- रोली श्रीवास्तव
मुंबई, 13 अगस्त (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) - रघुनाथ बर्तडे की नजरों के सामने उसका भाई रेत खनन करने वाली नौका के लंगर में पांव फंसने के कारण नौका से बाहर गिरकर मुंबई के पास अंधेरी संकरी खाड़ी में डूब गया। उसका भाई हाथ फैलाकर डूब रहा था और वह असहाय दृष्टि से उसे देख रहा था।
कुछ समय पहले तक रघुनाथ और बब्बन बर्तडे खाड़ी की तली से हाथ से रेत निकाल रहे थे। देश के फलते–फूलते निर्माण उद्योग के लिए आवश्यक यह कारोबार घातक है और आधिकारिक कार्रवाई के बावजूद भी जारी है।
बर्तडे ने कहा, "हमें कुछ ही मिनट में उसका शव मिल गया था।" बर्तडे ने कहा कि 13 साल पहले रेत खनन का काम शुरू करने से लेकर अब तक उसने कई लोगों को डूबते देखा है।
बरसात की दोपहर में मुंबई के निकट पालघर जिले के भरतपाड़ा गांव में अपनी झोपड़ी के बाहर खड़े उसने कहा, "आमतौर पर खनन कर्मी पानी में बह जाते हैं और कुछ दिनों बाद उनके शव सतह पर आते हैं।" उसके भाई के बच्चे भी उसी के आस-पास घूम रहे थे।
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की पड़ताल के एक साल बाद जून में बब्बन की मौत हुई थी। पड़ताल मे उजागर हुआ था कि उल्हास नदी की दो मुख्य वितरिकाओं में से एक वसाई खाड़ी में अवैध रूप से रेत का खनन करते हुए श्रमिक डूब रहे थे। पड़ताल में खुलासा हुआ कि ज्यादातर देश के गरीब इलाकों के लगभग 75,000 पुरुष घुप्प अंधेरे पानी में 40 फीट (12 मीटर) नीचे तक डुबकी लगाकर दिन में 12-12 घंटे लोहे की बाल्टियों में रेत भरने का काम कर अपनी जिंदगी और स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे थे। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने खाड़ी में अवैध खनन समाप्त करने, नियमों को कड़ाई से लागू करने और वैकल्पिक रोजगार प्रदान करने का वादा किया था। लगभग एक साल बाद खाड़ी में रेत खनन नौकाएं तो कम नजर आती हैं, लेकिन विभिन्न स्तरों के सरकारी अधिकारियों द्वारा जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालने के कारण अब तक रोजगार योजना कार्यान्वित नहीं हो पायी है। महाराष्ट्र राजस्व विभाग के उप आयुक्त सिद्धाराम सालीमथ का कहना है कि पिछले साल उनके द्वारा रेत खनन कर्मियों को वैकल्पिक रोजगार प्रदान करने के लिए जारी किए गए आदेश को लागू करने की जिम्मेदारी जिला प्रमुखों की थी। लेकिन ठाणे जिले के डिप्टी कलेक्टर अनिल पवार का कहना है कि केवल राज्य सरकार के पास पूर्व रेत खनन कर्मियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के संसाधन हैं। वसई की खाड़ी ठाणे में पड़ती है। उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "हमने रेत बंदरगाहों पर छापे मारे, रेत जब्त की है, लेकिन कर्मियों का पुनर्वास एक नीतिगत निर्णय है, जिस पर फैसला राज्य सरकार को लेना है।"भिवंडी क्षेत्र से सांसद कपिल पाटिल ने कहा कि उन्होंने चार महीने पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखा था, जिसमे इस मुद्दे पर चर्चा के लिए बैठक करने की मांग की थी। वसई खाड़ी भिवंडी से होकर बहती है।
पाटिल ने कहा कि उन्हें लगा था कि फडणवीस वैकल्पिक रोजगार प्रदान करने की योजना के को लेकर "सकारात्मक" होंगे, लेकिन अभी तक बैठक की तारीख निर्धारित नहीं हुई है।
मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं होने के कारण नाम न छापने की शर्त पर मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि "श्रमिकों के कल्याण पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है।"
लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता नंदकुमार पवार का कहना है कि चूंकि अधिकांश श्रमिक अवैध खनन करते थे, इसलिए ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि उन्होंने वहां काम किया था। जिसके कारण हो सकता है कि सरकार द्वारा रोजगार देने की शुरूआत होने के बाद भी उन्हें पुनर्वास सूची में शामिल नहीं किया जाये।
'जोखिम के काबिल'
हाल में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा रेत खनन के प्रमुख स्थानों का दौरा करने पर पाया गया कि कार्रवाई के बाद खनन उद्योग का काम काफी कम हुआ है, लेकिन अभी भी गरीबी के कारण कुछ लोग गहरी खाड़ी में जाने का जोखिम उठाते हैं।
आठ साल पहले खनन कर्मी के तौर पर काम करने के लिए उत्तर प्रदेश से यहां आये हरनाम राज ने कहा "पहले अगर 100 नौकाएं थीं, तो अब 25 रह गयी हैं।"
राज वसई खाड़ी में बसे कल्हर गांव के निर्वाचित नेता मुरारी बाबू की नाव पर काम करता है। बाबू का कहना है कि उनकी योजना अपना कारोबार जारी रखने की है।
बाबू ने कहा, "सरकार का कहना है कि श्रमिक खाड़ी में अधिक गहराई में काम नहीं कर सकते हैं, लेकिन खनन कर्मी लंबे समय से यह काम कर रहे हैं और वे यह जारी रख सकते हैं।"
राज ने कहा कि उन्हें इतना पैसा दिया जाता है कि वे जोखिम उठाने को तैयार हैं।
जब श्रमिक नौकाओं से खाड़ी की तरफ रेत का ढेर लगा रहे थे तब उसने कहा, "मेरे कान और नाक से खून बहता रहता है, लेकिन मुझे इससे अधिक काम कहां मिलेगा? क्या होगा अगर मैं इतना पैसा नहीं कमा पाया?"
पूरी नौका रेत और बजरी से भरने पर डुबकी लगाने वाले एक दिन में लगभग 1,200 रुपये कमा लेते हैं, जो देश में औसत दैनिक मजदूरी लगभग 270 रुपये से काफी अधिक है।
मुम्बई के नजदीक पालघर जिले के प्रमुख प्रशांत नर्नावरे ने कहा कि मजदूरी में इतना अंतर होने के कारण रेत खनन कर्मियों को सरकार समर्थित कार्यक्रमों के तहत काम करने के लिए राजी करना मुश्किल कार्य है।
उन्होंने कहा, "हम उनके लिए प्रायोजित स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा और आजीविका के साधन उपलब्ध कराना चाहते हैं।"
लेकिन हरे भरे खेतों से घिरे पालघर के गांव दादाडे कटकरी पाड़ा के निवासियों का कहना है कि रोजगार योजना तैयार करने के लिए पिछले साल सरकारी अधिकारियों द्वारा कराए गए जनसंख्या सर्वेक्षण के बाद से अब तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।
बाबू कान्हा गवारे ने कहा कि उसने सरकार प्रायोजित सड़क निर्माण में काम किया था, जिसके लिए उसे 100 या 200 रुपये की दिहाड़ी दी गई थी, लेकिन वह काम केवल चार या पांच दिन ही चला।
उसने कहा "यहां कोई रोजगार नहीं हैं।"
निवासियों ने कहा कि गांव में रहने वाले 30 परिवारों में से लगभग 20 परिवार अभी भी यहां से लगभग 90 किलो मीटर दूर स्थित वसई खाड़ी में रेत खनन के काम पर निर्भर हैं।
'बड़ा व्यवसाय'
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार वैश्विक स्तर पर रेत की वार्षिक खपत 40 अरब टन है और नदियों से अत्यधिक तलछट निकालने के कारण दुनिया भर में रेत की उपलब्धता काफी कम हो रही है।
अदालत में रेत खनन से तटीय रेखाओं, समुद्री जीवन और रेत भंडार को होने वाले खतरों को उजागर करती अनगिनत याचिकाओं के कारण देश के अधिकांश हिस्सों में रेत खनन को गैर कानूनी घोषित किया गया है।
सरकारी कार्रवाई के बाद खनन के क्षेत्र में आपराधिक गिरोहों का वर्चस्व होने से रेत इतनी मूल्यवान हो गई है कि इसे "भारत का स्वर्ण" कहा जाता है।
नई दिल्ली स्थित पर्यावरण समूह सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट का अनुमान है कि गैरकानूनी खनन से व्यवसायियों, बिल्डरों और डीलरों के नेटवर्क "रेत माफिया" को सालाना लगभग 15 करोड़ डॉलर की कमाई होती है।
रेत की कमी को दूर करने के लिए कुछ भारतीय राज्य इसे फिलीपींस और मलेशिया सहित अन्य देशों से आयात कर रहे हैं। लेकिन पर्यावरणीय हिमायती समूह अवाज फाउंडेशन की सुमैरा अब्दुल अली ने इस समाधान को "अत्यंत दोषपूर्ण" बताया है।
अब्दुल अली ने कहा, "अन्य स्थान से रेत आयात करने का मतलब है कि यह समस्या उस स्थान पर स्थानांतरित करना है।"
द कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि रेत के विकल्प के रूप में तोड़े गए पत्थरों का इस्तेमाल बढ़ रहा है।
एसोसिएशन के आगामी अध्यक्ष सतीश मगर ने कहा, "हम सभी श्रमिकों का कल्याण चाहते हैं, इन पर हमारा व्यवसाय निर्भर है।"
लेकिन जब तक अधिक रेत की मांग बनी रहेगी, तब तक उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिक राज जैसे लोग इसकी आपूर्ति करने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालने के लिए तैयार हैं।
उसने कहा, "यह जीवन और मृत्यु का काम है, लेकिन जब तक यहां नौकाएं है, तब तक मैं काम करूंगा।"
(रिपोर्टिंग- रोली श्रीवास्तव, संपादन- जेरेड फेरी और बेलिंडा गोल्डस्मिथ; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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