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दशकों के बाद भीषण सूखे के कारण ग्रामीणों के गांव छोड़ने से तस्कंरी का खतरा बढ़ा

by Rina Chandran | @rinachandran | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 27 April 2016 00:01 GMT

-    रीना चंद्रन

मुंबई, 27 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - कार्यकर्ताओं का कहना है कि देश के कई राज्यों में दशकों के बाद भीषण सूखे के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोग पानी, भोजन और रोजगार की तलाश में गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जिससे उनकी तस्करी या शोषण का खतरा बढ़ रहा है।

  सरकार का अनुमान है कि आज देश की जनसंख्‍या के एक चौथाई यानि लगभग 33 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं। गांवों में बचे रह गये बच्‍चों, बेसहारा महिलाओं और परिवार के बुजुर्गों के शोषण का खतरा सबसे अधिक है।

    महाराष्ट्र के पुणे में लाभ निरपेक्ष संस्‍था- सोशल एक्‍शन फॉर एसोसिएशन एंड डेवलपमेंट की मंगला दैठांकर ने कहा, "अच्‍छी नौकरी और बेहतर जीवन चाह की रखनेवाले ग्रामीण क्षेत्रों के लोग हमेशा ही आसान शिकार रहे हैं।"

  राज्य के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में लगभग दो दशकों से कार्य कर रही दैठांकर ने बताया, "सूखे के कारण स्थिति और बिगड़ गई है, क्योंकि वे अब अधिक हताश हो गये हैं। उनके पास कुछ भी नहीं है।"

     महाराष्ट्र सूखे से सबसे अधिक प्रभावित राज्‍य है, जहां सालों से वर्षा की कमी से बर्बाद हो रही फसलों, पशुओं के मारे जाने, जलाशयों के सूखने और ऋणग्रस्तता के कारण हजारों किसानों ने आत्महत्या की है।

   राज्य के जालना जिले के गांवों में बुजुर्गों की देखभाल के लिये केवल बेसहारा महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया गया है, जो अपने घरों और सूखे खेतों पर नजर रखते हैं।

    उस्मानाबाद जिले के कुछ गांवों में जल प्रबंधन प्रणालियों के निर्माण में मदद कर रही लाभ निरपेक्ष संस्‍था-पर्याय के विश्वनाथ तोढ़कर ने कहा, "पानी ही नहीं है, इसलिये खेतों में कोई काम भी नहीं है और परिवारों के लिये भोजन भी नहीं है।"

    उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "विशेष रूप से महिलाएं और बच्चे असुरक्षित हैं, क्‍योंकि उनका ध्‍यान रखने के लिये वहां कोई नहीं है।"    

    भीषण संकट

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुरुष अपनी पत्नियों के साथ निर्माण स्थलों पर काम और दिहाड़ी मजदूरी की तलाश में मुंबई और पुणे जैसे शहरों में चले गये हैं, जहां वे फ्लाइओवर के नीचे और फुटपाथ पर सोकर रात बिताते हैं। कुछ सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हैं।

     अन्‍य लोगों को उनके परिवारों के साथ फुसला कर राज्य के सैकड़ों ईंट भट्ठों में काम करने के लिए ले जाया गया है, जहां उन्‍हें कम पैसे में भी कठोर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। कई कुंवारी महिलाओं और विधवाओं की तस्करी कर उन्‍हें शहरों में ले जाकर देह व्‍यापार में ढ़केल दिया गया है।

  संस्‍था-बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय तिंगाल ने कहा, "आपदाग्रस्‍त स्‍थानों से तस्करी आसानी से की जाती है।" संस्‍था का कहना है कि उसने देश के 85,000 से अधिक बच्चों को आधुनिक समय की गुलामी से मुक्‍त कराया है।

    उन्होंने कहा, "सभी का ध्यान सिर्फ उन्‍हीं पर केंद्रित है, क्‍योंकि वे आसान शिकार हैं।"

     मुंबई पुलिस के प्रवक्ता ने बताया कि पुलिस के सामने अब तक सूखे से संबंधित मानव तस्करी का कोई मामला नहीं आया है, लेकिन उन्‍हें पलायन में बढ़ोतरी की जानकारी है और इसके प्रति वे सतर्क भी है।

  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संरक्षण के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान का वादा किया है, लेकिन कार्यकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों ने आलोचना करते हुये कहा है कि सरकार इस मुद्दे पर 'संवेदनशील' नहीं है।

  प्रधानमंत्री को भेजे एक खुले पत्र में  170 कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और अर्थशास्त्रियों ने कहा कि सूखे के परिणामस्‍वरूप "भारी संकट से आबादी का पलायन हो रहा है, जिसका असर बचपन पर पड़ रहा है और  शिक्षा में बाधा आ रही है तथा लोग शिविरों, शहरों के फुटपाथों या तंग झुग्गियों में रह रहे हैं।"

  देश के समृद्ध राज्यों में से एक,  महाराष्ट्र में सूखा प्रभावित पड़ोसी कर्नाटक और अन्य स्थानों से लोग काम की तलाश में अभी भी आ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार कर्नाटक में सूखे से एक करोड़ लोग प्रभावित हैं।

  कार्यकर्ताओं का कहना है कि सूखे के कारण कुछ स्थानों से तो बुजुर्गों और बच्चों सहित पूरा परिवार पलायन करने को मजबूर हो रहा है। आमतौर पर बुजुर्गों और बच्चों को घरों में ही छोड़ दिया जाता है।

    उत्तरी कर्नाटक के गुलबर्गा में क्षेत्रीय आयुक्त अमलान आदित्य बिस्वास  ने बताया, "कई वर्षों के बाद इस क्षेत्र में इतना भीषण संकट देखा गया है। क्षेत्र में चारा नहीं है, पानी नहीं है और खेतों में कोई फसल नहीं है।"

  उन्होंने कहा, "हम बढ़ते पलायन से चिंतित हैं।"

 उन्होंने कहा कि राज्य सरकार खेतों के लिये तालाबों और गाद निकालने के टैंकों का निर्माण कर रही है। उम्‍मीद है कि जून में मानसून की वर्षा से इनके भर जाने से छोटे किसानों को कुछ राहत मिलेगी।

  गांवों में बचे लोग मानसून की बारिश के इंतजार में अभी अपने खेतों में कुएं खोद रहे हैं और ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगा रहे हैं। इस साल वर्षा औसत से अधिक होने की भविष्‍यवाणी से कुछ भय कम हुआ है।

  दैठांकर ने कहा, "अब यह सब वर्षा पर निर्भर करता है। अगर बारिश अच्छी हुई तो लोग गांवों में लौट आयेंगे। अन्यथा यहां वापस आने के लिये उनके पास कुछ नहीं है।"

 

(रिपोर्टिंग- रीना चंद्रन, अतिरिक्‍त रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन- टिम पीयर्स। कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। और समाचारों के लिये देखें http://news.trust.org)

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