नई दिल्ली 9 नवम्बर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – विश्व बैंक के एक समूह ने बुधवार को कहा कि विश्व बैंक और चाय की दिग्गज कंपनी-टाटा ग्लोबल बेवरेजेज की संयुक्त वित्त पोषित भारत की एक चाय बागान परियोजना की जांच में पाया गया है कि यह गरीब श्रमिकों के कथित शोषण को रोकने में असफल रही है।
विश्व बैंक समूह के सदस्य-अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) ने कहा है कि चाय पत्ती चुनने वालों के शोषण की खबरें मिलने के बाद इससे संबंद्ध कार्यालय ने अमलगमेटेड प्लांटेशन प्राइवेट लिमिटेड (एपीपीएल) की परियोजना की जांच शुरू की।
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को ईमेल किये बयान में आईएफसी ने अनुपालन सलाहकार लोकपाल (सीएओ) जांच का स्वागत करते हुये कहा कि वह असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति में सुधार के लिये काम करेगी।
बयान में कहा गया है कि "अपने वर्तमान कार्यक्रम के तहत आईएफसी एपीपीएल के साथ मिलकर श्रमिकों के रहने और कार्यस्थल पर माहौल में सुधार के लिये लगातार काम कर रही है। यह ऑडिट के बाद अगले चरण में भी सीएओ के साथ अपना सहयोग जारी रखेगी।"
एपीपीएल ने कहा कि जून 2014 में अपने चाय बागानों में किये गये स्वतंत्र मूल्यांकन के बाद कंपनी वर्तमान में आवास, स्वच्छता, चिकित्सा सुविधाओं, स्वास्थ्य और सुरक्षा तथा श्रमिकों के साथ बेहतर संबंध बनाने जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित परियोजना चला रही है।
एपीपीएल ने एक बयान में कहा,"कंपनी इस परियोजना में धन निवेश करने और अपने श्रमिकों के रहने और काम करने के माहौल में सकारात्मक बदलाव लाने के लिये के लिये प्रतिबद्ध है।"
एपीपीएल ने कहा कि उसकी धर्मार्थ शाखा- पीपीएल फाउंडेशन इस परियोजना की निगरानी कर रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि हर संभव तरीके से श्रमिकों को इसका लाभ मिले।
टाटा ग्लोबल बेवरेजेज के स्वामित्व वाले चाय बागानों के अधिग्रहण और प्रबंधन के लिये 2009 में एपीपीएल स्थापित की गई। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय ब्रांड-टेटली इसी कंपनी का है।
लगभग 583 करोड़ रुपये की "टाटा टी" परियोजना में आईएफसी की करीबन 52 करोड़ रुपये की वित्तीय भागीदारी का उद्देश्य शेयरधारक श्रमिकों को बढ़ावा देना और 30,000 से अधिक स्थायी रोजगार के अवसर पैदा करना है।
एपीपीएल में टाटा ग्लोबल बेवरेजेज की 41 प्रतिशत और आईएफसी की 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है तथा शेष शेयर श्रमिकों और छोटी कंपनियों के हैं।
लेकिन चाय पत्ती चुनने वालों से अधिक समय तक काम करवाने, कम मजदूरी देने, उन्हें किसी से भी मिलने नहीं देने, कीटनाशकों का खतरा, खराब स्वास्थ्य और दयनीय स्थानों पर रहने जैसे शोषण के बारे में धर्मार्थ संस्थाओं और ट्रेड यूनियनों की शिकायतों पर फरवरी 2014 में सीएओ जांच शुरू की गई।
सोमवार को जारी किये गये सीएओ के निष्कर्षों में पाया गया है कि आईएफसी श्रमिक, सामाजिक और पर्यावरण के मुद्दों को पहचानने और उनका निवारण करने में असफल रही है। इनमें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, आवास और मजदूरी से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
इसमें कहा गया कि "सीएओ जांच में पाया गया है कि आईएफसी ने अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप है ग्राहक द्वारा दी गई मजदूरी से श्रमिकों के लिये रोजगार सुनिश्चित करने या मजदूरों को 'गरीबी से बाहर निकालने के मार्ग' या 'सुरक्षा और बेहतर स्वास्थ्य' मुहैया कराने के लिये कुछ भी नहीं किया है।"
सीएओ ने जांच में पाया कि आईएफसी के निवेश से भी कर्मचारी शेयर खरीद कार्यक्रम में गड़बड़ी हुई है। इसमें कहा गया है कि एपीपीएल ने शेयर खरीदने से जुड़े जोखिम को गलत तरीके से पेश किया, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों का ऋण बढ़ गया और उन पर शेयर खरीदने का दबाव बन गया।
सीएओ ने कहा कि आईएफसी ने श्रमिक शेयरधारकों से चर्चा किये बगैर अधिक शेयर जारी किये जिससे मजदूरों के शेयरों के मूल्य कम हो गये और एपीपीएल में उनकी हिस्सेदारी घट गई।
ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने आईएफसी से उसके निवेश के सामाजिक प्रभाव की समीक्षा करने और असम में गरीब चाय पत्ती चुनने वालों की दुर्दशा में सुधार के लिए ग्राहकों के साथ काम करने की अपील की है।
एचआरडब्ल्यू में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की वरिष्ठ शोधार्थी जेसिका इवांस ने कहा, "आईएफसी का अपनी नाकामी के प्रति ढ़ीला रवैया है और सामुदायिक स्तर पर भी उसने अपनी पिछली गलतियों में सुधार के लिए कुछ खास काम नहीं किये हैं।"
"आईएफसी बोर्ड को कर्मचारियों के पास कार्य योजना भेजनी चाहिये और श्रमिकों तथा शिकायत करने वाले समूहों के साथ विचार विमर्श करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी प्रकार के शोषण को रोकने के लिये उचित उपाय किये गये हैं।"
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन-केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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