- रेजीमन कुट्टप्पन
मस्कट, 29 मार्च (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - कार्यकर्ताओं और मजदूर संघों ने बुधवार को कहा कि श्रमिक अधिकारों में सुधार के नये कानून का उल्लंघन करते हुये कतर ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित कई देशों के अनेक प्रवासी श्रमिकों को घर लौटने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
दिसम्बर से प्रभावी नये कानून में तेल-समृद्ध इस खाड़ी देश में प्रवासी श्रमिकों के लिये नौकरी बदलने और देश छोड़ने की प्रक्रिया को आसान किया गया है। इनमें से कई मजदूरों को 2022 फीफा विश्व कप से पहले फुटबॉल स्टेडियमों के निर्माण के लिए काम पर रखा गया है।
कतर सरकार ने प्रायोजित प्रणाली "कफाला" के बदले नये श्रम सुधारों की वकालत की है, जिसके तहत विदेशी श्रमिकों को नौकरी बदलने या देश छोड़ने के लिए अपने नियोक्ता की सहमति लेना आवश्यक होता है। श्रम अधिकार समूहों का कहना है कि इससे श्रमिकों का खुला शोषण होता है।
मजदूर संघों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रवासी श्रमिकों को अभी भी सरकार से निकासी परमिट लेना आवश्यक होता है। पिछले वर्ष 13 दिसंबर को कानून पारित होने के बाद से प्रवासियों द्वारा लगभग 760 निकासी परमिट के लिये किये गये आवेदनों में से एक चौथाई से अधिक अस्वीकृत किये गये हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ के महासचिव शरन बरो ने कहा, "कतर की बदनाम निकासी परमिट प्रणाली आज भी बरकरार है। कतर का अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समक्ष निकासी परमिट समाप्त करने का दावा एकदम गलत है।"
कतर के अधिकारी तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए उपलब्ध नहीं थे, लेकिन इस महीने की शुरुआत में कतर की सरकारी समाचार एजेंसी के आंकड़ों में बताया गया था कि नवगठित निकास परमिट शिकायत समिति ने 15 फरवरी तक किए गए आवेदनों में से 213 को खारिज कर दिया था।
आवेदनों को खारिज करने का कोई कारण नहीं बताया गया था।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने दोहा से कहा है कि वह नवंबर तक सुधारों को लागू करे, वरना विश्व कप आयोजित करने के लिए निर्माण स्थलों पर प्रवासियों से जबरन मजदूरी करवाने की जांच की जायेगी।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये सुधार अधिक प्रभावी नहीं होंगे, क्योंकि अनुबंध की अवधि के दौरान वैकल्पिक रोजगार पाने के लिए मजदूरों को अपने नियोक्ता की अनुमति लेना अनिवार्य होता है और ये अनुबंध पांच साल तक के हो सकते हैं।
श्रम अधिकारों के जानकारों का कहना है कि अगर मजदूर बिना अनुमति के नौकरी बदलते हैं, तो उन पर "फरार" होने का आपराधिक आरोप लगता है, जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है, कैद हो सकती है और देश से निकाला जा सकता है।
सोलिडेरिटी सेंटर के फ्रांचेस्का रिकार्डोन ने कहा, "ऐसा लगता है कि यह प्रणाली अभी भी प्रभावी है और इससे श्रमिकों का शोषण तथा जबरन मजदूरी करवाने सहित उनके अधिकारों का हनन जारी रहेगा।"
(रिपोर्टिंग- रेजीमन कुट्टप्पन, लेखन- नीता भल्ला, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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