काठमांडू / नई दिल्ली, 27 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - यौन गुलामी से हजारों लड़कियों को मुक्त कराने के लिए भारत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक से सम्मानित 67 वर्षीय नेपाली महिला ने शुक्रवार को कहा कि पीड़ितों के असहनीय दर्द से उन्हें तस्करी के खिलाफ संघर्ष करने का हौसला मिला है।
इस सप्ताह एक सरकारी बयान में कहा गया है कि तस्करी विरोधी धर्मार्थ संस्था- मैती नेपाल की संस्थापक अनुराधा कोइराला को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक- पद्मश्री से सम्मानित किया जायेगा। राष्ट्रपति मार्च या अप्रैल में एक समारोह में उन्हें यह सम्मान प्रदान करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट पर 89 पद्म पुरस्कार विजेताओं में से कुछ व्यक्तियों के नाम और उनकी उपलब्धियों की सूची में अनुराधा कोइराला के बारे में लिखा गया है कि "उन्होंने 12,000 यौन तस्करी की पीड़िताओं को बचाया और उनका पुनर्वास कराया तथा 45,000 से अधिक लड़कियों की तस्करी किये जाने से बचाया।"
छोटे कद की दुबली-पतली शिक्षिका से कार्यकर्ता बनी कोइराला ने कहा कि उन्हें इस पुरस्कार से बहुत प्रोत्साहन मिला है और अब वह देह व्यापार के लिये लड़कियों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिये और अधिक शिद्दत से कार्य करेंगी।
कोइराला ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को फोन पर बताया, "पीड़िताओं के दर्द से मुझे मेरा काम जारी रखने की प्रेरणा मिली है।"
"उनकी मानसिक और शारीरिक पीड़ा देखकर मैं इतनी परेशान हो जाती हूं कि मैं उनके दर्द से मुंह नहीं मोड़ पाती हूं। इससे मुझे इस अपराध से लड़ने और इसे जड़ से उखाड़ फेंकने की ताकत मिलती है।"
संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ और अपराध नियंत्रण कार्यालय के अनुसार विश्व में दक्षिण एशिया में मानव तस्करी तेजी से बढ़ रही है।
गुलामी विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि तस्करों के गिरोह ज्यादातर नेपाल और बांग्लादेश के गरीब गांवों से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की तस्करी कर उन्हें भारत लाते हैं और यहां उन्हें बंधुआ मजदूरी करने के लिये बेच दिया जाता है या बेईमान मालिकों के पास काम पर रख दिया जाता है।
कई महिलाओं और लड़कियों को वेश्यालयों में बेच दिया जाता है। अन्य लोंगों को घरेलू नौकरों के तौर पर, ईंट भट्ठों में मजदूरी करने, रेस्टोरेंट अथवा छोटे वस्त्र और कढ़ाई कारखानों में काम पर रखा जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के वॉक फ्री फाउंडेशन के वैश्विक गुलामी सूचकांक 2016 के अनुसार दुनिया के चार करोड़ 60 लाख गुलामों में से 40 प्रतिशत दास भारत में हैं।
कोइराला ने दो दशक तक शिक्षिका के तौर पर कार्य करने के बाद 1993 में यह पद छोड़कर मैती का गठन किया, जिसका नेपाली भाषा में अर्थ है "मां का घर"। इसका उद्देश्य उन यौन तस्करी से बचाई गई पीडि़ताओं की मदद करना है, जिन्हें सामाजिक कलंक मानकर उनके परिजनों और समुदायों से बहिष्कृत किया जाता है।
पिछले 24 वर्षों में मैती ने काठमांडू में एक आश्रय स्थल, नेपाल-भारत सीमा पर 11 पारगमन गृह, तीन निवारण गृह बनवाये हैं, जहां लड़कियों को परामर्श और सिलाई और मोमबत्ती बनाने जैसे कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा मैती ने दो अस्पतालों और एक स्कूल का निर्माण भी करवाया है, जहां लगभग 1,000 बच्चों को पढ़ाया जाता है।
यह संगठन मानव तस्करी के बारे में जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही तस्करी पीड़ितों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराता है और पीड़ितों को बचाने और अपराधियों को गिरफ्तार करने में पुलिस तथा सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर कार्य करता है।
"दीजा" जिसका नेपाली भाषा में अर्थ है "बड़ी बहन" के नाम से प्रसिद्ध कोइराला को उनके योगदान के लिये संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया भर के कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 2010 में उन्हें सीएनएन हीरोज पुरस्कार प्रदान किया गया था।
उन्होंने कहा, "जब तक परिवार अपने बेटे और बेटियों के साथ समान व्यवहार नहीं करेंगे तब तक तस्करी और गुलामी को समाप्त करना बहुत मुश्किल है।"
पद्म पुरस्कार सामाजिक और सार्वजनिक कार्यों से लेकर चिकित्सा और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिये प्रदान किये जाते हैं। पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा 25 जनवरी यानि भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर की जाती है।
(रिपोर्टिंग- गोपाल शर्मा और नीता भल्ला, लेखन- नीता भल्ला, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिला अधिकारों, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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