नई दिल्ली, 9 सितम्बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - गुलामी रोकने के लिये काम करने वाली एक धर्मार्थ संस्था ने शुक्रवार को कहा कि परिधान उद्योग में जबरन मजदूरी पर नियंत्रण के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है कपास कताई मिलों पर ध्यान देना, जहां के कर्मी फैशन आपूर्ति श्रृंखला की सामग्री के स्रोत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकते हैं।
तीन वर्ष पहले बांग्लादेश में हुई राना प्लाजा दुर्घटना के बाद से परिधान उद्योग में काम करने के माहौल और कर्मियों के अधिकारों में सुधार के मुद्दे को अधिक गंभीरता से लिया गया है। राना प्लाजा हादसे में 1,136 कर्मियों की मौत हो गई थी।
दुर्घटना के बाद से वैश्विक ब्रांडों और धर्मार्थ संस्थाओं ने पारदर्शिता और कर्मियों की रक्षा के लिये इमारतों की सुरक्षा से लेकर बेहतर वेतन और काम के घंटे सुनिश्चित करने जैसे कई उपायों की पहल की है।
लेकिन ज्यादातर परियोजनाएं खेतों में कपास उगाने वाले किसानों या कपड़े सीने वाले कारखाना कर्मियों पर केंद्रित है, जबकि आपूर्ति श्रृंखला के बीच की कड़ी कताई मिलों में काम करने वालों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है।
कैलिफोर्निया की धर्मार्थ संस्था- एज यू सो के सौजन्य से, रिस्पांसिबल सोर्सिंग नेटवर्क (आरएसएन) ने 1 सितंबर को भारत और बांग्लादेश की मिलों पर केंद्रित एक परियोजना का शुभारंभ किया, जहां लाखों कर्मी काम करते हैं।
आरएसएन की निदेशक पेट्रीशिया जुरेविच ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "आपूर्ति श्रृंखला के बीच की कड़ी कताई मिलें मजदूरों से जबरन काम करवाकर उत्पादित कपास की पहचान करने में और इसे कॉर्पोरेट आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।"
उन्होंने कहा, "हमारी पहल का लक्ष्य आपूर्ति श्रृंखला का सबसे अपारदर्शी स्थान है, जहां सूत की कताई करने वाले कर्मी विभिन्न प्रकार के कपास एक साथ मिलाते है़। जिस कपास से हमारे कपड़े में बुने गये हैं क्या उसके लिये जबरन मजदूरी करवाई गई है यह जानने के लिये यह कर्मी महत्वपूर्ण हैं।"
जुरेविच ने यह भी कहा कि दक्षिण भारत की कताई मिलों में हजारों युवा महिलाओं से बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है, जहां उन्हें अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देकर लाया जाता है, लेकिन वास्तव में उन्हें भयावह माहौल में काम करने को मजबूर किया जाता है।
डच सेंटर फॉर रिसर्च ऑन मल्टीनेशनल कारपोरेशन्स (सोमो) की 2014 की रिपोर्ट में पाया गया कि मिलों में महिलाओं को कम वेतन पर अधिक समय तक काम करने को मजबूर किया जाता है और उनके साथ कोई अनुबंध नहीं किया जाता है, उन्हें कोई वैतनिक अवकाश नहीं दिया जाता है और उनके बाहर आने जाने पर भी पाबंदी होती है।
अमेरिका और ब्रिटेन के कानून में जबरन मजदूरी करवा कर उत्पादित माल के आयात पर प्रतिबंध है और कंपनियों द्वारा गुलामी और तस्करी रोकने के लिये की गई अपनी कार्रवाई रिपोर्ट सौंपना आवश्यक है।
ऐसे समय में जब उपभोक्ता और निवेशक सामाजिक रूप से अधिक जागरूक हो चुके हैं, वे नैतिक उत्पादों की मांग करते हैं और कंपनियों को मानवाधिकार के पैमाने पर तौल रहे हैं।
आरएसएन का कहना है कि उनकी पहल- यार्न एथिकली एंड ससटेनेबली सोर्सड (येस) के जरिये कताई मिलों के कर्मियों को जबरन मजदूरी करने वाले और तस्करी कर लाये गये श्रमिकों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा।
इससे काम के माहौल में सुधार, श्रमिकों की स्वीकृति का आकलन और प्रमाण पत्र देने के लिये मिलों में नीतियां लागू करने में भी मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि एडिडास, हडसन बे कंपनी, बीजेस होलसेल क्लब और वुलवर्थस होल्डिंग्स लिमिटेड जैसे प्रमुख ब्रांडों ने इस पहल का समर्थन किया है और येस के शुरू होने के एक सप्ताह के भीतर ही भारत की एक मिल ने संपर्क कर पूछा है कि कैसे प्रमाणित बना जा सकता है।
उन्होंने कहा, "यह दर्शाता है कि उद्योग जगत में इस प्रकार के सत्यापन की मांग है।"
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन-एलन वुलफ्रोस्ट; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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