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भारतीय कताई कारखाने में आत्महत्या के कारण बाल मजदूरी की जांच शुरू

by Anuradha Nagaraj | @anuranagaraj | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 8 February 2018 15:18 GMT

ARCHIVE PHOTO: An employee works at the production line of a textile mill in India, September 10, 2013. REUTERS/Amit Dave

Image Caption and Rights Information

-    अनुराधा नागराज

    चेन्नई, 8 फरवरी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – दक्षिण भारत के एक कपड़ा कारखाने में 16 घंटे की पारी में काम करने के बाद 14 वर्षीय लड़की के आत्महत्या करने के कारणों की जांच की जा रही है। एक मजदूर संघ और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस उद्योग में काम करने के माहौल की खराब स्थितिओं और बाल मजदूरी करवाये जाने के बारे में चिंता जताई है।

     महिला यूनियन- तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन (टीटीसीयू) का कहना है कि धर्शिनी बालासुब्रमणि ने मंगलवार को अपने सामूहिक शयन गृह में फांसी लगा ली थी। चार महीने पहले ही पास के एक कताई कारखाने में लगभग 2,500 रुपये के बोनस के लिये काम करते हुए एक अन्‍य किशोरी की मौत हो गई थी।

    अधिकारी मौत के कारणों की जांच कर रहे हैं।

    टीटीसीयू की अध्यक्ष थिव्‍यराखिनी सेसुराज ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "14 साल के बच्‍चे के लिए यह काम बहुत अधिक था।"

     बालासुब्रमणि तमिलनाडु में कोलकाता की डॉलर इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्वामित्व वाले कारखाने में काम करती थी। इस राज्‍य के लगभग 1,500 कताई कारखानों में करीबन चार लाख लोग कपास से सूत, कपड़ा और परिधान बनाने का काम करते हैं।

     भारतीय कानून में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों से मजदूरी करवाना प्रतिबंधित है। इसके अनुसार 15 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों से गैर-खतरनाक उद्योगों में प्रतिदिन सीमित घंटों के लिए काम करवाया जा सकता है और इस श्रेणी में कताई कारखाने आते हैं।

     डॉलर इंडस्ट्रीज के प्रवक्ता गोपालकृष्णन सारंगपाणी ने कहा कि कारखाने में अतिरिक्त पारी में काम करना वैकल्पिक था और कारखाने में दो महीने से काम कर रही बालासुब्रमणि को ओवरटाइम करने के लिए मजबूर नहीं किया गया था।

     सारंगपाणी ने कहा, "हमारे कारखानों में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं होता है।" उन्होंने कहा कि कंपनी की जानकारी में नहीं था कि उस लड़की की उम्र मात्र 14 वर्ष थी।

    "लड़की द्वारा उपलब्‍ध कराए गए दस्तावेजों के अनुसार उसका जन्‍म सन् 2000 में हुआ था और हमने उसी आधार पर उसे काम पर रखा था। हम अपने कर्मियों के साथ अपने बच्चों के समान व्‍यवहार करते हैं। हम पुलिस जांच में सहयोग कर रहे हैं।"

     अपनी वेबसाइट पर डॉलर इंडस्ट्रीज ने स्‍वयं को देश की अग्रणी निटवियर कंपनियों में से एक बताया है। इसमें कहा गया है कि उनकी कंपनी में लगभग 600 लोग काम करते हैं और वे अपने परिधान मध्य पूर्व देशों और नेपाल को निर्यात करते हैं।

   

     भारत दुनिया के सबसे बड़े कपड़ा और परिधान निर्माताओं में से एक है, जो स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों की आपूर्ति करता है।

    कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस उद्योग में मुख्‍य रूप से गरीब, अनपढ़ और निम्न जाति समुदायों की युवा महिलाएं काम करती हैं। वे दिन में 12 घंटे तक काम करती हैं और अक्सर उन्‍हें धमकी दी जाती है और उन पर अश्‍लील फब्तियां कसी जाती हैं तथा उनका उत्पीड़न होता है।

      डिंडीगुल जिले के प्रशासनिक प्रमुख टी जी विनय ने कहा कि अगर बालासुब्रमणि 14 वर्ष की थी तो यह "गंभीर चिंता का विषय होगा।" उन्होंने कहा कि मामले की जांच हो रही है। डॉलर इंडस्ट्रीज का कारखाना डिंडीगुल जिले में स्थित है।

       उन्होंने कहा, "हमें अपनी जांच रिपोर्ट का इंतजार है। यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना होगा कि लड़कियां स्कूल जाना ना छोड़ें और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कारखानों का बार बार निरीक्षण किया जाता है।"

      एक स्थानीय मानवाधिकार समूह- सिरीन सेकुलर सोशल सर्विस सोसाइटी ने कहा है कि उन्होंने पिछले चार महीने में तमिलनाडु के कारखानों में कम से कम 10 कर्मियों की मौत के प्रमाण इकट्ठा किये हैं।

      डिंडीगुल की धर्मार्थ संस्‍था के निदेशक एस जेम्स विक्टर ने कहा, "कर्मियों की स्थिति में सुधार करने के बजाय, कारखाने मौतों के लिये मुआवजे में एक बार कुछ धन देकर मृतक के परिजनों की चुप्पी खरीद रहे हैं।"

(रिपोर्टिंग- अनुराधा नागराज, संपादन- रॉबर्ट कारमाइकल और केटी मिगिरो; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

 

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