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फीचर- भारतीय सपेरों को आशा है कि "सपनों का घर" उन्हें गुलामी से मुक्ति दिलायेगा

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 23 August 2017 00:00 GMT

  • अनुराधा नागराज

    तिरुवन्‍नमलई, 23 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के तिरुवन्‍नमलई के खेतों को पार कर एम्बलम गांव में अपनी झोंपड़ी की ओर जाते समय युवा दंपति देवी और सेल्वम की नजर एक आधे बने घर पर ठहर जाती है।

एक पत्थर खदान में मजदूरी करने वाली लगभग 27-28 साल की देवी ने कहा, "कुछ महीनों में यह घर हमारा होगा।"

"पहली बार हम एक ऐसे घर में रहेंगे जिसकी छत बारिश में नहीं उड़ेगी और इसमें हमारी निजता के लिये फटे कपड़े लटकाने के बजाय एक असली दरवाजा होगा।"

सांप पकड़ने में माहिर बंजारा इरुला जनजाति के देवी और सेल्वम थिरुवन्नमलई जिले के वंदवासी के बाहरी इलाके की एक "सुरक्षित ग्रामीण समुदायिक परिसर"- अब्दुल कलाम पुरम के शुरूआती निवासियों में से होंगे।

इस परिसर में लगभग 300 लोगों के रहने की व्‍यवस्‍था है। भारत में मानव तस्करी के सबसे प्रचलित तरीके– ऋण बंधन में फंसे "उच्च खतरे" की श्रेणी के रूप में चिन्हित कमजोर समुदाय के परिवारों के पुर्नवास की यह पहली परियोजना है।

लाभ निरपेक्ष संस्‍था– इंटरनेशनल जस्टिस मिशन के अनुसार तमिलनाडु के 11 उद्योगों में लगभग साढ़े चार लाख बंधुआ मजदूर काम करते हैं। इनमें से अधिकतर लोगों को ऋण चुकाने के लिए सुरक्षा के रूप में स्‍वयं काम करने के लिये बरगलाया गया या उनके रिश्तेदार द्वारा लिये गये कर्ज को चुकाने के लिये वे मजदूरी कर रहे हैं, जिसे चुकाने में कई दशक नहीं तो कम से कम कई वर्ष लग सकते हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में एक लाख से अधिक इरुला प्रजाति के लोग रहते हैं और 1976 से बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध के बावजूद उनमें से अधिकतर ऋण बंधन में जकड़े हुये हैं। ईंट भट्ठों, चावल मिलों और वेश्यालयों में व्यापक रूप से ऋण बंधक रखने का प्रचलन है।

पिछले साल भारत सरकार ने 2030 तक एक करोड़ 80 लाख से अधिक बंधुआ मजदूरों को मुक्‍त कराने की योजना और आधुनिक गुलामी से निपटने के लिये बचाए गए श्रमिकों की मुआवजा राशि पांच गुना बढ़ाने की घोषणा की थी।

लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सुनिश्चित करना कठिन है कि परंपरागत रूप से सपेरे और नदियों तथा तालाबों के सामने अस्‍थायी घर बनाने वाले इरुला लोग दोबारा गुलामी के जाल में नहीं फंसेगे।

उन्‍होंने कहा कि स्थायी घरों के बगैर और रोजगार के अवसरों की कमी के कारण वे अल्पमूल्य और मौसमी मजदूरी करवाने वाले मध्यस्थों का आसान शिकार होते हैं।

 

"सपनों का घर"

देश में सबसे व्‍यापक योजनाओं में से एक इस पुनर्वास परियोजना का विचार तमिलनाडु सरकार के एक कनिष्‍ठ अधिकारी प्रभुशंकर थंगराज गुनालन के मन में आया था। गुनालन 2015 में आई बाढ़ के बाद इरुला प्रजाति के लोगों को बेघर होता देख स्तबध थे।

कम मजदूरी पर श्रमिकों की उपलब्‍धता के लिये प्रसिद्ध इस क्षेत्र के 34 वर्षीय प्रभारी गुनालन ने अपने कार्यालय में जाकर लोगों को दोबारा बंधुआ मजदूरी में फंसने से रोकने के नये विचार पर कार्य करना शुरू कर दिया।

प्रशिक्षण द्वारा चिकित्सक गुनालन ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "सैकड़ों लोग बचाए और वापस घर भेजे जा रहे थे और उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी हम पर थी।"

"जब वे वापस आए, तो उनके पास कोई घर नहीं था, जहां हम उन्हें भेज सकें। मौजूदा पुनर्वास प्रक्रिया नाकाफी थी। मैं कुछ टिकाऊ उपाय करना चाहता था।"

गुनालन ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने "फार्मविले खेल की तरह काल्‍पनिक मिशन" के रूप में अब्दुल कलाम पुरम का नक्शा तैयार किया, जिसका नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया, जो ग्रामीण समुदायों को शहरी सुविधाएं उपलब्‍ध करवाना चाहते थे।

एक आत्मनिर्भर ग्रामीण सुरक्षित समुदाय के रूप में परिकल्‍पना किये गये अब्दुल कलाम पुरम में सौर ऊर्जा पैदा होगी, मवेशियों के लिये बाड़ा, चारे का खेत, एक सामुदायिक केंद्र, प्रत्‍येक दो कमरे के घर के लिए शौचालय और एक एकीकृत इरुला आजीविका केंद्र होगा।

करीबन 20 लाख रुपये की परियोजना का पहला चरण पूरा होने वाला है और इसमें 43 परिवारों के रहने की व्यवस्था होगी।

  "आजीविका प्रशिक्षण"

कई सरकारी एजेंसियों के बीच असाधारण समन्वय होने के कारण यह परियोजना क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गई है।

परियोजना की निगरानी करने वाले राजस्व निरीक्षक सतीश शिवप्रकासम कहते हैं, "यह कम से कम कहने के लिए तो दूरदर्शी परियोजना है।"

"संपूर्ण परिसर आत्मनिर्भर होगा और इस पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। ये इरुला प्रजाति के लोगों के लिये सपनों का घर है।"

अब्दुलकलाम पुरम के निवासियों के लिये रोजगार सुनिश्चित करने के वास्‍ते दूसरे चरण में आजीविका केंद्र की योजना बनाई गई है, जिसके लिये चेन्नई के मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के छात्र बंधुआ मजदूर रहे लोगों को बसाने और उन्‍हें दोबारा प्रशिक्षण देने में मदद करेंगे।

समुदाय की क्षमता को देखते हुये जहर निकालने की इकाई, पारंपरिक औषधीय जड़ी-बूटियों की नर्सरी, कोयला बनाने की इकाई और ईंट भट्ठियां स्‍थापित कर रोज़गार के अवसर उपलब्‍ध कराये जायेंगे।

देवी और सेल्वम को यह प्रक्रिया "काफी अविश्वसनीय" लगती है।

घरों का रंग रोगन होते देख और अपने घर के पीछे एक मवेशी बाड़े की कल्‍पना करते हुये  वे कहते हैं "यह अच्छा लग रहा है।"

गुनालन के लिए यह सम्‍मान की बात है।

उन्होंने कहा, "मैंने दो साल पहले इस परियोजना के बारे में सोचा था और आज संतुष्टि है कि यह कुछ तो पूरा हुआ। इरुला लोग जिसके हकदार थे उन्‍हें वह मिल रहा है।" 

(रिपोर्टिंग-अनुराधा नागराज, संपादन-बेलिंडा गोल्‍डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

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