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फीचर- "कुंग फू" ननों की मानव तस्करी के विरोध में हिमालय तक साइक्लिंग

by नीता भल्ला | @nitabhalla | Thomson Reuters Foundation
Friday, 16 September 2016 02:48 GMT

Buddhist nuns from the Drukpa lineage pictured in Ladakh during their cycle across the Himalayas to raise awareness about human trafficking of girls and women in the impoverished villages in Nepal and India August 30, 2016. REUTERS/Live To Love International/Handout via REUTERS

Image Caption and Rights Information

नई दिल्ली, 16 सितम्बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - काले स्‍वेटपैंट, लाल जैकेट और सफेद हेलमेट पहने भारत की खड़ी, संकीर्ण पहाड़ी से गुजरता नेपाल के सैकड़ों साइकिल चालकों का दल टूर द फ्रांस के हिमालयी संस्करण जैसा प्रतीत होता है।

हालांकि दोनों दलों में केवल केवल इतनी ही समानत है। यह यात्रा लम्‍बी और कठिन है, इसके लिये कोई पुरस्कार राशि या वैश्विक सम्‍मान नहीं है और इसके प्रतिभागी पेशेवर साइकिल चालक नहीं, बल्कि भारत, नेपाल, भूटान और तिब्बत की बौद्ध नन हैं।

बौद्ध संप्रदाय के प्रसिद्ध द्रुकपा वर्ग की पांच सौ नन दूरदराज के क्षेत्रों में मानव तस्करी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शनिवार को नेपाल के काठमांडू से भारत के लेह तक 4000 किलो मीटर (2,485 मील) की साइकिल ट्रेक को पूरा कर रही हैं।

22 साल की नन जिग्मे कोंचोक ल्हामो ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "पिछले वर्ष भूकंप के बाद जब हम नेपाल में राहत कार्य कर रहे थे, तो हमें पता चला कि गरीब परिवारों की लड़कियों को बेचा जा रहा था, क्‍योंकि उनके माता-पिता अब उनका भरण-पोषण करने की स्थिती में नहीं हैं।"

ल्हामो ने कहा, "हम लड़कियां लड़कों से कमतर हैं और उन्हें बेचना ही ठीक है इस दृष्टिकोण को बदलने के लिए कुछ करना चाहते थे।" उन्‍होंने कहा साइकिल ट्रेक से पता चलता है कि "महिलाओं में भी पुरुषों के समान ही सामर्थ्‍य और ताकत है।"

दक्षिण एशिया में कई महिला नेता हैं और यहां की संस्कृतियों में मातृत्व को श्रद्धेय माना जाता है तथा देवियों की पूजा की जाती है, लेकिन यहां पर अनेक लड़कियां और महिलाएं हिंसा के खतरे और कई बुनियादी अधिकारों के बगैर रहती हैं।

महिलाओं को पाकिस्तान में परिवार के सम्‍मान के लिये हत्‍या (ऑनर किलिंग) से लेकर भारत में भ्रूण हत्या और नेपाल में बाल विवाह जैसे खतरों से जूझना पड़ता है, हालांकि बढ़ती जागरूकता, कारगर कानून और आर्थिक सशक्तिकरण से इस नजरिए में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।  

"कुंग फू" नन

नेपाल से भारत तक साइकिल ट्रेक द्रुकपा ननों के लिए कोई नई बात नहीं है।

उनकी यह चौथी यात्रा है। इन यात्राओं के दौरान वे लैंगिक समानता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पर्यावरण सुरक्षा के संदेश को फैलाने के लिए स्थानीय लोगों, सरकारी अधिकारियों और धार्मिक नेताओं के साथ बैठक करती हैं।

वे गरीबों को भोजन पंहुचाती हैं, ग्रामीणों को चिकित्सा उपलब्‍ध कराने में मदद भी करती हैं और मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित होने के कारण उन्‍हें "कुंग फू नन" कहा जाता है।

ग्‍यालवांग द्रुकपा के नेतृत्व वाली द्रुकपा वर्ग की इन ननों को उनकी अपारम्‍परिक गतिविधियों के कारण बौद्ध पसंद नहीं करते हैं।

कमजोर हिमालयी समुदायों की सहायता के लिये द्रुकपा ननों के साथ कार्य करने वाली धर्मार्थ संस्‍था- लिव टू लव इंटरनेशनल http://www.livetolove.org/ की अध्यक्ष कैरी ली ने कहा, "पारम्‍परिक रूप से बौद्ध ननों के साथ बौद्ध भिक्षुओं की तरह व्यवहार नहीं किया जाता है। वे खाना बनाती और सफाई करती हैं तथा उन्‍हें व्यायाम करने की अनुमति नहीं होती है, लेकिन परम पावन का मानना है कि यह निरर्थक है और इसलिये उन्‍होंने इस प्रचलन को समाप्‍त करने का निर्णय लिया।"

उन्‍होंने कहा, "अधिकार हासिल करने की बढ़ती प्रवृत्ति से परेशान भिक्षुओं के उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं के बाद परम पावन ने अन्य बातों के अलावा उन्‍हें नेतृत्व की भूमिका दी और यहां तक की उनके लिये कुंग फू कक्षाएं भी शुरू की।"

ली ने कहा कि 53 वर्षीय ग्‍यालवांग द्रुकपा के प्रगतिशील नजरिए की वजह से पिछले 12 वर्षों में द्रुकपा ननों की संख्या 30 से बढ़कर 500 हो गई है। ग्‍यालवांग द्रुकपा अपनी मां से प्रेरित होकर लैंगिक समानता के समर्थक बनें।

ग्‍यालवांग द्रुकपा भी साइकिल यात्रा में भाग लेते हैं। वे भी ननों के साथ दुर्गम इलाकों और प्रतिकूल मौसम में साइकिल चलाते हैं तथा खुले आकाश के नीचे कैंप में रहते हैं।

"केवल प्रार्थना पर्याप्त नहीं"

द्रुकपा ननों का कहना है कि उनको विश्‍वास है कि वे नजरिया बदलने में मदद कर रही हैं।

18 साल की नन जिग्मे वांगचुक ल्हामो ने कहा, "ज्‍यादातर लोग जब हमें साइकिल चलाते देखते हैं, तो उन्‍हें लगता है कि हम लड़के हैं।"

उन्‍होंने कहा, "लेकिन जब हम उन्हें बताते हैं कि हम न केवल लड़कियां, बल्कि बौद्ध नन हैं, तो वे हैरान हो जाते हैं। मुझे लगता है कि इससे महिलाओं के बारे में उनका नजरिया बदलने और उन्हें समानता का दर्जा दिलाने में मदद मिलती है।"

दक्षिण एशिया में भी मानव तस्करी की घटनायें सबसे तेजी से बढ़ रही है और भारत इसका केंद्र है।

तस्‍करी माफिया धोखा देकर गरीब ग्रामीणों को बंधुआ मजदूरी में ढ़केल देते हैं या शहरी घरों, रेस्‍टोरेंट, दुकानों और होटलों में दास के रूप में काम करने के लिए भेज देते हैं। कई लड़कियों और महिलाओं के वेश्यालयों में बेचा जाता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भूकम्‍प सहित प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने से दक्षिण एशिया में पहले से ही गरीब लोगों की तस्करी बढ़ जाती हैं।

 

तबाह हुये क्षेत्रों में सामाजिक संस्थाओं के बिखर जाने से भोजन और मानवीय आपूर्ति हासिल करने में  कठिनाइयों के कारण महिलाओं और बच्चों के अपहरण, यौन शोषण और तस्करी का खतरा बढ़ जाता है।

नेपाल में अप्रैल और मई 2015 में दो भूकंप आये, जिसमें 9,000 लोग मारे गए, हजारों परिवार बेघर हो गये और कईयों के पास आय का कोई साधन नहीं बचा और इसके कारण वहां से अधिक बच्‍चों और महिलाओं की तस्‍करी की जा रही है।

 

नेपाली अधिकारियों के अनुसार आपदा के बाद 40,000 से अधिक बच्चों के माता पिता मारे गये या घायल हो गए हैं, जिसके कारण वे संकट की स्थिती में हैं।

द्रुकपा ननों का कहना है कि भूकंप के बाद मानव तस्करी के बारे में उनकी सोच में महत्वपूर्ण बदलाव आया है और अब उन्‍हें लगता है कि आपदा प्रभावित पहाड़ी गांवों में अपनी पीठ पर चावल लाद कर ले जाने के अलावा और अधिक कार्य करने की जरूरत है।

जिग्मे कोंचोक ल्हामो ने कहा, "लोगों को लगता है कि हम नन हैं इसलिये हमें मंदिरों में रह कर हर समय प्रार्थना करनी चाहिये, लेकिन केवल प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं है।"

उन्‍होंने कहा, "परम पावन हमें सिखाते हैं कि हम जो प्रार्थना करते हैं, उसका अनुपालन करने के लिये हमें बाहर जाकर कार्य करना चाहिये। आखिरकार कहने से अधिक करना महत्‍वपूर्ण होता है।"

(रिपोर्टिंग- नीता भल्‍ला, संपादन-एलन वुलफ्रोस्‍ट; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

Buddhist nuns from the Drukpa lineage pose for a picture in Himachal Pradesh during their cycle across the Himalayas to raise awareness about human trafficking of girls and women in the impoverished villages in Nepal and India, August 30, 2016. REUTERS/Live To Love International/Handout via REUTERS

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