भुवनेश्वर, 4 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि पिछले साल थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की पड़ताल में अवैध अभ्रक खानों में काम कर रहे बच्चों की मौत की खबर उजागर होने के बाद से अधिकारियों ने पूर्वी भारत में अभ्रक खनन वैध करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
अगस्त में अभ्रक उत्पादक राज्य झारखंड में तीन महीने की जांच में पाया गया था कि दो महीने में ही अवैध खदानों में से सौंदर्य प्रसाधन और कार के पेंट में चमक के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले कीमती खनिज- अभ्रक को चुनने और छांटने वाले कम से कम सात बच्चों की मौत हो गई थी।
हालांकि उनकी मौत की शिकायत दर्ज नहीं करवाई गयी थी, क्योंकि पीड़ितों के परिजनों और खनन संचालकों को डर था कि इससे अभ्रक का अवैध खनन बंद हो सकता है, जो भारत के कुछ गरीब क्षेत्रों के लोगों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत है।
बाल अधिकारों के जानकारों का कहना है कि अभ्रक के खनन को वैध बनाने से इस क्षेत्र को नियमित कर बाल मजदूरी समाप्त करने और खदान श्रमिकों के लिए बेहतर मजदूरी तथा हालात सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
झारखंड के खान आयुक्त अबुबकर सिद्दीकी ने कहा कि अधिकारियों की पहले अभ्रक के कचरे के ढ़ेर को बेचने की योजना है। उसके बाद पुरानी अभ्रक खानों और खनन के अन्य भंडारों की नीलामी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। कई बच्चे अपने माता-पिता के साथ अभ्रक के कचरे के ढेर और पुरानी खानों में से खनिज इकट्ठा करने का काम करते हैं।
सिद्दीकी ने झारखंड की राजधानी रांची से फोन पर कहा, "हमने अभ्रक के कचरे के ढ़ेर की नीलामी के लिए बुधवार को एक निविदा अधिसूचना जारी की है। ये पुरानी अभ्रक की खदानों के कूड़े के ढ़ेर हैं, जिन्हें 'धिब्रा' कहा जाता है, जो अभ्रक के कम गुणवत्ता वाले गुच्छे होते हैं।
"लोग अभ्रक के इस कचरे को गैरकानूनी रूप से इकट्ठा कर बेच रहे थे। इसे रोकने के लिए हमने नीलामी में इसे बेचकर अभ्रक के कूड़े को हटाने का फैसला किया है।"
भारत दुनिया के सबसे अधिक अभ्रक उत्पादक देशों में से है। हाल के वर्षों में कार और निर्माण क्षेत्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और "प्राकृतिक" सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त किए जाने वाले पर्यावरण-अनुकूल सामग्री के रूप में चांदी के रंग के क्रिस्टलीय खनिज अभ्रक की लोकप्रियता बढ़ी है।
कभी 700 से भी अधिक वैध खानों का यह उद्योग वनों की कटाई रोकने के 1980 के कानून और कृत्रिम अभ्रक के आविष्कार से काफी प्रभावित हुआ, जिसके कारण अधिकतर खानों को मजबूरन बंद करना पड़ा था।
लेकिन अभ्रक में दोबारा रुचि बढ़ने के कारण संचालक झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह जिलों के जंगलों में सैकड़ों बंद पड़ी, जर्जर खानों में अवैध खनन करवा रहे हैं।
भारतीय कानून में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खानों और अन्य खतरनाक उद्योगों में काम करने की मनाही है, लेकिन अत्यधिक गरीबी में रह रहे परिवार अपनी आय बढ़ाने के लिए बच्चों से भी काम करवाते हैं।
अगस्त में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की पड़ताल के बाद झारखंड के श्रम विभाग ने जांच कराने की घोषणा की थी।
इस महीने के शुरूआत में सौंपी गयी रिपोर्ट के निष्कर्षों में कहा गया है कि स्थानीय लोगों की आय का मुख्य स्रोत अवैध अभ्रक खनन था और पुष्टि की गई कि कुछ श्रमिकों की मौत खदान में दबने के कारण हुई थी। हालांकि इसमें बच्चों की मौत का कोई सबूत नहीं मिला था।
हालांकि श्रम अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने बाल मजदूरी रोकने के लिए पूरे राज्य में जन जागरूकता अभियान शुरू किया था और छोटी दुकानों और रेस्टोरेंट जैसे स्थानों पर काम कर रहे लगभग 250 बच्चों को बचाया था।
सिद्दीकी ने कहा कि नीलामी के लिए लगभग 100 अभ्रक के कचरे के ढ़ेर की पहचान की गई है। इनको बेचने के बाद "भूतहा" खानों और अभ्रक के ताजा भंडारों की नीलामी की जायेगी, हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से समय-सीमा के बारे में नहीं बताया।
(रिपोर्टिंग- जतीन्द्र दास, संपादन- नीता भल्ला और रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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