चेन्नई, 17 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)- तमिलनाडु में एक कताई कारखाने में काम करने वाली किशोर लड़की की मौत की जांच के बाद से कपड़ा कर्मियों, विशेष रूप से बंधुआ मजदूरों के कार्य स्थल के वातावरण के बारे में फिर चिंता बढ़ी है।
तलाशी के दौरान, खेत मजदूर की 17 वर्षीय बेटी के 10 मार्च को तिरूपुर जिले के वेल्लाकोइल में गणपति कताई कारखाने में अपनी नियमित ओवरटाइम पारी में नहीं पंहुचने पर वह कारखाने परिसर के कमरे में बेहोश हालत में पाई गई।
उसकी मौत के कारण का पता नहीं चला है क्योंकि पोस्टमोर्टम जांच रिपोर्ट अभी नहीं आई है। हालांकि पुलिस का कहना है कि उन्होंने आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोप में लड़की के एक सह कर्मी को गिरफ्तार किया है।
इस मामले की पूरी जांच की मांग कर रहे सीविल सोसायटी समूहों का कहना है कि देश में वृद्धी कर रहे कपड़ा उद्योग में शारीरिक उत्पीड़न और श्रमिकों के शोषण से संबंधित आत्महत्या के अधिकतर मामलें रिपोर्ट ही नहीं किये जाते हैं।
लड़की की मौत के बारे में कपड़ा उद्योग में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिये महिलाओं के नेतृत्व में गठित मजदूर संघ- तमिलनाडु कपड़ा और आम श्रमिक संघ द्वारा दी गई रिपोर्ट में कहा गया, "उसके शरीर पर घाव और उसकी गर्दन पर रस्सी के निशान थे।"
कई बार प्रयास करने के बावजूद कारखाने के प्रबंधन से बात नहीं हो सकी।
कृषि के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता- कपड़ा उद्योग में यह किशोरी दो वर्ष से काम कर रही थी। उसे प्रतिदिन 210 रूपए दिये जाते थे, जो प्रतिमाह उसकी मां लेती थी।
देश से प्रतिवर्ष करीबन लगभग 2,800 अरब रुपए का कपड़ा और वस्त्र निर्यात करने वाले उद्योग ज्यादातर पश्चिमी तमिलनाडु में हैं। उत्पादकता और मुनाफा बढ़ाने के लिए इस आकर्षक आपूर्ति श्रृंखला का कुछ भाग बंधुआ मजदूरी पर टिका है।
तथाकथित "सुमंगली" योजना के तहत कारखानें, प्रमुखता से युवा लड़कियों को बंधुआ मजदूर के तौर पर तीन साल के लिये काम पर रखते हैं और निश्चित अवधि के अंत में उनके परिवारों को 30,000 से 60,000 रुपए का भुगतान किया जाता है।
मौखिक और यौन उत्पीड़न
आधुनिक समय की गुलामी समाप्त करने के लिए समर्पित एक परोपकारी पहल- स्वतंत्रता कोष और सी एंड ए फाउंडेशन द्वारा 2014 में तमिलनाडु कपड़ा उद्योग में किये गये अध्ययन में पाया गया कि श्रमिकों को अक्सर कम मजदूरी दी जाती है, उन्हें अत्यधिक और कभी-कभी अतिरिक्त समय काम करने के लिए मजबूर किया जाता है तथा बाहर आने-जाने पर पाबंदी के साथ ही उनका मौखिक और यौन शोषण भी किया जाता है।
अध्ययन में कहा गया कि इस समस्या की सही थाह पाना मुश्किल है, लेकिन अनुमान है कि कम से कम एक लाख लड़कियों और युवा महिलाओं का इस तरह से शोषण किया जा रहा है।
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने सी एंड ए फाउंडेशन के साथ मिलकर दक्षिण एशिया में तस्करी और जबरन मजदूरी के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से फरवरी में एक नई पहल की शुरूआत की है।
इस सप्ताह की महिला संघ रिपोर्ट में कहा गया है कि कारखाने के किशोर मजदूरों के लिये काम के दबाव से निपटना मुश्किल हो रहा था।
रिपोर्ट में कहा गया, "प्रतिदिन आठ घंटे की पारी पूरा करने के बाद वह लड़की चार घंटे अतिरिक्त काम करती थी। एक वर्ष के बाद वह काम छोड़ना चाहती थी, लेकिन उसके माता-पिता ने अनुबंध की अवधि पूरी होने तक उसे काम करने के लिये राजी कर लिया था।"
"पुरूष कर्मी उसका यौन उत्पीड़न करते थे और उसने अपने भाई और कारखाना प्रबंधन से इसकी शिकायत की थी।" कारखाना पर किसी ने भी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
सुमंगली प्रणाली के खिलाफ अभियान के संयोजक एम.ए. ब्रीट्टो ने कहा कि ऐसे मामले आम हैं।
उन्होंने कहा, "कारखाना प्रबंधन इनको रफादफा करने के प्रयास करते हैं। अक्सर लड़कियों की जमा मजदूरी रोक ली जाती है और परिवार द्वारा मामला वापस लेने पर ही इसे दिया जाता है या वे लड़की के प्रेम संबंध के बारे में मनगढ़ंत कहानियां बनाते हैं, जिससे लड़की के परिजन शर्मिंदा होकर चुप्पी साध लेते हैं।"
(रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)
((Anuradha.Nagaraj@thomsonreuters.com;))
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