- नीता भल्ला
नई दिल्ली, 4 अप्रैल (थॉमसन रॉटरर्स फाउंडेशन) - श्रमिक संघों और मानवाधिकार समूहों ने मंगलवार को कहा कि शोषण रोकने के लिये दिल्ली के लाखों मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के "ऐतिहासिक" कदम का अनुसरण देश के अन्य राज्यों को भी करना चाहिये।
राजधानी दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने पिछले महीने अकुशल, अर्द्ध कुशल और कुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी दर 37 प्रतिशत बढ़ा दी है। इसके साथ ही यह देश के श्रमिक वर्ग को सबसे अधिक न्यूनतम मजदूरी प्रदान करने वाला राज्य बन गया है।
कार्यकर्ताओं ने कहा है कि देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से अकेला दिल्ली ही श्रम मंत्रालय द्वारा 1957 में की गई सिफारिशों और 1991 के सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश का पालन करने वाला एकमात्र राज्य है, जिसमें राज्यों से कम से कम हर पांच साल में न्यूनतम मजदूरी दर की समीक्षा करने को कहा गया था।
30 लाख से अधिक श्रमिक सदस्यों वाले राष्ट्रीय आंदोलन- भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र के अनुराग सक्सेना ने कहा, "दिल्ली सरकार ने हमारे श्रमिकों की जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाने की इच्छा दर्शायी है।"
उन्होंने कहा, "हम आशा करते हैं कि अन्य राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे।"
कार्यकर्ताओं ने दिल्ली सरकार से अब न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने वाले नियोक्ताओं को सज़ा देने के लिए कानून लाने पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि इसके कारण जबरन मजदूरी करवायी जाती है इसलिये सख्त दंड के प्रावधान की आवश्यकता है।
भारत में न्यूनतम मजदूरी दर संघीय और राज्य दोनों प्राधिकारियों द्वारा निर्धारित की जाती है और यह कृषि क्षेत्र के मजदूरों, खनिकों, निर्माण मजदूरों, सरकारी सफाई कर्मियों और सुरक्षा गार्ड सहित 45 व्यवसायों पर लागू होती है।
श्रमिक संघों का कहना है कि आवास, कपड़ा, भोजन, शिक्षा और बिजली की लागत पर आधारित ये दरें विभिन्न राज्यों में अलग- अलग हैं, लेकिन दशकों से यह अपर्याप्त है।
दिल्ली में मजदूरी बढ़ोतरी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर लागू होती है, जिसमें राजधानी और उसके आस-पास के क्षेत्र शामिल हैं। इसमें एक करोड़ 60 लाख से अधिक की आबादी को कवर किया गया है, जिनमें से अधिकतर लोग कम वेतन पर मजदूरी करते हैं।
3 मार्च से लागू किये गये नए नियमों के तहत एक अकुशल मजदूर 13,350 रुपये, एक अर्द्ध कुशल मजदूर 14,698 रुपये और कुशल मजदूर 16,183 रुपये मासिक वेतन पाने का हकदार होगा।
ट्रेड यूनियन समन्वय केंद्र के रामेंद्र कुमार ने कहा, "इन सिफारिशों को लागू करवाने में हमें लगभग 60 साल लग गए, यह दर्शाता है कि हमारे देश के मजदूरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।"
(रिपोर्टिंग- नीता भल्ला, संपादन- केटी नुएन; कृपया थॉमसन रॉयटर्स की धर्मार्थ शाखा, थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को श्रेय दें, जो मानवीय समाचार, महिलाओं के अधिकार, तस्करी, भ्रष्टाचार और जलवायु परिवर्तन को कवर करती है। देखें news.trust.org)
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