- अनुराधा नागराज
बिस्वनाथ, 24 अक्टूबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - जब बदाएक के पिता उसे घुमने ले गये थे तब उसका कद घुटने से कुछ ही ऊपर था। हरे-भरे चाय बागानों को पार कर वे एक बस में बैठकर "कहीं" पहुंच गये थे।
गंतव्य स्थल पर पहुंचते ही उसे एक "बढि़या घर" के दरवाजे पर छोड़ कर उसके पिता ने पीठ फेर ली और वे वापस चले गये।
उसके पिता ने उसे 500 रुपये में गुलामी करने के लिये बेच दिया था।
बदाएक असम के चाय बागान स्थित अपने घर से लगभग 50 किलोमीटर (30 मील) दूर पड़ोसी राज्य अरुणाचल प्रदेश में एक नौकरानी के रूप में काम करती हुई बड़ी हुई है।
2016 में बदाएक ने एक अन्य दासी के साथ मिलकर घर वापस लौटने की योजना बनाई थी। उसकी इस किशोरी साथी को भी बेचा गया था। बदाएक ने राज्य की सीमा को पार करने के लिए आमतौर पर बाल तस्करों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली गलियों से होते हुये आखिरकार अपनी मां और पुराने घर को खोज निकाला।
असम के बिस्वनाथ जिले में एक चाय बागान के मध्य स्थित न्यू पुरुबाड़ी गांव में बैठी बदाएक ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "मुझे लगता है कि अब मैं 16 या शायद 17 साल की हूं।"
वह यहां पैदा हुई थी, लेकिन उसे इस जगह के बारे में कुछ ज्यादा याद नहीं है।
"जब मैं बहुत छोटी थी तभी यहां से चली गई थी और अब मैं बड़ी होकर यहां लौटी हूं। मैं अपने परिवार, अपनी भाषा, घर सब कुछ भूल गई हूं। मैं धीरे-धीरे इनसे फिर से जुड़ रही हूं।"
ग्रामीणों का कहना है कि वह भाग्यशाली है कि उसे अपने घर का रास्ता मिल गया।
"आसानी से उपलब्ध"
कार्यकर्ताओं का कहना है कि असम के चाय बागानों से हजारों बच्चे लापता हैं, जहां गरीबी की जड़ें गहरी फैली हुई हैं।
बाल तस्करी पर जागरूकता अभियान चलाने वाली लाभ निरपेक्ष संस्था- जागृति समिति की मोनी दार्नल ने कहा, "एजेंट और कभी-कभी अरुणाचल प्रदेश के परिवार भी चाय बागानों में आते हैं और वहां से कोई भी बच्चा उठाकर ले जाते हैं।"
"वे यहां से तीन या चार साल के बच्चों को ले जाते हैं, ताकि वे उन्हें घर का काम सीखा सकें। यह एक स्वीकृत नियम बन गया है और यह बहुत ही आसान है।"
देश की 2011 की जनगणना के अनुसार विश्व के 5 से 14 साल के 16 करोड़ 80 लाख बाल मजदूरों में से 40 लाख से अधिक भारत में हैं। लेकिन अभियानकारों का कहना है कि गरीबी के कारण लाखों बच्चे खतरे में हैं।
इनमें से आधे से अधिक खेतों में मजदूरी करते हैं, चार में से एक विनिर्माण क्षेत्र में और अन्य घरों तथा होटलों में बर्तन धोने, सब्जियां काटने एवं साफ-सफाई का काम करते हैं।
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार हताश माता-पिता बच्चों को कुछ सौ रुपये में बेच देते हैं, लेकिन कभी-कभी लाभ के भूखे एजेंट उन्हें एक लाख से भी अधिक रुपये में बेचते हैं।
अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर में बच्चों के लिए एक हेल्पलाइन चलाने वाले जुमटुम मिंग ने कहा, "सोमवार को हमने एक पूर्व मंत्री के घर से एक बच्चे को बचाया था।"
"उनकी तरह अधिकतर नियोक्ता प्रभावशाली हैं और कुछ लोग तो सरकार में हैं। वे सभी बच्चों को काम पर रखते हैं क्योंकि उन्हें बच्चों को कोई वेतन नहीं देना पड़ता है। बच्चे कोई मांग नहीं करते हैं और इसलिये मालिक उन्हें अपनी निजी संपत्ति मानते हैं।"
जनवरी 2016 से जुलाई 2017 तक इटानगर चाइल्डलाइन द्वारा शहर में बाल मजदूरी की 91 शिकायतें दर्ज कराई गई और 26 बच्चों को वापस उनके घर भेजा गया।
अन्य बच्चों को अब पता ही नहीं है कि वे कहां से हैं।
अभियान चलाने वालों का कहना है कि वे सिर्फ "चाय बागानों के बच्चे" हैं और मालिक यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके माता-पिता के साथ उनका कोई संपर्क ना हो।
चाय मजदूरों के अधिकारों के लिये संघर्ष कर रही असम की धर्मार्थ संस्था-पझरा के स्टीफन एक्का ने कहा, "हालात और बिगड़ रहे हैं।"
विश्व का सबसे बड़ा असम चाय उद्योग वर्षों से संकट में है। गुलाम मजदूरों और शोषणकारी परिस्थितियों के आरोपों तथा श्रमिक विवादों के चलते कुछ बागानों को मजबूरन बंद करना पड़ा है।
असम के बाल अधिकार संरक्षण आयोग की प्रमुख सुनीता चांगककती ने कहा कि गुलामी का खतरा बढ़ रहा है।
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "कई बचपन खो रहे हैं। हम तस्करी और बाल मजदूरी के मामलों पर जागरूकता फैलाने और इन्हें रोकने के लिए अत्यंत गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। यह कठिन कार्य है।"
"पर्दा उठाना"
बाल गुलाम के रूप में बदाएक का आप बीती बयान करना असाधारण घटना है, क्योंकि बच्चों को बेचने के बाद उनके साथ क्या होता है इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है।
बदाएक ने कहा, "मुझे याद है शुरू में मुझे कोई काम नहीं करना होता था। मैं घर में सिर्फ खेलती रहती थी।"
"फिर मुझे लहसुन छीलना सिखाया गया था। थोड़े दिन बाद झाड़ू और पोछा लगाना बताया गया और फिर बर्तन तथा कपड़े धोना सिखाया गया था। यह सब धीरे धीरे सिखाया गया था, लेकिन जब मैं आठ साल की हुई, तब तक मैं यह सब काम कर सकती थी।"
वह दिन में 17 घंटे काम करती थी। उसे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी और ना ही उसकी कोई सहेली थी। जब बदाएक बड़ी हुई तो उसे बताया गया था कि उसका वेतन 100 रुपये महीना है।
"मालकिन ने कहा कि वे वेतन को बैंक में जमा करा रही है और जब मैं बीमार पड़ती या मुझे किसी चीज़ की जरूरत होने पर वे उस धन का उपयोग करते थे।"
नाम न छापने की शर्त पर अरुणाचल प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई नियोक्ताओं का मानना है कि भोजन और आश्रय प्रदान करना ही पर्याप्त है।
उन्होंने कहा, "गुलाम बच्चों की मांग है इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है। कई परिवार इसे गैर कानूनी नहीं मानते और हमें शायद ही कोई ऐसी शिकायत मिली हो जिसपर कार्रवाई कर सके।"
"मुंह पर तमाचा"
अपनी साथी नौकरानी से अचानक मिलने के बाद बदाएक ने वह सुराग ढूंढ़ने शुरू कर दिए जिनके जरिये वह वापस अपने घर जा सकती थी।
एक मोबाइल फोन मांगकर उसने एक नंबर और फिर दूसरे, तीसरे, कई नंबरों पर फोन किया और अंतत: उसने अपने एक चाचा को खोज निकाला।
वापस अपने घर लौटने को प्रतिबद्ध बदाएक ने अपने मालिक से मदद मांगी।
उन्होंने इनकार कर दिया और उसे कमरे में बंद कर दिया।
उसने कहा, "मालकिन ने मुझे बताया कि उन्होंने मुझे अपने परिवार के सदस्य की तरह रखा है, लेकिन जैसे मैं बड़ी हुई तो मुझे पता चला कि वह मेरा परिवार नहीं था।"
"मैंने मालकिन से कहा कि उनकी बेटी छुट्टियों में घर आती है, लेकिन मैं पिछले 10 साल से अपने घर नहीं गयी। आखिरकार वे मान गईं।"
पिछले साल बदाएक जब न्यू पुरुबाड़ी गांव में आई तो उसे केवल यह याद था कि गिरिजाघर कहां था।
उसने कहा, "मेरे चाचा मुझे लेकर आये थे। मेरी मां ने रोते हुए मुझे गले लगाया जबकि मेरे पिता एक कोने में खड़े थे।"
"मैंने उन्हें एक थप्पड़ मारा। वह कैसे मुझे वहां छोड़ सकते थे और फिर मुझे कभी देखने तक नहीं आये आये? मैं अनाथ नहीं थी, लेकिन मैं हमेशा अपने आप को अनाथ महसूस करती थी।"
अब अपने अंतिम काम के लिये बदाएक को अरुणाचल प्रदेश की उन गलियों में फिर जाना होगा। वह अपनी छोटी बहन की तलाशी अभियान पर है, जिसे भी उसी के समान एक नौकरानी के रूप में काम करने के लिए उसके पिता ने बेच दिया था।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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