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फीचर- मुंबई के अपने एक कमरे के फ्लैट में स्वोयं को स्वतंत्र महसूस करती यौन गुलाम रही महिला

by Roli Srivastava | @Rolionaroll | Thomson Reuters Foundation
Wednesday, 30 August 2017 08:30 GMT

Sex slavery survivor Sonika in her flat on Mumbai’s outskirts, August 10, 2017. THOMSON REUTERS FOUNDATION/Roli Srivastava

Image Caption and Rights Information

-    रोली श्रीवास्तव

मुंबई, 30 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - मुंबई के बाहरी इलाके में अपने एक कमरे के अपार्टमेंट में सुबह सोनिका ने अपना लंच बॉक्स तैयार किया, काली शर्ट और नीली जींस पहने उसने नाश्ते मे साबूदाना खाया और काम पर जाने के लिए पौने नौ बजे की बस पकड़ने से पहले जल्दी से स्‍वयं की फोटो खींची।

उसकी सुबह की दिनचर्या दूसरी कामकाजी लड़कियों से शायद ही अलग लगती है, लेकिन 19 साल की सोनिका इस सामान्य स्थिति को अच्‍छी तरह से समझती है। दो साल पहले तक वह यौन गुलाम थी और लगभग पांच साल तक वह शारीरिक और यौन शोषण के दुष्‍चक्र में जकड़ी हुई थी।  

सोनिका ने कहा, "मैं अपनी जिंदगी से नफरत करती थी, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरा 18 घंटे से भी अधिक शोषण होता था। मैं मरना चाहती थी।" सोनिका जब मात्र 13 साल की थी तभी यौन कर्मी के रूप में काम करने के लिए उसकी तस्करी की गई थी।

तस्‍करी से बचाई गई महिलाओं को स्वतंत्र रूप से रहने में मदद करने वाली धर्मार्थ संस्‍था- क्षमता की सहायता से सोनिका इस वर्ष की शुरूआत में अपनी एक साथी के साथ एक साधारण से घर में रहने लगी है।

अपने अपार्टमेंट में पालथी मारकर बैठी सोनिका ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मैं यहां सुरक्षित महसूस करती हूं। मेरा अपना कार्यक्रम होता है। जो मुझे पसंद है मैं वही करती हूं।"

अपना पूरा नाम नहीं बताने वाली सोनिका मुंबई में तस्करी से बचाई गयी लगभग उन 50 पीडि़तों में से है, जिनको नौकरी दिलाने और उन्‍हें आत्‍मनिर्भर बनाने में क्षमता ने मदद की है।

कार्यकर्ताओं के अनुसार भारत के लगभग दो करोड़ व्यावसायिक यौनकर्मियों में से एक करोड़ 60 लाख महिलाएं और लड़कियां यौन तस्‍करी की शिकार हैं। उनमें से लगभग आधी किशोर और यहां तक कि नौ साल तक की बालिकाएं भी हैं।

अध्ययनों से पता चला है कि ज्यादातर बचायी गयी लड़कियों की दोबारा तस्‍करी की जाती है, क्योंकि अपने समुदायों में लौटने पर वे आय का कोई वैकल्पिक स्रोत या आजीविका का विकल्प नहीं तलाश पाती हैं।

सरकार और धर्मार्थ संस्‍थाओं द्वारा चलाये जाने वाले हॉस्टल में रहने वालों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है और कुछ को नौकरी मिल जाती है। लेकिन उनमें से कुछ ही बाहर निकल पाती हैं और ये हॉस्टल ही उनके नए घर बन जाते हैं।

क्षमता की संस्थापक भारती ताहिलियानी ने कहा, "वे कभी भी संस्थागत देखभाल से दूर नहीं होती हैं। वे आत्‍मनिर्भर नहीं हैं।"

ताहिलियानी ने कहा, "सोनिका आश्रयगृह से बाहर निकल पायी, आत्‍मनिर्भर होकर जी रही है और उसका अपने फ्लैट में रहने वाली साथी और सहकर्मियों पर भरोसा करना हमारे लिए जीत है और निश्चित रूप से उसके लिए भी।"

"टोकरी बनाना"

हाल ही के भारत सरकार के आंकड़ों में देश में तस्करी के मामलों में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि देखी गई है और यौन उत्पीड़न से पीडि़त युवतियों के लिये सरकार की नकद मुआवजा योजना है, लेकिन यौन उत्‍पीड़न से बचाई गई वयस्क महिलाओं के लिये ऐसी किसी भी सहायता का प्रावधान नहीं है।

भारत में यौनकर्म गैरकानूनी है और पुलिस द्वारा वेश्यालयों पर छापा मारने के दौरान अक्सर लड़कियों को वहां से "छुड़ाया" जाता है।

सामाजिक कार्यकर्ता और अभियान चलाने वाली ताहिलियानी ने कहा,  "हमने 2007  में बचाई लड़कियों के बारे में एक अध्ययन किया और पाया कि 10 प्रतिशत से भी कम लड़कियां दोबारा  समाज में शामिल हो पाती हैं। हम बचायी गयी अधिकतर लड़कियों का पता नहीं लगा पाये।"

तस्करी से बचायी महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्‍मनिर्भर बनाने में सहायता करने के लिये ताहिलियानी ने 2013 में क्षमता की स्थापना की थी, क्योंकि "उनको फिर से तस्करी से बचाने का यही एकमात्र तरीका था।"

क्षमता में तस्करी से बचाई गई महिलाओं के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल चलाने वाली प्रतिष्ठा काले का कहना है कि कुछ धर्मार्थ संस्‍थाओं में पुनर्वास कार्यक्रमों में परंपरागत कढ़ाई और टोकरी बनाना सिखाने के अलावा कैरियर परामर्श और पब्‍लिक स्‍पीकिंग के भी प्रावधान है।

काले ने कहा, "लड़कियां युवा हैं और अक्सर वे अपने कैरियर विकल्पों को लेकर भ्रमित रहती हैं, इसलिए हम उनका मार्गदर्शन करते हैं और उनकी रुचि के अनुरूप काम तलाशने में उनकी मदद करते हैं।"

सेव द चिल्‍ड्रन इंडि़या जैसी अन्‍य धर्मार्थ संस्‍थाएं भी इसी प्रकार के पुनर्वास मॉडल पर काम कर रही हैं।

सेव द चिल्ड्रन इंडिया की कार्यक्रम निदेशक ज्योति नाले ने कहा, "धर्मार्थ संस्‍थाओं और सरकार द्वारा चलाये जाने वाले आश्रयगृह और हॉस्टल हैं, जहां कम पैसा देकर कामकाजी लड़कियां रह सकती हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से वे स्वतंत्र रूप से रहना पसंद कर रही हैं।"

"काम के बेहतर अवसर उपलब्‍ध हैं। कुछ मामलों में बचाये गये लोगों की शिक्षा स्तर बेहतर है, जिससे उन्हें नौकरी मिलने में आसानी होती है। यह आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है।"

"सपनों का जीवन"

चौथी कक्षा तक पढ़ी सोनिका को एक आभूषण की दुकान पर अपनी पहली नौकरी में काफी मुश्किल आई थी, क्योंकि उसका मालिक चाहता था कि वह ग्राहकों से अंग्रेजी में बात करे।

क्षमता की एक स्वयंसेवक ने उसे एक परिधान कंपनी में नौकरी दिलाने में मदद की, जहां उसे  दुकानों में कपड़े पहुंचाने थे और उनसे पैसे लेकर प्रत्येक लेनदेन को अपनी नोटबुक में दर्ज करना था।

प्रतिदिन नौ घंटे काम करने पर वह एक महीने में 9,000 रुपये कमाती है और उसमें से वह 4,000 रुपये अपने फ्लैट का मासिक किराया अपनी एक साथी के साथ मिलकर देती है। उसके साथ रहने वाली महिला भी यौन तस्‍करी से बचाई गई है, जो एक सुपरमार्केट में सेल्‍स असिसटेंट के रूप में काम करती है और हर महीने 12,000 रुपये कमाती है।

यहां से एक मील दूर तस्करी से बचाई गई एक अन्य महिला नव्‍या भी इसी प्रकार एक कमरे के अपार्टमेंट में रहती है और वह मुंबई की ठसाठस भरी लोकल ट्रेनों में चार घंटे का सफर कर दक्षिण मुंबई में एक संपन्‍न हेयर सैलून में काम करने के लिए जाती है।

लेकिन मुंबई के कामकाजी जीवन का प्रतीक रोजाना थकन भरी लम्बी यात्राएं उनके लिये चिंता का विषय नहीं है। आत्मविश्‍वास में कमी और मकान मालिकों द्वारा उन्‍हें फ्लैट देने में हिचकिचाहट उनकी सबसे बड़ी समस्‍या है। शहर में कई अकेली महिलाओं को इस समस्या का सामना करना पड़ता है।

सोनिका ने कहा, "जब मैंने क्षमता में लोगों को बताया कि मैं अकेले रहना चाहती हूं, तब मुझे एहसास हुआ कि शायद मेरा सपना बहुत बड़ा था।" लेकिन उन्‍हें साधन संपन्‍न बनने की सीख के कारण उसने अपनी सहेली के पति से उसके लिये एक फ्लैट तलाशने को कहा और अंत में एक फ्लैट पा भी लिया।

उसने कहा, "मुझे अपना घर बहुत पसंद है। मैंने हमेशा ऐसा ही जीवन जीने का सपना देखा था।"        

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

BASKET WEAVING

Recent Indian government data has shown a year-on-year rise in trafficking cases in India, but while the government has a cash compensation scheme for youth victims of sexual assault, adult survivors get no such support.

Prostitution is illegal in India and girls are often "rescued" by police during raids on brothels.

"We did a study on rescued girls in 2007 and found less than 10 percent had reintegrated into the society. We couldn't trace most rescued girls," said Tahiliani, a social worker and campaigner.

Tahiliani founded Kshamata in 2013 to support trafficking survivors become financially independent as it was "the only way to protect them from being trafficked again".

Rehabilitation programmes at some charities have moved from traditional embroidery and basket weaving lessons to career counselling and public speaking sessions, said Pratishta Kale, who runs training modules for trafficking survivors at Kshamata.

"The girls are young and often confused about their career choices. So we guide them and help them find a job in line with their interests," Kale said.

Other charities such as Save the Children India also are working on similar rehabilitation models.

"There are shelters and hostels run by charities and also the government where working girls can stay at a subsidised rate but over the last few years, they prefer to stay independently," said Jyoti Nale, programme director for Save the Children India.

"There are better (work) opportunities. In some cases, the education level of survivors is better, helping them find a job. This is the best way forward."

Commuters are seen iside a train carriage in Mumbai, August 11, 2017. THOMSON REUTERS FOUNDATION/Roli Srivastava

'DREAM LIFE'

Sonika, who studied up to fourth grade, struggled in her first job at a jewellery store as her employer expected her to talk to customers in English.

A volunteer at Kshamata helped her find a job with a garment firm where she delivers clothes to shops and collects money from them and jots down each transaction in her notebook.

Her nine-hour schedule earns her 9,000 Indian rupees ($140) a month and she splits her flat's monthly rent of 4,000 rupees with her flatmate - also a sex trafficking survivor who works as a sales assistant at a supermarket and earns 12,000 rupees.

About a mile away, another trafficking survivor, Navya, stays in a similar one-room apartment and negotiates a four-hour daily commute in Mumbai's packed local trains to work at an upscale hair salon in South Mumbai.

But tiring commutes and long hours that are typical of working life in Mumbai are the least of their concerns. The girls battle a lack of confidence and reluctance of landlords to lease flats to them - a problem faced by many single women in the city.

"It was after I told people at Kshamata that I wanted to live on my own, I realised I had possibly dreamt too big," Sonika said. But taught to be resourceful, she roped in her friend's husband in her flat hunt and eventually found one.

"I like my house. This is the life I always dreamt of for myself," she said.

($1 = 64.1225 Indian rupees)

(Reporting by Roli Srivastava @Rolionaroll; Editing by Ros Russell. Please credit Thomson Reuters Foundation, the charitable arm of Thomson Reuters, that covers humanitarian news, women's rights, trafficking, property rights, climate change and resilience. Visit news.trust.org)

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