नई दिल्ली, 6 जून (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक प्रतिष्ठित भारतीय अस्पताल प्रशासन ने सोमवार को कहा कि उनसे पीडि़तों को जरूरतमंद मरीजों के रिश्तेदार बताकर तस्करों ने धोखे से गुर्दे निकालवाये। घटना के प्रकाश में आने के बाद से इस अपराध के लिए पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस ने गुरुवार को शहर के प्रमुख निजी अस्पतालों में से एक- इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में मानव अंगों के गोरखधंधे का भंडाफोड़ किया। तब से अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक के दो सहायकों सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
तस्कर कथित तौर से गरीब लोगों को तीन लाख रुपये में अपने गुर्दे बेचने का लालच देते हैं और फिर भारी लाभ पर इन अंगों की काला बाजारी की जाती है।
अस्पताल प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने के लिये पहचान के जाली कागजातों के जरिये पीड़ितों को प्राप्तकर्ताओं के रिश्तेदार बताया गया था, जिसकी भारतीय कानून के तहत अनुमति है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल प्रशासन ने स्वीकार किया है कि अस्पताल में अनजाने में पीड़ितों के शरीर से अंगों को निकाला गया। उसने कहा कि अस्पताल प्रशासन कथित गुर्दे की बिक्री के अवैध धंधे की जांच में पुलिस के साथ सहयोग कर रहा है।
अस्पताल से थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को भेजे बयान में कहा गया कि "हर प्रकार की सावधानियां बरती गईं थीं, लेकिन इस गोरखधंधे के लिए आपराधिक इरादे से नकली और फर्जी कागजातों का इस्तेमाल किया गया था।"
"मरीजों और अस्पताल प्रशासन को धोखा देने के लिए अच्छी तरह से नियोजित इस काम में अस्पताल को मोहरा बनाया गया है। हम पुलिस से आग्रह करते हैं कि इस अपराध में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाये।"
बयान में कहा गया कि गिरफ्तार किये गये पांच संदिग्धों में से दो अस्पताल में कार्यरत एक वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ के निजी सहायक हैं, लेकिन वे अस्पताल के कर्मचारी नहीं हैं।
प्रत्यारोपण के लिये अंगों की भारी कमी के कारण देश में मानव अंगों की काला बाजारी तेजी से बढ़ रही है।
भारत में अंगों का व्यापार गैर कानूनी है और प्रत्यारोपण के लिये अंगदान के वास्ते प्रत्येक अस्पताल में मौजूद विशेष प्रत्यारोपण समिति से मंजूरी लेना जरूरी होता है।
पुलिस में दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सहित पूरे देश से पीड़ितों को लालच देकर गुर्दे बेचने के लिये दिल्ली लाया गया।
उसके बाद आवश्यक प्रक्रिया के लिए तस्करों ने जाली दस्तावेज का इस्तेमाल कर उन्हें अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया था।
इस अपराध में शामिल पीड़ितों की संख्या जानने के लिये जांच जारी है, लेकिन अब तक पांच लोगों की पहचान हो चुकी है।
जाली कागजात पहचानने में अपोलो अस्पताल की प्रत्यारोपण समिति की विफलता पर भी प्रश्न उठ रहे हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उसने सभी कानूनी जरूरतों का पालन किया है।
बयान में कहा गया कि "किसी भी प्रकार की प्रत्यारोपण शल्य चिकित्सा के लिए सहमति प्रदान करने की प्रक्रिया में कानून और कर्त्यव्यों का पालन सुनिश्चित करने के लिये अस्पताल में एक स्वतंत्र निकाय है, जिसमें बाहरी सदस्य भी हैं।"
"यह समिति अधिनियम के तहत आवश्यक सभी दस्तावेजों की जांच करती है। इसके अलावा, अस्पताल सुनिश्चित करता है कि कानून के अनुसार सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया हो।"
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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