- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 18 अप्रैल (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - कार्यकर्ताओं का कहना है कि दशकों के सबसे गंभीर सूखे के कारण दक्षिण भारत में हजारों किसान और मजदूर जीवित रहने के लिए कर्ज लेने को मजबूर हैं, जिसके कारण उनके ऋण बंधन में फंसने और शोषण का खतरा बढ़ रहा है।
2016 में मानसून की बारिश न होने के कारण सरकार ने केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को सूखा प्रभावित राज्य घोषित किया है।
कार्यकर्ताओं ने इसे किसानों के लिए "सामान्य स्थिति बहाल न होने का समय" बताते हुये कहा है कि बढ़ते तापमान, सूखे जलाशयों और कृषि आधारित रोजगार में कमी के कारण ग्रामीण भोजन, पानी और स्कूल तथा चिकित्सा शुल्क देने के लिए ऋण लेने को मजबूर हैं।
तमिलनाडु में सूखे के प्रभाव पर नजर रख रहे चेन्नई के लोयोला कॉलेज के प्रोफेसर ग्लैडस्टन जेवियर ने कहा, "सभी गांवों के ग्रामीणों पर कर्ज बढ़ रहा है।"
"लोग किसी भी तरह की मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं तथा मानव तस्करी के लिये नये रास्ते खुल रहे हैं। यह खतरा कभी भी इतना गंभीर या स्पष्ट नहीं था।"
वॉक फ्री फाउंडेशन के नवीनतम वैश्विक गुलामी सूचकांक के अनुसार भारत में ऋण बंधन जबरन मजदूरी कराने का सबसे प्रचलित स्वरूप है। यहां लगभग एक करोड़ 80 लाख लोग किसी न किसी रूप में आधुनिक समय की गुलामी करते हैं।
भारत में उच्च ब्याज दरों पर साहूकारों और श्रमिक एजेंटों से लिये या अपने रिश्तेदारों द्वारा उधार ली गयी राशि को चुकाने के लिये देनदारों को सुरक्षा के तौर पर ईंट भट्ठों, चावल के मिलों या खेतों में काम करना पड़ता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस ऋण को चुकाने के लिये उन्हें महीनों काम करना पड़ता है और वे ऋण बंधन के चक्र में फंस जाते हैं।
तमिलनाडु के डेल्टा क्षेत्र में सूखे पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहे धर्मार्थ संस्था- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के आर. मुरली ने कहा कि वर्तमान सरकार की गारंटीड रोजगार जैसी योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं।
"ऋण चुकाने के लिये उन्हें जीवनभर किसी न किसी रूप में बंधक बनकर रहना होगा यह जानने के बावजूद ग्रामीण हर प्रकार का कर्ज लेने को मजबूर हैं। या कहें कि वे स्वयं को मार रहे हैं।"
"आत्महत्याएं"
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार सूखे, बेमौसम बारिश और विश्व में वस्तुओं की कीमतों में उतार चढ़ाव के कारण 2015 में 12,600 से अधिक किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक जनवरी 2017 में तमिलनाडु में 100 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की।
एनसीआरबी का कहना है कि दिवालियापन और ऋणग्रस्तता या कृषि संबंधी मुद्दों के कारण अधिकतर आत्महत्याएं हुई हैं।
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में सूखा प्रबंधन प्रमुख के. श्रीनिवास ने कहा कि टीमों ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जरूरतों का आंकलन किया है और ग्रामीण श्रमिकों की अधिक से अधिक सहायता की जाएगी।
उन्होंने कहा, "भारत सरकार द्वारा निधि जारी की जा रही है और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत ज्यादा आजीविका के लिये अतिरिक्त 50 दिन का काम उपलब्ध कराने की मंजूरी दे दी गई है।"
लेकिन अभियान चलाने वालों का कहना है कि आजीविका कार्यक्रम के भुगतान में देरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नकदी की कमी की वजह से कई लोग शिद्दत से रोजगार की तलाश में हैं।
कृषि श्रमिकों के रूप में काम करने वाले वंचित दलित और जनजाति समुदायों के कई श्रमिकों के पास अचानक कोई काम नहीं है, जिसके कारण वे गांव के साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर हैं।
लाभ निरपेक्ष संस्था- वनाविल ट्रस्ट की प्रेमा रेवती ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "नागापट्टिनम जिले में तीन लाख से अधिक कृषि मजदूर अपने पूरे साल की आजीविका खो चुके हैं।"
इस क्षेत्र के युवा पुरुष और उनकी पत्नियां निर्माण स्थलों पर रोजगार और कस्बों तथा शहरों में दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम की तलाश में अपने घरों से निकल गये हैं।
उन्होंने कहा, "वे घरों के आस पास के परिचित इलाकों से बहुत दूर जा रहे हैं। इसके कारण उनके शोषण का खतरा बढ़ गया है।"
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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