों की गिरफ्तारी के अतिरिक्‍त उन संपत्तियों के मालिकों के खिलाफ कार्रवाई के प्रावधान हैं, जिन्हें जानकारी होनी चाहिये कि उनकी संपत्ति पर क्या कार्य किया जा रहा है।"

     2016 में उनके मंत्रालय ने पहला मसौदा जारी कर इस पर सुझाव और लोगों की प्रतिक्रिया लेनी शुरू की थी। सांघी ने कहा कि यह कानून काफी समय से लंबित है।

       उन्होंने कहा, "हम इसकी अत्‍यावश्‍यकता को नहीं समझ रहे हैं, लेकिन तस्‍करी के जाल में फंसे व्यक्ति के लिये इसमें प्रत्‍येक मिनट की देरी मायने रखती है।"

    'व्यर्थ प्रयास'

    भारत में पहले से ही ऋण बंधन में शामिल नियोक्ताओं और बिचौलियों तथा यौन तस्करी के मामलों में दलालों और वेश्यालय प्रबंधकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के कानून हैं।

     तस्करी रोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि अक्सर मुकदमों को खींचा जाता है और तस्‍करी से बचाये गये पीडि़तों के नकद मुआवजा, आवास तथा बच्चों के लिए निशुल्‍क शिक्षा जैसे लाभों के अधिकारों को नजरअंदाज या इन्‍हें देने से इनकार किया जाता है।

       अभियान चलाने वालों का यह भी कहना है कि अधिकारी शायद ही कभी उन लोगों को पकड़ते हैं, जो गुलाम यौनकर्मियों के साथ यौन संबंध बनाने के लिये दलालों और वेश्‍यालय के प्रबंधकों को भुगतान करते हैं।  वे कहते हैं कि नया कानून भी ऐसे ग्राहकों के लिये उतना सख्‍त नहीं है।

     नायर ने कहा कि तस्करी रोकने के लिये नए कानून के साथ ही कई और कानून हैं, इसलिए इससे जांच अधिकारियों में "भ्रम पैदा" हो सकता है।

    लेकिन बीबी जैसे कई लोगों के लिए नया कानून अब भी दासता की परिस्थितियों में फंसे लोगों को बचाने की बेहतर उम्मीद है।

      बचाये गये पीडि़तों के नेटवर्क- उत्‍थान की सदस्‍य बीबी ने पिछले दो वर्ष में अधिकतर समय कानून के लिए सुझाव देने और इसके जल्‍द कार्यान्वयन की वकालत करने में व्‍यतीत किया है।

    बीबी ने कहा, "हमने पत्र लिखे, सांसदों से मिले, विधेयक के महत्व को समझाने के लिये छोटी-छोटी वीडियो फिल्‍में बनायी और व्यवहारिक सुझाव भेजे।"

    कई दौर के विचार- विमर्श के बाद अंततः फरवरी में मंत्रिमंडल ने विधेयक को मंजूरी दे दी थी। लेकिन केंद्र सरकार और क्षेत्रीय दलों के बीच विवादों के कारण यह विधेयक सदन में पटल पर नहीं रखा जा सका था।

    लाभ निरपेक्ष समूह- चेंज मंत्राज़ के रूप सेन के अनुसार विधेयक पारित करने का समय हाथ से निकलते जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगले साल के चुनावों से पहले अगर संसद के दोनों सदनों में इस पर चर्चा नहीं हुई तो यह 2021 तक लंबित हो सकता है।  

    इससे बीबी जैसे लोग निराशा और आक्रोश में है।

     बीबी ने कहा, "ऐसा लगता है कि जैसे हमारे प्रयास व्यर्थ हो गये। मैं प्रतिदिन अपने आस-पास बचाये गये लोगों से मिलती हूं और उनका संघर्ष देखती हूं।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज और रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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