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भारत में तस्कर तीन लाख बच्चों को सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर कर रहे हैं - पुलिस

Wednesday, 1 June 2016 14:05 GMT

In this 2014 file photo a boy jumps onto a moving train at a railway station in New Delhi. REUTERS/Adnan Abidi

Image Caption and Rights Information

चेन्नई, 1 जून (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - पुलिस और अवैध व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि देशभर में मानव तस्करी के गिरोह कम से कम तीन लाख बच्चों से रोजाना नशा करा कर, पीट कर या जबरन भीख मंगवाते हैं, जो करोड़ों रुपये का उद्योग बन गया है।

  देश की पुलिस बलों में वितरित करने के लिये तैयार की गई एक रिपोर्ट में लेखकों ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों से सड़कों पर रहने वाले बच्चों की अधिक से अधिक निगरानी करने का आग्रह किया है।

  भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार हर साल देश में 40,000 तक बच्चों का अपहरण किया जाता है, जिनमें से कम से कम 11,000 बच्‍चों का सुराग कभी मिल ही नहीं पाता है।

     तस्करी की समस्‍या पर काम करने वाली संस्‍था- फ्रीडम प्रोजेक्‍ट इंडि़या की सीईओ और सह-लेखक अनीता कनैया ने कहा, "पुलिस भीख मांगने को समस्‍या ही नहीं मानती है, क्योंकि उनका कहना है कि बच्चों के साथ मौजूद वयस्क तो परिवार के सदस्‍य होते हैं या उनको जानने वाला कोई व्यक्ति होता है।"

  उन्‍होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "लेकिन बचाये गये हर 50 बच्चों में से कम से कम 10 तस्करी के शिकार होते हैं और उन्हें पहचानने के लिए लगातार निगरानी की जानी चाहिये।"

   रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक सहानुभूति और अधिक दान पाने के लिये बच्चों को कभी कभी अपंग बना दिया जाता है या जला दिया जाता है।    

   आमतौर पर जो पैसा वे कमाते हैं वह तस्कर ले लेते हैं या उन पैसों से शराब और नशीले पदार्थ खरीदे जाते हैं। 

  यह रिपोर्ट कर्नाटक की बेंगलुरू पुलिस और धर्मार्थ संस्‍थाओं के अनुभवों पर आधारित है।

  स्थानीय पुलिस का कहना है कि समय समय पर भीख मांगने वालों की संख्‍या घटती बढ़ती रहती है। बेंगलुरू जैसे शहरों में त्योहारों से पहले या प्राकृतिक आपदा के बाद सड़कों पर घूमने वाले बच्‍चों की संख्‍या काफी बढ़ जाती है।

  वर्ष 2011 में बेंगलुरू पुलिस ने बच्‍चों को बचाने के लिए "ऑपरेशन रक्षणे" का शुभारंभ किया। उसने विभिन्न सरकारी विभागों और धर्मार्थ संस्‍थाओं के साथ समन्वय कर भीख मांगने वाले मजबूर बच्चों की मदद की योजना बनाई।

   बच्‍चों को बचाने की कार्रवाई शुरू करने से महीनों पहले पुलिस पूरे शहर में फैल गई और सड़कों पर बच्चों की तस्वीरें ली गई, उनकी दैनिक गतिविधियों के बारे में लिखित प्रमाण इकट्ठा किये गये और उनके घरों तक पीछा किया गया।

     कनैया ने बताया, "जब हमने यह काम शुरू किया तो हमारे पास भीख मांगने और तस्करी के बीच संबंध साबित करने के कोई सबूत नहीं थे। लेकिन हमने बड़ी सावधानी से शहर की सड़कों पर जबरन यह काम कराये जाने के लक्षणो को दर्ज करना शुरू किया।"

  आपरेशन से जुड़े पुलिस महानिरीक्षक प्रणब मोहंती के अनुसार पुलिस टीमों और स्वास्थ्य कर्मियों ने एक दिन में शहर के 300 बच्चों को बचाया।

    तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

   मोहंती ने पुस्तिका में कहा, "ऑपरेशन रक्षणे एक ऐसा उदाहरण है, जिसे अंतर एजेंसी सहयोग मॉडल के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।"  इस पुस्तिका में निगरानी, डाटा संग्रह करने और पुनर्वास के लिए सुझाव के साथ ही प्रासंगिक कानूनों की सूची भी शामिल है।

     कनैया ने कहा, "अब हम इस पुस्तिका को देश के प्रत्‍येक पुलिस मुख्यालय में भेजने के लिये नियोजित अभियान शुरू कर रहे हैं। उसके बाद भीख मांगने वाले बच्‍चों पर और पुलिसकर्मियों के लिए बचाव अभियान पर कार्यशालाएं आयेजित की जायेंगी।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- अलेक्‍स वाइटिंग; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org) 

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