मुंबई, 6 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – इसकी शुरूआत एक स्कूल प्रोजेक्ट के रूप में हुई, जो पूरे शहर में अभियान बन गया और अब यह देश में बाल श्रम की समस्या के समाधान के लिये समुदायों को समझाने के वास्ते एक राष्ट्रीय सामाजिक मीडिया आंदोलन बन गया है।
मुंबई में अमेरिकन स्कूल के 17 वर्ष के छात्र कुणाल भार्गव ने अपनी कक्षा के प्रोजेक्ट के लिये बाल श्रम विषय को चुना। वह सहायक सामग्री के लिये धर्मार्थ संस्था- सलाम बालक ट्रस्ट के पास गया। यह ट्रस्ट सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिये काम करता है।
कुणाल द्वारा तैयार किये गये पोस्टर अभियान से मुंबई पुलिस इतनी प्रभावित हुई कि इस वर्ष के शुरूआत में इसे पूरे शहर में विज्ञापन के तौर पर लगाया गया।
इस हफ्ते, नागरिक संपर्क मंच- लोकल सर्कल्स ने बाल श्रम के मुद्दे पर जानकारी के लिये परिचर्चा समूह तैयार किया है। लोकल सर्कल्स पर शासन और जनता के हित के अन्य मामलों पर 10 लाख से अधिक सदस्य विचार विमर्श करते हैं।
भार्गव ने कहा, "मेरा मानना है कि बाल श्रम एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि मेरे समान स्कूल जाने के बजाय मेरी उम्र के या मुझसे भी छोटे बच्चे काम करते हैं।"
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हम यह रोजाना देखते हैं, इसलिये बाल श्रम रोकने में समुदाय को शामिल करना एक प्रभावी तरीका है।"
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की फ़रवरी 2015 की रिपोर्ट में विश्व के एक करोड़ 68 लाख बाल श्रमिकों में से पांच से 17 वर्ष की आयु के 57 लाख बाल श्रमिक भारत में हैं।
इनमें से आधे से ज्यादा बाल श्रमिक कपास, गन्ने और धान के खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं। एक चौथाई से अधिक बाल श्रमिक निर्माण क्षेत्र में, कपड़ों पर कशीदाकारी, कालीन बुनने, दीया सलाई या बीड़ी सिगरेट बनाने का काम करते हैं। बच्चे रेस्तरां और होटलों में बर्तन धोने और सब्जी काटने या मध्यम वर्गीय घरों में भी काम करते हैं।
सरकार तीन दशक पुराने उस कानून में परिवर्तन करना चाहती है, जिसके तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर 18 खतरनाक कारोबार और खनन, कीमती नगों को तराशने और सीमेंट निर्माण जैसी 65 इकाईयों में काम करने पर प्रतिबंध है।
हालांकि अपने पारिवारिक कारोबार में परिवार की मदद के लिए बच्चे स्कूल के अलावा और छुट्टियों में काम कर सकते हैं। इसके अलावा खेल तथा मनोरंजन उद्योग से जुड़े बच्चे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ काम कर सकते हैं।
लोकल सर्कल्स के संस्थापक सचिन तापड़िया ने कहा कि समूह के सदस्य इस मंच पर सुझाव और तस्वीरें पोस्ट कर सकते हैं तथा बाल श्रम की घटनाओं के बारे में बता सकते हैं, ताकि पुलिस और गैर सरकारी संगठन उस पर कार्रवाई कर सकें।
उन्होंने कहा, "यह मंच एक हॉटलाइन से भी अधिक प्रभावी है। जब लोग किसी बाल मजदूर को चाय की दुकान में काम करते या किसी बच्चे को सड़क पर भीख मांगते देखते हैं तो उनमें से कितने लोगों को हॉटलाइन का नंबर याद रहता है या वे फोन करते हैं?"
उन्होंने कहा, "जबकि लोग इनकी तस्वीरें तुरंत खींच कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं और इससे उनकी मदद होती है।"
समूह की चर्चाओं में अब तक बच्चों से काम करवाने वालों के लिये कड़ी सजा और इस तरह के बच्चों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसे सुझाव मिले हैं, ताकि वे ऐसा हुनर सीखें जो बड़े होने पर उनकी आय का साधन बने।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एफएक्सबी स्वास्थ्य और मानवाधिकार केंद्र की पिछले महिने की रिपोर्ट में कहा गया है कि बचाये गये बच्चों को उनके परिवार से दोबारा मिलवाने की लाचार प्रक्रिया के चलते उनकी तस्करी का जोखिम रहता है और उनको फिर से काम पर लगाया जाता है।
लोकल सर्कल्स बाल श्रम समूह भारतीय पुलिस फाउंडेशन-एक विचार मंच(थिंक टैंक)- के दुवारा चलाया जा रहा है, जिसमें पुलिस अधिकारी, नौकरशाह और सिविल सोसायटी के नेता शामिल हैं।
तापड़िया ने कहा कि बाल श्रम और मानव तस्करी का मुकाबला करने में सामुदायिक पुलिसिंग ने पहले ही अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि लोकल सर्कल्स चर्चा समूह के सदस्यों द्वारा दी गई जानकारी पर दिल्ली और गुड़गांव में अवैध वेश्यालयों पर पुलिस छापे मारे गये हैं।
मुंबई में पुलिस उपायुक्त प्रवीण पाटिल ने कहा, "पुलिस, गैर सरकारी संगठन - बाल मजदूरी रोकने के लिए अपना काम कर रहे हैं। इसमें नागरिकों के शामिल होने से जागरूकता बढ़ाने और अधिक बाल श्रमिकों को बचाने में मदद मिलेगी।"
(रिपोर्टिंग- रीना चंद्रन, संपादन – केटी नुएन। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)
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