अनुराधा नागराज
चेन्नई, 23 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – गोपनीय आपूर्ति श्रृंखला की जांच कर रही धर्मार्थ संस्थाओं ने बुधवार को कहा कि ग्रेनाइट के लिये दक्षिण भारतीय खदानों में मजदूरी करने वाले दस में से छह श्रमिक भारी ऋण चुकाने के लिए खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। ग्रेनाइट का उपयोग दुनिया भर के टाइल्स, चिमनी और रसोई काउंटर बनाने के लिए किया जाता है।
मानवाधिकार समूह- इंडिया कमेटी ऑफ द नीदरलैंड्स (आईसीएन) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि विश्व के सबसे बड़े पत्थर निर्यातकों में से एक भारत से कई सरकारें ग्रेनाइट खरीदती हैं, जिसका उपयोग कार्यालयों में और शहरों में सार्वजनिक स्थानों के निर्माण में किया जाता है।
धर्मार्थ संस्था- टीएफटी के भारत प्रमुख गिरीश कोवाले ने कहा, "औपचारिक अनुबंधों के बगैर श्रमिकों का शोषण किया जा रहा है, उन्हें कम मजदूरी दी जाती है और पूरी प्रक्रिया की जांच करना मुश्किल हो गया है।" टीएफटी भारत की खदानों को श्रमिकों के हालात में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
"इस विशाल उद्योग में कर्मचारी बेहद असंगठित है और कई काम श्रमिक ही करते हैं।"
भारत की ग्लोकल रिसर्च एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के साथ संयुक्त रूप से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि बातचीत किये गये मजदूरों में से 60 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों ने कहा कि सरकारी सुरक्षा निरीक्षकों के आने पर ही उन्हें सुरक्षा उपकरण दिये जाते हैं।
रिपोर्ट में एक मजदूर यूनियन के समन्वयक के हवाले से कहा गया है कि दक्षिण भारत में खदान दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष औसतन तीन से चार श्रमिक मारे जाते हैं। इसमें बताया गया कि 2016 में 90 फुट (27 मीटर) की ऊंचाई से गिरने पर एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया कि "अगर वह रस्सी से जुड़े सुरक्षा पट्टे से बंधा होता तो उस दुर्घटना को टाला जा सकता था।" इस रिपोर्ट में सरकारों और कारोबारियों से अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में श्रमिकों के शोषण की जांच करने की अपील भी की गई है।
रिपोर्ट के एक लेखक दावुलुरी वेंकटेश्वरलु का कहना है कि विस्फोटों के दौरान या बड़े पत्थरों को हटाते समय हजारों श्रमिकों के मारे या घायल होने का खतरा बना रहता है, लेकिन उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती है और सुरक्षा के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया जाता है।
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "श्रमिकों के लिए कोई हेलमेट, चश्मे और जूते नहीं हैं।"
कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऋण बंधन यानि लोग अपने कर्ज को चुकाने की सुरक्षा के रूप में या अपने रिश्तेदार द्वारा लिये गये ऋण को चुकाने के लिये स्वयं काम करने का प्रस्ताव रखते हैं, जिसके कारण खतरनाक परिस्थितियों के बावजूद कई मजदूर खदानों में काम करने को मजबूर हैं।
आंध्र प्रदेश में 45 साल का भीमाराजू पतरुआ 22,000 रुपये का ऋण चुकाने के लिये एक ग्रेनाइट खदान में लगभग 30 वर्षों से काम कर रहा है।
वह रोजाना 310 रुपये कमाता है, जिसमें से पांच रुपये वह उस बिचौलिए को देता है जिसने उसे नौकरी दिलायी थी।
तेलंगाना के कई श्रमिकों ने शोधकर्ताओं को बताया कि उन्हें नौकरी दिलाने वालों के 10,000 से लेकर 20,000 रुपये चुकाने हैं।
तेलंगाना और कर्नाटक में बातचीत किये गये लगभग एक चौथाई श्रमिकों का कहना है कि उन्हें 35 प्रतिशत की वार्षिक ब्याज दर के ऋण के एवज में काम पर रखा गया था।
आईसीएन के निदेशक जेरार्ड ऊंक ने कहा, "हमें उम्मीद है कि यह रिपोर्ट भारत के ग्रेनाइट क्षेत्र के लिए एक चेतावनी और खदानों में श्रमिकों की स्थिति में तेजी से सुधार करने के लिए उपयोगी होगी।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- कैटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
Our Standards: The Thomson Reuters Trust Principles.