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भारत सरकार की बंधुआ मजदूरी पर कार्रवाई, लेकिन मुक्त कराये गये मजदूरों को मुआवजे का इंतजार

by Roli Srivastava | @Rolionaroll | Thomson Reuters Foundation
Thursday, 10 May 2018 12:21 GMT

ARCHIVE PHOTO: A labourer digs through a heap of scrap leather to be burnt in an oven for making fertilizer at a roadside factory in Kolkata December 3, 2013. REUTERS/Rupak De Chowdhuri

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-    रोली श्रीवास्‍तव

मुंबई, 10 मई (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – अधिकारियों ने कहा कि बंधुआ मजदूरी की समस्‍या से निपटने के लिए 2016 में नीतियों की शुरूआत के बाद से भारत सरकार ने बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराये गये किसी भी व्‍यक्ति को मुआवजे की राशि का पूरा भुगतान नहीं किया है, जिसमें बचाए गए कर्मियों के लिये तीन लाख रुपये तक का अनुदान शामिल है।

बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराते ही कर्मियों को 20,000 रुपये दिए जाते हैं, लेकिन मुआवजे की शेष राशि का भुगतान अपराधियों को दोषी ठहराये जाने के बाद ही किया जाता है।

उप मुख्य श्रम आयुक्त ओंकार शर्मा ने कहा कि 1976 में देश में बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध के बाद कुछ ही मामलों में अपराध सिद्ध हो पाये हैं। 

उन्होंने जिला अधिकारियों से मुकदमे शुरू करने का आग्रह किया।

शर्मा ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "इस समस्‍या का समाधान अपराध सिद्ध होना ही है।"

भारत सरकार ने पिछले साल 2030 तक बंधुआ मजदूरी में फंसे एक करोड़ 80 लाख से अधिक लोगों को बचाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की थी। कार्यकर्ताओं का कहना है कि योजना दूरगामी है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी खामी अपराध सिद्ध होने तक मुआवजा न देना है।

राष्ट्रीय बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अभियान समिति के संयोजक निर्मल गोराना ने कहा, "अदालत के मुकदमे वर्षों चल सकते हैं। अगर 15 साल बाद फैसला आता है तो आप मुआवजा किसे देंगे?"

माखनलाल अहरवाल मुआवजे का इंतजार कर रहे लोगों में से है, जिसे नई दिल्ली में उसे गुलामी करने के लिये बेचने वाले व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने के बाद ही मुआवजा मिल पायेगा।

वह राजधानी में ऐसे स्‍थान के कोने में तीन दिन से खड़ा था, जहां से ठेकेदार श्रमिकों को मजदूरी करवाने के लिये ले जाते हैं। वहीं एक व्‍यक्ति ने उसे अच्छी मजदूरी देने की पेशकश की थी।

वहां से अहरवाल को एक निर्माण स्थल पर ले जाया गया। बचाये जाने से पहले तक उसे वहां  कैद करके रखा गया था और चार महीने तक बगैर मजदूरी के उससे जबरन काम करवाया जाता था। 

आखिरकार तीन साल बाद उसे अपना मुक्ति प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ। यह एक सरकारी दस्तावेज है, जिसके जरिये वह एक लाख रुपये, नौकरी और आवास पाने का पात्र होगा।

लेकिन अभी तक इनमें से कुछ भी उसे प्राप्‍त नहीं हुआ है।

अहरवाल ने फोन पर कहा, "कुछ सप्‍ताह पहले कुछ अधिकारी आए और उन्‍होंने मेरी तस्वीर ली। मुझे उम्मीद है कि वह मुआवजा देने के लिए होगी।"

धन की कमी

सरकार के अनुसार भारत में लगभग एक करोड़ 80 लाख लोग अवैतनिक कर्मी हैं या ऋण बंधन में फंसे हुए हैं।

2016 तक मुक्त कराये गये बंधुआ मजदूरों को कुल 20,000 रुपये की पुनर्वास राशि दी जाती थी, लेकिन अब पूरे मुआवजे का भुगतान होने तक यह राशि अंतरिम सहायता के रूप में दी जाती है।

लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2016 के संशोधन में स्वीकार्य मुआवजे में वृद्धि किये जाने के बाद से यह अंतरिम राशि मिलना भी मुश्किल हो गया है।

लाभ निरपेक्ष संस्‍था- नेशनल आदिवासी सॉलिडेरिटी काउंसिल के कंदासामी कृष्णन ने कहा कि बंधुआ मजदूरी के मामलों में अधिकारी मुआवजे की प्रक्रिया जल्‍दी नहीं करते हैं, क्योंकि उन्‍हें लगता है कि मुआवजा राशि बढ़ने से लोग फर्जी दावे भी करते हैं।

श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो वित्त वर्ष में नयी योजना के तहत लगभग 9,000 दावों में से अंतरिम राहत के केवल 250 दावों को निपटाया गया।

उप मुख्य श्रम आयुक्त शर्मा ने कहा कि पूर्ण मुआवजे का वितरण बड़ी चुनौती साबित हुई है, लेकिन सरकार जिलाधिशों को इस प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास कर रही है।

जिलाधीश स्वास्थ्य सेवाएं और चुनावों जैसे कार्यक्रमों को देखते हैं। उन्‍हें बंधुआ मजदूरी  के मामलों की सुनवाई करने और त्वरित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए भी अधिकृत किया गया है।

शर्मा ने कहा कि श्रम मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जिलाधिशों के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में लगभग 20 कार्यशालाएं आयोजित की हैं।

उन्होंने कहा, "हम दबाव बना रहे हैं और (बंधुआ मजदूरों के) नियोक्ताओं को दंडित करने के लिए जिलाधिशों को भी सजग कर रहे हैं।"

इस बीच, अहरवाल जैसे लोग उन्‍हें गुलाम बनाने वाले लोगों के खिलाफ मुकदमे की प्रतीक्षा में  हैं। अहरवाल ने कहा कि उसे आशा है कि एक दिन उसे उसका मुआवजा मिलेगा।

उसने कहा “इस शुक्रवार को मेरी बेटी की शादी थी और मुआवजा राशि से मुझे मदद मिल जाती।

(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्‍तव, संपादन- जेरेड फेरी; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)

 

 

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