- रोली श्रीवास्तव
नूंह, 22 जनवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – 15 साल की उम्र में रहीमा ने म्यांमार में रखाइन प्रांत का अपना घर छोड़ कर दो अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार की थी और भारत में लगभग अपने पिता की उम्र के एक व्यक्ति से शादी करने के लिए उसे बेचा गया था।
केवल अपना पहला नाम बताते हुए रहीमा ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "उस व्यक्ति ने एजेंट से पूछा था कि क्या मैं पहले से शादीशुदा हूं। मैं कुंवारी थी इसलिये उसने मुझे 20,000 रुपये में खरीदा था। विवाहित महिलाओं को 15,000 रुपये में खरीदा जाता है।"
म्यांमार से पलायन कर उत्तरी भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की बस्ती में रह रही रहीमा ने कहा, "उसकी उम्र मेरे पिताजी से कुछ ही कम थी। वह मुझे बिजली के तारों से मार मारता था, मुझे बाहर नहीं निकलने देता था और कहता था कि उसने मुझे खरीदा है।"
रहीमा के पति ने पांच साल तक उसका उत्पीड़न करने के बाद पिछले साल उसे छोड़ दिया था। उस समय वह पांच महीने की गर्भवती थी और यह उसका दूसरा बच्चा था।
अगस्त के अंत में रोहिंग्या उग्रवादियों द्वारा सुरक्षा चौकियों पर हमला किये जाने पर म्यांमार सेना की जवाबी कार्रवाई के बाद से म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत से भागकर लगभग छह लाख 60 हजार रोहिंग्याओं के बांग्लादेश पंहुचने से शरणार्थी संकट बढ़ा है।
वे भी पहले से ही बांग्लादेश में रह रहे लाखों रोहिंग्या मुस्लिमानों में शामिल हो गए हैं, और बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार में भेदभाव और उत्पीड़न से बचने के लिये रोहिंग्या समुदाय दक्षिण एशिया में भी जगह जगह फैल गया है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) का कहना है कि नए शरणार्थियों- अधिकतर महिलाओं और बच्चों के आने से मानव तस्करी का खतरा बढ़ा हैं, क्योंकि अधिकारी और कार्यकर्ता भारी संख्या में आने वाले शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे हैं।
रोहिंग्याओं के म्यांमार से पलायन या उन्हें बचाये जाने के बाद से भारत में भी बंधुआ मजदूरी में फंसे पुरुषों और महिलाओं तथा शादी के लिए तस्करी के मामले सामने आने शुरू हो गए हैं और वे नूंह जैसी रोहिंग्या बस्तियों में आसरा लिये हुए हैं।
रोहिंग्याओं का भारत आने का सिलसिला कई साल पहले से शुरू हो गया था और अब देश में करीबन 40,000 रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं।
रहीमा 2012 में म्यांमार के अपने "हरे भरे धान के खेतों" को छोड़कर बांग्लादेश में एक शरणार्थी शिविर में रह रहे अपने पिता के पास गई थी।
अब 22 साल की हो चुकी रहीमा ने कहा, "घर में खाने के लाले पड़े थे इसलिये मेरी मां ने सोचा कि अगर मैं अपने पिता के पास चली जाऊ तो मेरे लिये बेहतर होगा। लेकिन शिविर में मेरी चाची ने मुझे एक एजेंट को बेच दिया, जिसने उन्हें बताया कि वह मेरी शादी भारत में कर देगा।"
हरियाणा के नूंह में अपने घर से धारा प्रवाह हिंदी भाषा में उसने कहा, "मैं शादी की बात सुनकर सुन्न हो गई थी। मैं एजेंट के साथ कोलकाता पहुंच गई। मुझे कोई भी भारतीय भाषा नहीं आती थी, लेकिन मैंने सोचा कि मैं यहां सुरक्षित रहूंगी।"
सुरक्षा सावधानी
बांग्लादेश के अव्यवस्थित शरणार्थी शिविर रहीमा को खरीद कर बेचने वाले एजेंट जैसे लोगों के लिये अनुकूल स्थान हैं। लड़कियों को शादी का झांसा देना शिविरों में ताक लगाए तस्करों का खास तरीका है।
सहायता और विकास संगठन बीआरएसी की प्रवक्ता इफ्फत नवाज ने कहा, "युवा लड़कियों के लिये शादी बहुत बड़ी बात होती है और माता-पिता भी इसके लिए राजी हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें इसमें अपनी बेटी की बेहतर आर्थिक स्थिरता नजर आती है।"
दिसंबर से बीआरएसी के स्वयंसेवकों ने कॉक्स बाजार में शरणार्थी बस्तियों में युवा लड़कियों को अजनबियों के बीच सुरक्षित रहने के बारे में जानकारी और सहायता देना शुरू किया। नवाज ने कहा, "इन लड़कियों में से कई इतने सारे पुरुषों के बीच कभी नहीं रही थीं। अब वे कई नए लोगों के संपर्क में आती हैं।"
लड़कियों को 12 सत्रों में सिखाया जाता है कि उन्हें अनुचित स्पर्श, धन या भोजन और आश्रय की पेशकश जैसी बातों पर कैसे सर्तकता बरतनी चाहिये। उन्हें सामाजिक कार्यकर्ताओं और तस्करों के बीच के अंतर के बारे में भी समझाया जाता है।
नवाज ने कहा, "लड़कियों की लापता होने की कई घटनाएं घटी हैं। उनकी भारत और नेपाल में तस्करी की जा रही है। इस खतरे को कम करने के लिए हमने यह कार्यक्रम शुरू किया है।"
पहचान
सीमा पार भारत में रहीमा जैसे मामले धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं।
भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में कार्यरत तस्करी रोधी धर्मार्थ संस्था- इम्पल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक हसीना खर्भीह ने कहा कि उनकी संस्था भारत में रह रही 15 रोहिंग्या लड़कियों को उनके परिजनों से दोबारा मिलाने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इन लड़कियों को यौन दासता या शादी के लिए छह से आठ साल पहले भारत में बेच दिया गया था। वे अब सरकार द्वारा चलाए जा रहे आश्रय स्थलों में रह रही हैं।"
"हमें म्यांमार में उनके परिजनों का पता नहीं चल पाया हैं इसलिये हम अभी तक इनमें से किसी को भी वापस उनके घर नहीं भेज पाए हैं।"
खर्भीह को पिछले छह महीनों में बांग्लादेशी शरणार्थी शिविरों में भी भारत में तस्करी की गई लड़कियों के परिजनों की पांच शिकायतें मिली हैं।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत में बेची गई लड़कियों के कई मामले हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती उन्हें पहचानने की हैं।
मानव तस्करी रोधी गैर सरकारी संगठन- जस्टिस एंड केयर के एड्रीयन फिलिप्स ने कहा, "भाषा के कारण उन्हें रोहिंग्या या बांग्लादेशी के रूप में पहचानना मुश्किल है, क्योंकि दोनों की भाषा मिलती-जुलती है।"
भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर में लगभग 17 हजार रोहिंग्या शरणार्थी और शरण लेने वाले पंजीकृत हैं। रहीमा जैसे कई लोग पहचान के साक्ष्य के रूप में शरणार्थी कार्ड के लिए अपना आवेदन करने में यूएनएचसीआर के पत्र का उपयोग करते हैं।
हालांकि यूएनएचसीआर के अधिकारियों का कहना है कि न तो उन्होंने और न ही उनके सहयोगी संगठनों ने रहीमा जैसा मामला दर्ज किया है।
ई-मेल के जरिये यूएनएचसीआर की ईप्शिता सेनगुप्ता ने कहा, "यूएनएचसीआर में उपलब्ध सूचना के आधार पर भारत में रोहिंग्या शरणार्थी समुदाय में शादी के लिए तस्करी के प्रचलन का कोई रिकॉर्ड नहीं है।"
रहीमा अब नूंह की झुग्गी बस्ती में प्लास्टिक की शीट, टिन और गत्ते की बनी झोपड़ी में अपने दो बच्चों के साथ रहती है। वह एक छोटी सी जगह दिखाती है जो उसने मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाने के लिए बनाई है।
वह अभी भी म्यांमार में रह रही अपनी मां के संपर्क में है।
उसने कहा, "मैं घरेलू नौकरानी के तौर पर काम कर 1,200 रुपये कमाती हूं। लेकिन अगर मैं वापस अपनी मां के पास चली जाऊ तो वहां मेरा पेट कौन भरेगा?"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- रोस रसल; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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