- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 6 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - 13 साल की एक लड़की को चार वर्ष की दासता से बचाने के बाद पुलिस अब यह जांच करेगी कि घरेलू नौकरों की मांग बढ़ने से क्या दक्षिणी भारत के संभ्रांत घरों में बाल मजदूरों को छुपाकर काम पर रखा जा रहा है।
पुलिस ने कार्यकर्ताओं द्वारा सचेत करने पर सोमवार की शाम को इस लड़की को बचाया और देश के बाल मजदूरी निषेध कानून के तहत उसके मालिक- एक व्यापारी और उसकी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज की।
शहर के साइबराबाद इलाके, जहां कई टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं, के पुलिस निरीक्षक हरिशचंद्र रेड्डी ने कहा, "अधिकतर गरीब बच्चे घरेलू नौकरों के रूप में काम करते हैं और उनके माता-पिता उन्हें रोजगार, भोजन और आश्रय की आस में यहां भेजते हैं।"
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "अब हम अपने अधिकारियों को विला, अपार्टमेंट और सोसायटी आवासों में यह पता लगाने के लिये भेजेंगे कि वहां बच्चों से काम करवाया जा रहा है या नहीं। हमें इस पर ध्यान केंद्रित करना होगा।"
पुलिस ने कहा कि वे अभी भी उस लड़की के माता-पिता का पता लगा रहे हैं। कार्यकर्ताओं के अनुसार चार साल तक उस लड़की को फंसा कर रखने के दौरान उसका शारीरिक उत्पीड़न किया गया और उसे अपने घर से लगभग 200 किलोमीटर (124 मील) की दूरी पर स्थित उसके मालिक के आवासीय परिसर से बाहर जाने की मनाही थी।
पुलिस को सचेत करने वाले बाल अधिकार समूह बलाला हक्कूला संघम (बीएचएस) के अध्यक्ष अच्युता राव ने कहा, "उस लड़की के माता-पिता ने उसे व्यवसायी के घर में निशुल्क काम करने के लिए भेजा था, क्योंकि व्यवसायी ने उस लड़की की शादी के समय आर्थिक मदद करने का वादा किया था।"
इस धर्मार्थ संस्था ने इस वर्ष 300 से अधिक बच्चों को बचाने में मदद की, जिनमें से अधिकतर घरेलू नौकर थे।
उन्होंने कहा, "घरेलू नौकरों के रूप में काम करने वाले बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण का खतरा अधिक होता है, क्योंकि आमतौर पर वे लोगों की नजरों से ओझल रहते हैं।"
भारत की बढ़ती समृद्धि और कामकाजी महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी से घरेलू नौकरों की मांग बढ़ गई है, जो बड़े पैमाने पर अनियमित क्षेत्र है।
इस वर्ष के शुरुआत में दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु में नौकरानी का काम करने वाली 12 साल की लड़की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पायी गई थी।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का अनुमान है कि भारत में पांच से 17 वर्ष के लगभग 60 लाख बाल श्रमिक हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि तस्कर अक्सर गरीब गांवों को अपना निशाना बनाते हैं और वंचित परिवारों को उनकी बेटियों को काम करने के लिये बाहर भेजने को राजी करते हैं।
राव ने कहा, "लोगों को बाल मजदूरी निषेध कानून का भय नहीं है। घरेलू नौकरों के तौर पर बच्चों से काम करवाना आम बात है।"
(रिपोर्टिंग-रोली श्रीवास्तव, संपादन-केटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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