×

Our award-winning reporting has moved

Context provides news and analysis on three of the world’s most critical issues:

climate change, the impact of technology on society, and inclusive economies.

भारत के बंधुआ मजदूर का जीवन दर्शाती अंधेरी, भयावह झोपड़ी

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 20 July 2017 13:19 GMT

Chinnaraj Balan inside the simulation hut he built for a bonded labour awareness campaign in Ranipet in Tamil Nadu, India, July 19, 2017. TRF/Anuradha Nagaraj

Image Caption and Rights Information

- अनुराधा नागराज

रानीपेट, 20 जुलाई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारत के एक सरकारी कार्यालय के बीच में एक झोपड़ी रखी है। मिट्टी की दीवार वाली इस छोटी सी झोपड़ी की छत टिन की है और इसमें एक छोटी खिड़की है, जिससे बमुश्किल रोशनी अंदर आती है।

चिन्‍नाराज बालन के अनुसार यह झोपड़ी उसके पहले के घर की प्रतिकृति है, जो किसी "फिल्म के सेट" जैसी लगती है।

लेकिन बालन को यह छोटी अंधेरी झोपड़ी बनाते समय तीन साल पहले के उसके ऋण बंधन के वो दिन याद आये जो उसने दक्षिण भारत के एक ईंट भट्ठे पर मात्र 5,000 रुपये का कर्ज चुकाने के लिये लगातार काम करने में बिताये थे।

उस समय उसका घर इस "सेट से भी बदतर" था।

इस सप्‍ताह दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के रानीपेट में अपने द्वारा निर्मित झोपड़ी की प्रतिकृति के बाहर खड़े बालन ने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे इसके भीतर जाकर "बंधन में उसके जीवन को महसूस" करें।

ऋण बंधन के मामलों की पहचान करने के साथ ही श्रमिकों के बचाव और पुनर्वास का कार्य करने वाले सरकारी अधिकारियों के लिए यह एक अनोखा जागरूकता अभियान है। बालन को उम्‍मीद है कि इस अभियान के तहत उस भयावहता को उजागर करने सेलोगों के बीच संवेदनशीलता बढ़ेगी।

बालन ने अधिकारियों से पूछा, "क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इतनी सी जगह में सात-आठ लोगों को रखा जा सकता है?"

"मैं और मेरा परिवार इस तरह रहते थे। हमारे घरों में ना तो बिजली थी और ना ही शौचालय की सुविधा। उस छोटी सी झोपड़ी में ही हम खाना बनाते, खाते और सोते थे। वहां जीवन नरक की तरह था।"

अगले महीने तक बालन अपनी झोपड़ी के साथ तमिलनाडु के 11 जिलों के लगभग 2,000 अधिकारियों से मिलेंगे, जो छोटे गांवों और बड़े शहरों में एक समान ऋण बंधन के मामलों की पहचान कर रहे हैं।

राज्य सरकार के सहयोग से अभियान चला रही लाभ निरपेक्ष संस्‍था-  इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के हेलेन बरनाबास ने कहा, "इसका मकसद कर्मचारियों को बंधुआ मजदूरों की दुर्दशा से अवगत कराना है।"

"दुर्भाग्य से कई अधिकारियों को इन मामलों से निपटने के तरीके के बारे में कुछ भी नहीं पता है। अधिकांश लोगों के लिए यह अभियान इस मुद्दे पर संवेदनशील बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम है।"

A government official comes out of a simulation hut during a debt bondage awareness programme in Ranipet in southern state of Tamil Nadu, India, July 19, 2017. TRF/Anuradha Nagaraj

"प्रतिबंधित लेकिन प्रचलित"

भारत में 1976 से बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित होने के बावजूद यह अभी भी व्‍यापक रूप से प्रचलित है। वंचित दलित और आदिवासी समुदायों के लाखों लोग आज भी ऋण चुकाने के लिए खेतों, ईंट भट्ठों, चावल मिलों, वेश्यालयों में या घरेलू नौकरों के तौर पर काम करते हैं।

पिछले वर्ष भारत सरकार ने आधुनिक समय की गुलामी से निपटने के लिये 2030 तक एक करोड 80 लाख से अधिक बंधुआ मजदूरों को बचाने की योजना की घोषणा की थी और बचाए गए श्रमिकों के लिए मुआवजा राशि को बढ़ाकर पांच गुना किया गया।

तमिलनाडु का यह जागरूकता अभियान अधिकारियों को ऋण बंधन के मामलों की पहचान करने के लिये प्रोत्‍साहित करने का प्रयास है।

अधिकारियों के बालन की झोपड़ी में घुसते ही नाटकीय ऑडियो के जरिये एक युवा परिवार के ऋण बंधन में फंसने की कहानी सुनाई जाती है, जो भारत में गुलामी का सबसे प्रचलित तरीका है।

झोपड़ी में कुछ मिनट बिताने के बाद ग्रामीण स्तर के अधिकारी बी. पनीरसेल्वम ने कहा, "यह इतना गंदा है, जगह – जगह कपड़े लटके हैं और जमीन पर बर्तन बिखरे हैं।"

   "यहां बैठने तक के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है।"

"कार्रवाई की प्रेरणा"

     उनका कहना है कि मुआवजा पाने में देरी, कागजी कार्रवाई और उचित पुनर्वास की कमी के कारण मुक्‍त कराये गये श्रमिकों का दोबारा ऋणबंधन में फंसना सबसे बड़ी चुनौती है।

    बरनाबास ने कहा, "कई अधिकारी इसे बंधुआ मजदूरी का मामला मानने की बजाय इसे आर्थिक समस्या के रूप में देखते हैं।"

रानीपेट में लगभग 200 अधिकारी इस कार्यक्रम में शामिल हुये, जिनमें से कई अधिकारी ऐसे गांवों और कस्बों में तैनात हैं जिनकी पहचान बंधुआ मजदूरी के केंद्रों के रूप में की गयी है।

     जिले के प्रभारी श्रम अधिकारी वेल्लोर गणपति रमेश कुमार ने कहा, "कईयों को कानून और हाल ही में इसमें किये गये बदलावों की पूरी जानकारी नहीं है।"

"झोपड़ी की प्रतिकृति से पता चलता है कि बंधुआ मजदूरों के हालात कितने दयनीय हैं। इससे सरकारी कर्मचारियों के मन में ऐसी छवि उभरेगी जिससे वे कार्रवाई करने को प्रेरित होंगे।"

 

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.

-->