- अनुराधा नागराज
चेन्नई, 13 दिसंबर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - दक्षिण भारत में न्यूनतम आजीविका वेतन और बेहतर लाभ के लिए प्रदर्शन कर रही सैकड़ों नौकरानियों का साथ देने के लिये मुथुकनी मुरुगेसन ने बीमारी का बहाना बना कर बुधवार को एक दिन की छुट्टी ली।
श्रमिक अधिकार समूहों द्वारा आयोजित सम्मेलन में साथी नौकरानियों द्वारा शोषण, कम मजदूरी और तानों के अनुभव सुनाते समय उनकी हौंसला अफ़जाई करते हुये 47 वर्षीय मुरुगेसन ने कहा कि पिछले एक दशक में उसके वेतन में मात्र 3,000 रुपये की बढ़ोतरी हुई है।
तमिलनाडु की बैठक में शामिल होने के लिये अपने मालिक से उल्टी होने का बहाना बनाने वाली मुरुगेसन ने कहा, "यह हास्यास्पद है।"
"मेरा ज्यादा छुट्टी लेना उन्हें पसंद नहीं है, लेकिन बड़ी समस्या यह है कि हम में से ज्यादातर को अपना कर्ज चुकाना है। हमरी कमाई पर्याप्त नहीं है, इसलिये शादी और स्कूली शिक्षा के लिये हम ऋण लेने के लिए मजबूर थे।"
भारत के तेजी से हो रहे शहरीकरण और काम करने के लिए घर से बाहर जाने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ने से घरेलू नौकरों की मांग बढ़ गई है। लेकिन नौकरानियों के लिये काम करने का माहौल और वेतन अभी भी खस्ताहाल है, इसलिये साप्ताहिक अवकाश, मातृत्व लाभ और पेंशन के साथ ही मंहगाई के अनुरूप वेतन की नयी मांग उठी है।
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में घरेलू काम की बदलती प्रकृति पर शोध कर रही दीपा एबेनेजेर ने कहा, "हमारे सामाजिक परिवेश में घरेलू काम को वास्तविक काम के रूप में नहीं देखा जाता है।"
"महिलाओं से यह काम करने की अपेक्षा की जाती है और अक्सर इसे घर-परिवार के स्नेह में किया गया कार्य बताया जाता है। इसलिए इस काम का कोई मूल्य नहीं होता और इसका सीधा प्रभाव नौकरानियों के वेतन पर पड़ता है।"
कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत में लगभग पांच करोड़ घरेलू नौकर हैं, जिनमें से अधिकतर महिलाएं हैं और घरेलू नौकरों के लिये राष्ट्रीय नीति जैसी कानूनी सुरक्षा के अभाव में उनका लगातार शोषण होता है। राष्ट्रीय नीति के लिये अभी मंत्री मंडल की मंजूरी मिलना है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि कम वेतन और साल में मात्र एक सौ रुपये की वेतन वृद्धि के कारण महिलाएं ऋण लेने को मजबूर होती हैं और उस कर्ज को चुकाने के लिये नौकरी छोड़ना असंभव होता है।
नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मूवमेंट की जोसेफिन वलारमाथी ने कहा, "हमारे ज्यादातर सदस्य तेजी से बूढ़े हो रहे हैं, लेकिन कर्ज की वजह से वे अभी भी काम कर रहे हैं।"
"हम पेंशन वृद्धि की मांग कर रहे हैं, जो आज मात्र एक हजार रुपये है। महिलाएं पांच लाख रुपये तक का कर्ज चुका रही हैं।"
हाल ही में भारत सरकार ने घरेलू नौकरों को कर्मचारियों के रूप में पंजीकृत करने, न्यूनतम वेतन की गारंटी, शोषण से सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ, पेंशन देने और नये कौशल सीखने के अवसर देने के लिए एक नीति तैयार की है।
प्रस्तावित नीति कब लागू होगी इसकी अभी कोई समय सीमा नहीं है।
(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- लिंडसे ग्रीफिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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